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BRICS में कैसे बढ़ता गया भारत का दबदबा? समिट के एजेंडे में क्या-क्या? ब्रिक्स करेंसी आई तो किन क्षेत्रों पर असर?


नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) BRICS समिट में हिस्सा लेने रूस में हैं. कजान शहर में 23 और 24 अक्टूबर को 16वें ब्रिक्स समिट का आयोजन हो रहा है. BRICS यानी दुनिया के 5 बड़े देशों का ग्रुप. इसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. इस बार ब्रिक्स का दायरा बढ़ाया जा रहा है. अब इसमें मिस्र, ईरान, इथियोपिया और यूएई भी शामिल हो चुके हैं. वहीं, भारत के लिए ब्रिक्स का सदस्य होना उसकी ग्लोबल क्रेडेबिलिटी को बढ़ाता है. इस प्लेटफॉर्म पर भारत अपनी डेप्लोमेसी और राजनीतिक नजरिए से बल पर एक मजबूत खिलाड़ी बन चुका है. 

इंटरनेशनल लेवल पर हुई हाल की घटनाओं को देखें, तो दुनिया दो ध्रुवों में बंट गई है. अमेरिकी एक तरफ हैं. रूस और चीन दूसरी तरफ हैं. ऐसे में भारत दोनों तरफ के देशों के साथ बराबरी का रिश्ता रख रहा है. तभी हर ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर भारत की साख बढ़ती जा रही है. आइए समझते हैं कि ब्रिक्स में भारत का दबदबा कैसे बढ़ा? ब्रिक्स 2024 के एजेंडे में क्या है:-

BRICS में भारत की साख बढ़ने को आप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बयान से समझ सकते हैं. पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी की बात को दोहराते हुए कहा कि BRICS का मकसद किसी के खिलाफ होना नहीं है. BRICS पश्चिम विरोधी समूह नहीं है, बल्कि एक गैर-पश्चिमी समूह है. इसका अमेरिका या किसी और देश से कोई बैर नहीं है.

रूस पहुंचे PM मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बेहद अहम द्विपक्षीय वार्ता की. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 3 महीने में 2 बार रूस आना, हमारे करीबी संबंधों को दर्शाता है. लगातार हर क्षेत्र में भारत और रूस के संबंधों को बल मिल रहा है. पिछले 15 साल में BRICS ने अपनी अलग पहचान बनाई. अब कई देश इससे जुड़ना चाहते हैं.

BRICS में कैसे बढ़ा भारत का दबदबा?
-दरअसल, भारत की लगातार तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ने उसे ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर एक अहम खिलाड़ी बना दिया है. बहुत जल्द भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है. 
-साल 2024 के आखिर तक भारत की GDP दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी हो सकती है, जिससे इसका प्रभाव बढ़ा है. 
-भारत का कूटनीतिक संतुलन और नेतृत्व ब्रिक्स में चीन और रूस जैसी ताकतों के साथ विशेष तौर पर अहम है.
-भारत ने व्यापार, सुरक्षा या जलवायु परिवर्तन समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है.
-भारत ने कोविड महामारी के दौरान वैक्सीन सप्लाई, जलवायु परिवर्तन पर ग्लोबल एजेंडा और ग्लोबल बिजनेस नियमों पर अच्छी भूमिका निभाई. इससे उसकी साख बढ़ी है. ऐसे में ब्रिक्स में भी उसका दबदबा बढ़ा है.
-यही नहीं, BRICS संगठन के नेताओं से बातचीत के दौरान इस बात पर जोर दिया कि इसमें नई उभरती अर्थव्यवस्थाओं को शामिल करना चाहिए, ताकि संगठन को ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर ज्यादा ताकत मिले. भारत ने यह सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई कि नए सदस्य देश विभिन्न महाद्वीपों से आएं. इससे BRICS की दुनिया में धमक और बढ़ जाएगी. इसलिए भारत आज BRICS का स्टार प्लेयर है.

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कैसे बना BRICS?
ब्रिक्स पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं का ग्रुप है. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका इसके सदस्य हैं. 2000 के दशक में ब्राजील, रूस, इंडिया और चीन तेजी से आर्थिक विकास कर रहे थे. इनकी ईंट जैसे मजबूत अर्थव्यवस्था को देखते हुए इन्हें एक साथ मिलाकर ब्रिक यानी ईंट कहा गया. बाद में जब दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ, तो यह BRICS बन गया. इस बार पांच नए देश इसमें शामिल हुए हैं. ईरान, मिस्र, इथियोपिया, यूएई और सऊदी अरब अब ब्रिक्स के नए सदस्य हैं.

BRIC शब्द कहां से आया?
इंटरनेशनल फाइनेंशियल कंसलटेंसी गोल्डमैन सैक्स से जुड़े ओ’नील ने BRIC शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले 2001 में अपने रिसर्च पेपर में किया था. उस रिसर्च पेपर का टाइटल था- ‘बिल्डिंग बेटर ग्लोबल इकोनॉमिक ब्रिक्स’. 

