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कैसे फ्रांस चुनाव में 'टैक्टिकल वोटिंग' से दक्षिणपंथी पार्टी को हराया गया


नई दिल्ली:

फ्रांस के चुनाव में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की उम्मीदों को करारा झटका लगा है. इस चुनाव में लेफ्ट गठबंधन फ्रांसीसी संसद में सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा है. वहीं, मरीन ले पेन की धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली तीसरे स्थान पर रही, जिन्हें इस चुनाव में बड़ी जीत की उम्मीद थी. लेकिन फ्रांस के जो चुनाव नतीजे आए, उसने हर किसी को हैरत में डाल दिया. इस चुनाव में किसी को भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है. लेकिन इसने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के उस फैसले पर सवाल खड़ा कर दिया, जिसमें उन्होंने वक्त से पहले चुनाव कराने का निर्णय लिया था. फ्रांस के लेफ्ट गठबंधन – न्यू पॉपुलर फ्रंट – ने 182 सीटें जीती हैं, वहीं राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के मध्यमार्गी गठबंधन ने 163 सीटें जीती हैं और धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली 143 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर है. लेकिन शीर्ष पर आने के बावजूद, लेफ्ट गठबंधन पूर्ण बहुमत से काफी पीछे है, जिससे देश का राजनीतिक भविष्य उथल-पुथल की स्थिति बनी हुई है.

पहले दौर के चुनाव में दक्षिणपंथी पार्टी को बढ़त

30 जून को फ्रांस में मतदान का पहला दौर था. इसके लिए अनुमान जताया गया था कि मरीन ले पेन और जॉर्डन बार्डेला की अति-दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली शीर्ष पर आएगी और हुआ भी ठीक ऐसा ही. वहीं लेफ्ट पार्टियो का गठबंधन न्यू पॉपुलर फ्रंट दूसरे स्थान पर आया, जबकि मैक्रों का एनसेंबल एलायंस तीसरे स्थान पर खिसक गया. असल में यह पहली बार था जब फ्रांस में कोई अति-दक्षिणपंथी पार्टी शीर्ष पर पहुंची थी. धुर दक्षिणपंथी पार्टी को 37.3% वोट मिला, लेकिन मध्यमार्गियों और वामपंथियों का संयुक्त वोट शेयर 48% से अधिक है. नेशनल रैली को डाले गए वोटों का 33% से थोड़ा ज़्यादा हिस्सा मिला.

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सोशलिस्ट पार्टी, ग्रीन्स और जीन-ल्यूक मेलेंचन की फ्रांस अन-बोड के गठबंधन न्यू पॉपुलर फ्रंट को 26.3% वोट मिले. जबकि मैक्रों के एनसेंबल को सिर्फ़ 21% वोट मिले. अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक रविवार 7 जुलाई को फ्रांस में जो हुआ, वह दक्षिणपंथी विचारधारा को बाहर रखने के लिए हुए टैक्टिकल वोटिंग का नतीजा था. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे कि आम चुनाव में यूपी में हुआ. जहां बीजेपी को रोकने के लिए सपा और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया. इंडिया अलांयस ने 43 सीटें जीतकर भाजपा और उसके सहयोगी को बड़ा झटका दिया जो कि यूपी में 36 सीटों पर सिमट गए. रविवार को फ्रांस में ऐसा ही कुछ देखने को मिला.

30 जून से 7 जुलाई के बीच क्यों पिछड़ी दक्षिणपंथी पार्टी?

पहले राउंड के बाद, जब यह स्पष्ट हो गया कि नेशनल रैली 577 सीटों में 230 से 280 सीटें जीतने जा रही है. ऐसे में पार्टियों ने एक अलग रणनीति बनाई. इसी रणनीति के तहत लेफ्ट पार्टियों और मैक्रों के समूह ने 200 से ज़्यादा उम्मीदवारों को दौड़ से बाहर कर दिया, जिससे इस चुनाव ने रोचक मोड़ ले लिया. इस स्थिति में बहुत से मतदाता जो दक्षिणपंथी पार्टी से नफ़रत करते थे, उन्होंने फिर वामपंथी उम्मीदवार को अपना वोट दिया – भले ही वह उम्मीदवार उनकी पसंद को हो या नहीं.” गौर करने वाली बात ये भी है कि मतदाता भी बड़ी संख्या में मतदान के लिए आए.

फ्रांस में 1997 के बाद सबसे अधिक मतदान

सर्वे का कहना है कि मतदान लगभग 67 फीसदी था, जो 1997 के बाद सबसे अधिक है. फ्रांस में कई लोगों के लिए, इस चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा था. इस चुनाव में धुर दक्षिणपंथी पार्टी के बहुमत हासिल करने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लेफ्ट पार्टी ने धुर दक्षिणपंथी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. अब सवाल ये है कि आगे क्या है, दरअसल फ्रांस में गठबंधन सरकार का कोई इतिहास नहीं रहा है. वहीं लेफ्ट में भी मतभेद देखने को मिल रहा है. अब सवाल ये है कि क्या मैक्रों की पार्टी लेफ्ट के साथ मिलकर सरकार बनाएगी. फिलहाल इसी बात की चर्चा जोरों पर है.

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फ्रांस में क्यों करा गए वक्त से पहले चुनाव 

जब यूरोपीय संसद के चुनाव हुए, उसमें दक्षिणपंथी पार्टी को भारी कामयाबी मिली. उसके बाद 9 जून को फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने चुनाव का ऐलान कर दिया. पहले दौर की वोटिंग में दक्षिण पंथियों को बड़ी कामयाबी मिलने के संकेत मिले. लेकिन अंतिम समय पर दक्षिण पंथियों को रोकने की जो कोशिश हुई, ये परिणाम उसी का नतीजा है. मेरी ली पेन जो कि राइट विंग की नेता हैं, उनको पूर्ण बहुमत सरकार की उम्मीद थी. लेकिन अब त्रिशंकु सरकार बनती दिख रही है. मैक्रों का कार्यकाल 2027 तक हैं लेकिन इन चुनाव नतीजों से उन पर दबाव बढ़ गया है.

मैक्रों के समय से पहले चुनाव कराने के फैसले को एक्सपर्ट्स ने मूर्खतापूर्ण कदम माना. फ्रांस में अगले चुनाव 2027 में होने थे. इसलिए, ऐसे समय में अचानक चुनाव कराना, जब दक्षिणपंथी पार्टी की भविष्यवाणी कर रहे थे, एक बहुत ही बुरा विचार लग रहा था.  राउंड 1 के बाद, ऐसा लगा कि मैक्रों ने राजनीतिक आत्महत्या कर ली है. लेकिन राउंड 2 के बाद, ऐसा लग रहा है कि मैक्रों ने पेरिस ओलंपिक शुरू होने से ठीक पहले चुनाव कराके आखिरकार समझदारी का काम किया है. पार्टी प्रमुखों के बीच बातचीत से अब यह तय होगा कि क्या गठबंधन सरकार बनाई जा सकती है या नहीं.


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