'…लॉलीपॉप लागेलु'वाले पवन सिंह काराकाट में NDA का कितना करेंगे नुकसान?
नई दिल्ली:
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने दो मार्च लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी. इस सूची के एक नाम ने सबको चौंकाया था.वह नाम था भोजपुरी गायक पवन सिंह (Bhojpuri Singer Pawan Singh) का. उन्हें पश्चिम बंगाल की आसनसोल (Asansol Parliamentary Cnstituency) से उम्मीदवार बनाया गया था. लेकिन अगले ही दिन पवन सिंह ने चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया. बीजेपी (BJP) ने उनकी इच्छा का सम्मान किया.इसके बाद उन्होंने कहा कि उनकी मां चाहती हैं कि वो चुनाव लड़ें. मां की इच्छा कहें या चुनाव लड़ने की जिद पवन सिंह बिहार के रोहतास जिले की काराकाट सीट (Karakat Parliamentary Constituency) से चुनाव मैदान में हैं. वहां उनका मुकाबला बीजेपी के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) से है.काराकाट में लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) के अंतिम चरण में एक जून को मतदान होना है.
बीजेपी ने पवन सिंह को पार्टी से निकाला
पवन सिंह ने बिहार के काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.वहां से एनडीए की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा उम्मीदवार हैं.वहीं इंडिया गठंबधन में यह सीट सीपीआई-एमएल के खाते में गई है. वहां से भाकपा माले के राजाराम सिंह चुनाव मैदान में हैं.बीजेपी का सदस्य होने के बाद भी एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने की वजह से पवन सिंह को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है.
पवन सिंह रोहतास जिले में आने वाली काराकाट लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं.बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले पवन सिंह भोजपुरी में गाने गाते हैं. साल 2008 में उनके गाए गाने’…लॉली पॉप लागेलु’ने तहलका मचा दिया था. बिहार के संस्कृत शिक्षा बोर्ड से मध्यमा की पढ़ाई करने वाले पवन सिंह भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार हैं.उनके स्टारडम को देखते हुए ही बीजेपी ने उनसे तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में प्रचार कराया था.
कहां से चुनाव लड़ना चाहते थे पवन सिंह
पवन सिंह ने 2014 में बीजेपी की सदस्यता ली थी.उन्हें पार्टी महासचिव अरुण सिंह ने बिहार बीजेपी की सदस्यता दिलाई थी. बीजेपी में शामिल होने के 10 साल बाद पवन सिंह को 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला. लेकिन आसनसोल से टिकट मिलने के बाद ही पवन सिंह का विरोध शुरू हो गया. पवन सिंह के भोजपुरी गानों में बंगाली लड़कियों को लेकर किए कमेंट के आधार पर पवन सिंह का तृणमूल कांग्रेस ने विरोध करना शुरू कर दिया. टिकट की घोषणा के अगले ही दिन पवन ने आसनसोल से चुनाव लड़ने में असमर्थता जता दी. दरअसल बीजेपी ने आसनसोल की कोयले के खदानों में काम करने आए पूरबियों की संख्या को देखते हुए पवन सिंह को उम्मीदवार बनाया था. साल 2019 के चुनाव में इस सीट से बीजेपी के बाबुल सुप्रियो जीते थे. बॉलीवुड गायक बाबुल ने पार्टी से मतभेद के बाद संसद की सदस्यता और बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था. उनके इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में इस सीट पर टीएमसी के शत्रुघ्न सिन्हा ने जीत दर्ज की थी.
आसनसोल का टिकट छोड़ने के बाद पवन सिंह को उम्मीद थी कि बीजेपी उन्हें आरा सीट से टिकट देगी. उनकी चाहत उत्तर प्रदेश या बिहार के किसी भोजपुरी भाषी सीट से चुनाव लड़ने की थी. लेकिन बीजेपी ने उन्हें कहीं से भी टिकट नहीं दिया.इसके बाद पवन सिंह ने काराकाट से चुनाव लड़ने की ऐलान किया.काराकाट लोकसभा सीट रोहतास जिले में पड़ती है.इसकी सीमाएं औरंगाबाद और भोजपुर जिले से लगती हैं.
काराकाट की लड़ाई पर पवन सिंह का प्रभाव
पवन सिंह ने प्लान बी के तहत अपनी मां प्रतिमा देवी से भी पर्चा दाखिल करवाया था. लेकिन बेटे का नामांकन सही पाए जाने के बाद मां ने अपना पर्चा वापस ले लिया. बीजेपी ने पवन सिंह को समझाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं माने. अब पवन चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं. वहां उनका मुकाबला एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा से है. वहीं भाकपा माले के राजाराम सिंह इंडिया गठबंधन की ओर से चुनाव मैदान में हैं. पवन काराकाट की लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहे हैं. पवन सिंह के आने से राजपूत वोटों और युवाओं के वोट में बंटवारा होने की उम्मीद है.क्योंकि युवाओं में पवन का जादू सिर चढ़कर बोलता है. इसका नुकसान कुशवाहा को उठाना पड़ सकता है.
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