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शेख हसीना: बांग्लादेश के हीरो की बेटी कैसे बन गई अपने ही मुल्क की विलेन… अब सामने है ये चुनौती?


नई दिल्‍ली:

अवामी लीग की प्रमुख और बांग्लादेश (Bangladesh) की तीन बार प्रधानमंत्री रहीं 77 साल की शेख हसीना (Sheikh Hasina) ने सेना के 45 मिनट के अल्टीमेटम के बीच सोमवार को पद छोड़ दिया और हिंसाग्रस्त देश से अज्ञात स्‍थान के लिए रवाना हो गईं. माना जा रहा है कि यह स्‍थान उनके लिए परिचित होगा. बांग्‍लादेश की सेना के अधिकारियों ने शेख हसीना के पिता की हत्‍या कर दी थी, जिसके बाद उन्‍होंने निर्वासन झेला और फिर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की.  

शेख मुजीबुर्रहमान एक करिश्‍माई नेता थे, जिन्‍होंने पूर्वी पाकिस्‍तान को आजादी दिलाई और बांग्‍लादेश के रूप में एक नए राष्‍ट्र का जन्‍म हुआ. हालांकि बांग्‍लादेश में आज हुई हिंसा में उनकी प्रतिमा को भी तोड़ दिया गया. 

1996 के राष्‍ट्रीय चुनाव में अवामी लीग की जीत 

मुजीबुर्रहमान की हत्या के वक्‍त शेख हसीना की उम्र 28 साल थीं. वह 1975 से 1981 तक निर्वासन में रहीं. निर्वासन के दौरान ही शेख हसीना अपने पिता द्वारा स्थापित पार्टी की प्रमुख बनीं और वापस आकर राजनीति में कूद पड़ीं. 

शेख हसीना ने 1996 में अवामी लीग को राष्ट्रीय चुनाव में जीत दिलाई और वह बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. 

उनके नेतृत्व के शुरुआती सालों में बांग्‍लादेश की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे में जबरदस्‍त विकास देखा गया. यही वो कारण था जिसके चलते दुनिया के सबसे गरीब देशों में गिने जाने वाले बांग्लादेश के लोगों के जीवन स्तर में तेजी से बदलाव आया. 

शेख हसीना पर तानाशाही और निरंकुशता का आरोप 

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हालांकि न्यायपालिका के साथ शेख हसीना के तनावपूर्ण संबंधों और विरोध प्रदर्शनों की लंबी श्रृंखला से निपटने को लेकर आलोचकों की एक पीढ़ी को जन्म दिया, जिन्होंने उन पर तानाशाही और निरंकुशता का आरोप लगाया. बाद के दो चुनावों में शेख हसीना पर जीत में धांधली करने के आरोप लगे और इसके साथ ही उस वक्‍त देश के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक के साथ विवाद जुड़ते चले गए. 

चटगांव पहाड़ी इलाकों में 25 साल के संघर्ष के बाद शेख हसीना के शांति लाने के प्रयासों को 1998 में यूनेस्को ने होउफौएट-बोइग्नी शांति पुरस्कार से मान्यता दी. 

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इस्‍तीफे की मांग में बदला विरोध प्रदर्शन 

बांग्‍लादेश में छात्रों का विरोध प्रदर्शन कुछ हफ्तों पहले स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सरकारी नौकरियों में कोटा देने के मुद्दे से शुरू हुआ था और यह विरोध प्रदर्शन अप्रत्याशित रूप से उनके इस्तीफे की मांग में बदल गया. 

हिंसा के बाद सेना ने कार्रवाई की और इसे कुछ लोग उस नेता के राजनीतिक करियर के आखिरी अध्याय के रूप में देखते हैं, जिन्‍होंने 1947 में जन्‍म लेने के बाद से ही देश में कई तरह के  उतार-चढ़ाव को देखा है. 

शेख हसीना के सामने है ये सबसे बड़ी चुनौती 

अपने उथल-पुथल भरे करियर में शेख हसीना को ग्रेनेड हमलों और हत्या के प्रयासों का सामना करना पड़ा है. सेना द्वारा उन्हें तीन बार नजरबंद किया गया था. हालांकि कई लोगों का मानना ​​है कि उनका राजनीतिक स्‍मृति लेख लिखना अभी भी जल्दबाजी होगा.

बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद अब शेख हसीना के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने देश से दूर रहकर सेना से नेगोशिएट करने की है, ताकि वो अपने पिता शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत को वापस पा सके. साथ ही अवामी लीग की कमान दोबारा थाम सके.
 

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