BRICS का क्या है मकसद?
आर्थिक विकास, आपसी सहयोग, वैश्विक मंच पर सामूहिक आवाज उठाना BRICS का मकसद है.आज EU को पछाड़ कर BRICS दुनिया का तीसरा ताकतवर आर्थिक संगठन बन गया है. ब्रिक्स देशों की आर्थिक ताकत लगातार बढ़ रही है. ग्लोबल GDP में BRICS देशों की हिस्सेदारी 37.4% है. जबकि ग्लोबल GDP में  G-7 की हिस्सेदारी 29.3% है. ब्रिक्स आज दुनिया की 43% आबादी, दुनिया के 32% भूमि क्षेत्र और विश्व निर्यात का 20% कवर करता है

क्या ब्रिक्स करेंसी पर बनेगी बात?
इस बार ब्रिक्स समिट में ऐसे फैसलों को अमलीजामा पहनाया जा सकता है, जिनके भविष्य में बड़े प्रभाव देखने को मिल सकते हैं. इनमें से सबसे अहम है ब्रिक्स करेंसी. ब्रिक्स देश एक ऐसी रिजर्व करेंसी शुरू करना चाहते हैं, जो डॉलर के प्रभुत्व को टक्कर दे सके. चीन-रूस ट्रेड वॉर के मद्देनजर इसे एक अहम कदम माना जा रहा है.

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नई करेंसी शुरू करने को लेकर अमेरिका की आक्रामक विदेश नीति भी एक कारण है. 1999 से 2019 तक US में 96% अंतरराष्ट्रीय कारोबार डॉलर में हुआ. दुनिया में लगभग 90% कारोबार US डॉलर में ही होता है. हालांकि, हाल के दिनों में डॉलर पर निर्भरता थोड़ी घटी है. एशिया प्रशांत क्षेत्र 74% कारोबार डॉलर में करते हैं. बाकी दुनिया में 79% कारोबार US डॉलर में होता है.

ब्रिक्स करेंसी आई तो किन क्षेत्रों पर असर?
– तेल और गैस
– बैंकिंग और फाइनेंस
– कमोडिटीज
– अंतरराष्ट्रीय ट्रेड
– टेक्नोलॉजी
– टूरिज्म एंड ट्रैवल
– फॉरेन एक्सचेंज मार्केट

ब्रिक्स में 2 दिन क्या-क्या होगा?
-इस साल 1 जनवरी को रूस को ब्रिक्स की अध्यक्षता सौंपी गई थी. 22 से 24 अक्टूबर के बीच यह समिट रूसी शहर कजान में हो रहा है. इस साल का विषय है ‘न्यायसंगत वैश्विक विकास और सुरक्षा के लिए बहुपक्षवाद को मजबूत करना’. 

-ब्रिक्स समिट के पहले दिन यानी 22 अक्टूबर को डेलीगेशन के प्रमुखों के लिए लंच रखा गया था. मंगलवार शाम को पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात हुई. फिर शाम सभी लीडर्स के लिए डिनर रखा गया.

-ब्रिक्स का मुख्य इवेंट बुधवार को है. 23 अक्टूबर को ब्रिक्स डेलीगेशन के प्रमुखों के साथ ग्रुप फोटो सेशन, 16वें ब्रिक्स समिट की बंद कमरे में मीटिंग, डिटेल मीटिंग वगैरह होंगे.

-ब्रिक्स के आखिरी दिन गुरुवार को आउटरीच/ब्रिक्स प्लस में 16वें ब्रिक्स समिट में भाग लेने वाले डेलीगेशन के प्रमुखों के साथ ग्रुप फोटो सेशन होनी है. फिर पहला और दूसरा फुल सेशन होगा. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ 16वें ब्रिक्स समिट खत्म होगा.  

ब्रिक्स समिट के एजेंडे में क्या है?
-16वें ब्रिक्स समिट के दौरान, ब्रिक्स नेता पारस्परिक रूप से लाभकारी ब्रिक्स सहयोग, क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक विकास के साथ-साथ वैश्विक शासन सुधार की स्थिति पर विचार-विमर्श करेंगे. 
-वे जोहान्सबर्ग में हुए पिछले सम्मेलन के दौरान मांगी गई रिपोर्टों पर विचार करेंगे. इसमें ब्रिक्स भागीदार मॉडल और संभावित उम्मीदवारों के आगे के विकास पर और स्थानीय मुद्राओं, भुगतान साधनों और प्लेटफार्मों पर विचार किया जाएगा.
– शिखर सम्मेलन में न्यू डेवलपमेंट बैंक, ब्रिक्स इंटरबैंक कोऑपरेशन मैकेनिज्म, ब्रिक्स बिजनेस काउंसिल और ब्रिक्स महिला बिजनेस एलायंस की रिपोर्ट पर भी चर्चा की जाएगी. 
-समेलन में जिन मुद्दों पर बहस हो सकती है उनमें न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) और मुद्रा भी शामिल हैं. 

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कितने देश हो रहे हैं शामिल?
-सदस्य देशों समेत 36 देशों ने इस समिट में शिरकत करने की पुष्टि की है. इसमें 20 से ज्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्ष होंगे.
-इस समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोआन, फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के साथ बैठक करेंगे. 
-पुतिन की न्यू डेवलपमेंट बैंक की अध्यक्ष डिल्मा रूसेफ के साथ बैठक होगी. रूसेफ के साथ वार्ता के बाद, पुतिन पीएम मोदी और बाद में दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के साथ बैठक करेंगे.
-इसके अलावा पुतिन की चीनी समकक्ष शी जिनपिंग और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी के साथ भी बैठकों की योजना है.
-इसके अलावा पुतिन अपने लाओस समकक्ष थोंगलौन सिसोउलिथ, मॉरिटानियाई राष्ट्रपति मोहम्मद औलद गज़ौनी और बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस एर्से से भी मिलेंगे. 
 


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