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Explainer: पोप का चुनाव कैसे होता है? जब काला धुआं सफेद में बदल जाए तब…


वैटिकन सिटी:

पोप फ्रांसिस की तबीयत खराब चल रही है. फेफड़ों के जटिल संक्रमण और किडनी रोग के कारण वो अभी अस्पताल में भर्ती हैं. ऐसे में उनके गिरते स्वास्थ्य के कारण उनके संभावित उत्तराधिकारी के चुनाव को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं. अगला पोप कैसे चुना जाता है, इसको समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि आखिर पोप होते कौन हैं और कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स क्या होता है? साथ ही हम इस एक्सप्लेनर में पोप फ्रांसिस के बारे में भी जानेंगे.

पोप होते कौन हैं?

पोप ग्रीक शब्द पप्पास से निकला है, जिसका अर्थ है ‘फादर/पिता’. सीधे शब्दों में कहें तो पोप दुनिया भर में कैथोलिक चर्च के नेता होते हैं. इसाई धर्मग्रंथ बाइबिल के अनुसार चर्च के प्रमुख के रूप में काम करने वाले पहले पोप सेंट पीटर थे.

पोप फ्रांसिस कौन हैं?

पोप फ्रांसिस अमेरिकी महाद्वीप से आने वाले पहले पोप हैं. पोप फ्रांसिस का जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में हुआ. जन्म के समय उन्हें नाम मिला- जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो. वह इटली से आए अप्रवासियों के घर जन्में थे. जब वे पोप बने, तो उन्होंने इटली के शहर असीसी के सेंट फ्रांसिस से प्रेरित होकर फ्रांसिस नाम चुना, जो अपनी विनम्रता और गरीबों की सेवा के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे.

मार्च 2013 में, उन्हें पोप के रूप में चुना गया. इसके साथ वो अमेरिका से आने वाले पहले पोप बने.

कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स क्या होता है?

कार्डिनल दुनिया भर से आने वाले बिशप और वेटिकन के अधिकारी होते हैं, जिन्हें व्यक्तिगत रूप से पोप द्वारा चुना जाता है. यह अपने खास लाल कपड़ों से पहचाने जाते हैं. इन्हीं कार्डिनल्स के समूह को कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स कहा जाता है.

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पोप को कैसे चुना जाता है?

हां वापस आते हैं उसी सवाल पर कि पोप को कैसे चुना जाता है. यूनाइटेड स्टेट्स कॉन्फ्रेंस ऑफ कैथोलिक बिशप की वेबसाइट के मुताबिक किसी भी वजह से पोप का पद खाली होने के बाद, ये कार्डिनल वेटिकन सिटी में एक के बाद एक बैठक करते हैं, जिन्हें सामान्य मण्डली (जनरल कॉन्ग्रेगेशन) कहा जाता है. इन बैठकों में वे वैश्विक स्तर पर कैथोलिक चर्च के सामने आने वाली जरूरतों और चुनौतियों पर चर्चा करते हैं. साथ ही वे अगले पोप के चुनाव के लिए भी तैयारी करते हैं, जिसे कॉन्क्लेव कहा जाता है. इस बीच ऐसे फैसले जो केवल पोप ही ले सकते हैं, जैसे बिशप की नियुक्ति या बिशप की धर्मसभा बुलाना, उसके लिए चुनाव के बाद तक का इंतजार किया जाता है. ऐसी बैठक में ही मृत पोप के अंतिम संस्कार और उन्हें दफनाने की व्यवस्था की जाती है.

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अतीत में, पोप के पद के खाली होने के 15 से 20 दिन बाद, कार्डिनल एक नए पोप के चुनाव में पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का आह्वान करने के लिए सेंट पीटर बेसिलिका में जमा होते थे. केवल 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल ही किसी कॉन्क्लेव में वोट करने के पात्र हैं. उन्हें कार्डिनल इलेक्टर्स के रूप में जाना जाता है और उनकी संख्या 120 तक सीमित है. कॉन्क्लेव के लिए, कार्डिनल इलेक्टर्स सिस्टिन चैपल में जाते हैं और दरवाजे सील करने से पहले पूर्ण गोपनीयता की शपथ लेते हैं. 

कार्डिनल पोप के चुनाव के लिए गुप्त मतदान करते हैं. वे दो बार मुड़े हुए बैलेट पेपर को एक बड़े प्याले में डालते हैं. जब तक किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई वोट नहीं मिल जाते, तब तक हर दिन चार राउंड की वोटिंग होती है. हर राउंड के रिजल्ट को जोर से गिना जाता है और रिकॉर्डर बने तीन कार्डिनल उन्हें रिकॉर्ड करते हैं. यदि किसी को आवश्यक दो-तिहाई वोट नहीं मिलता है, तो बैलेट पेपर को चैपल के पास एक स्टोव में जला दिया जाता है और उनको काला धुंआ पैदा करने वाले केमिकल में जलाया जाता है.

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नए पोप के चुनाव का संकेत देने के लिए सफेद धुआं पैदा किया जाता है

आखिरकार जब एक कार्डिनल को आवश्यक दो-तिहाई वोट मिल जाता है, तो कार्डिनल्स कॉलेज के डीन उससे पूछते हैं कि क्या वह पोप के पद पर अपने चुनाव को स्वीकार करता है. यदि वह स्वीकार करता है, तो वह अपने लिए एक पोप नाम चुनता है. फिर सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी में जाने से पहले उसे पोप की पोशाक पहनाई जाती है. दुनिया को नए पोप के चुनाव का संकेत देने के लिए अंतिम राउंड के बैलेट पेपर को सफेद धुआं पैदा करने वाले केमिकल के साथ जलाया जाता है.

आखिर में सीनियर कार्डिनल डीकन सेंट पीटर की बालकनी से घोषणा करते हैं कि ‘हेबेमस पापम’ यानी हमें पोप मिल गया है. इसके बाद पोप बाहर आते हैं और रोम शहर सहित पूरी दुनिया को अपना आशीर्वाद देते हैं.


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