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'वन नेशन, वन इलेक्शन' से कितना बदल जाएगा भारत का चुनाव? विधानसभाओं के बचे टर्म का क्या होगा? जानिए हर सवाल का जवाब


नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 2014 में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ यानी एक देश एक चुनाव का वादा किया था. मोदी कैबिनेट ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) प्रस्ताव को आखिरकार बुधवार (18 सितंबर) को मंजूरी दे दी. वन नेशन वन इलेक्शन का प्रोसेस तय करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी, इसमें 8 सदस्य थे. कोविंद कमेटी (Ramnath Kovind Committee) का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था. कमिटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. इसे बुधवार को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दी. कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने का सुझाव दिया है. संसद के शीतकालीन सत्र में इसपर बिल पेश किया जा सकता है.

आइए जानते हैं कब से लागू हो सकता है वन नेशन वन इलेक्शन? जिन विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है, उनका क्या होगा? वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने के बाद देश में चुनाव की प्रक्रिया कितनी बदल जाएगी:-

वन नेशन वन इलेक्शन पर सरकार ने क्या कहा?
-कैबिनेट मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कोविंद कमेटी की रिपोर्ट को लेकर मीडिया ब्रीफिंग दी. उन्होंने बताया कि
देश में एक कॉमन इलेक्टोरल रोल होगा.
-कमेटी ने दो फेज में चुनाव कराने का सुझाव दिया है. पहले फेज में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे. जबकि 100 दिन के अंदर दूसरे फेज में लोकल बॉडी (निकाय चुनाव)के इलेक्शन होंगे. 
– कोविंद कमेटी की ये सिफारिशें 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद लागू होंगी. 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रपति एक नियत तारीख तय करेंगे, जिससे राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे. इसके लिए कम से कम 5 से 6 संवैधानिक संशोधन की जरूरत पड़ेगी.
-केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी के सुझावों पर विचार करने के लिए देशभर में चर्चा करेगी. इसके बाद ही अगला कदम उठाया जाएगा.

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कोविंद कमेटी ने वन नेशन वन इलेक्शन पर क्या दिया सुझाव?
-कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए.
-पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. दूसरे फेज में 100 दिनों के अंदर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं.
-हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं.
-इलेक्शन कमीशन लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार कर सकता है.
-कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए डिवाइसों, मैन पावर और सिक्योरिटी फोर्स की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश भी की है.

कोविंद कमेटी में कौन-कौन?
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को कमेटी बनाई गई थी.
कोविंद की कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, जाने माने वकील हरीश साल्वे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाष कश्यप, पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त(CVC) संजय कोठारी समेत 8 मेंबर हैं. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए हैं.

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कैसे तैयार हुई रिपोर्ट?
कमेटी ने इसके लिए 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया. इनमें से 32 पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया. वहीं, 15 दलों ने इसका विरोध किया था. जबकि 15 ऐसी पार्टियां भी थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. 191 दिन की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी. कमेटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पेज की है.

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कोविंद कमेटी किन देशों से लिया कौन सा रेफरेंस?
-वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कई देशों के संविधान का एनालिसिस किया गया. कमेटी ने स्वीडन, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, फिलीपिंस, इंडोनेशिया के इलेक्शन प्रोसेस की स्टडी की. 
-दक्षिण अफ्रीका में अगले साल मई में लोकसभाओं और विधानसभाओं के इलेक्शन होंगे. जबकि स्वीडन इलेक्शन प्रोसेस के लिए आनुपातिक चुनावी प्रणाली यानी Proportional Electoral System अपनाता है. 
-जर्मनी और जापान की बात करें, तो यहां पहले पीएम का सिलेक्शन होता है, फिर बाकी चुनाव होते हैं. 
-इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव साथ में होते हैं.

वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कौन सी पार्टियां तैयार?
वन नेशन वन इलेक्शन का BJP, नीतीश कुमार की JDU, तेलुगू देशम पार्टी (TDP), चिराग पासवान की LJP ने समर्थन किया है.  इसके साथ ही असम गण परिषद, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और शिवसेना (शिंदे) गुट ने भी वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है.

किन पार्टियों ने विरोध किया?
वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी (SP), आम आदमी पार्टी (AAP), सीपीएम (CPM) समेत 15 दल इसके खिलाफ थे. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) समेत 15 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोई जवाब नहीं दिया.

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क्या इससे पहले भारत में एक साथ चुनाव हुए? 
हां ऐसा हुआ है. भारत की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे. हालांकि, 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म कर दिया गया. 1970 में इंदिरा गांधी ने पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही लोकसभा को भंग करने का सुझाव दिया. इससे उन्होंने भारत में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा को भी तोड़ दिया. जबकि मूल रूप से 1972 में लोकसभा के चुनाव होने थे. अब मोदी सरकार फिर से इसे लागू करने की कोशिश में है.

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किन राज्यों की विधानसभाओं का कम हो सकता है कार्यकाल?
वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा. 
गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 माह घटेगा. असम, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल और पुडुचेरी मौजूदा कार्यकाल कम होगा.


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