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लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्‍ट्रेशन नहीं कराया, तो होगी 6 महीने की जेल : उत्‍तराखंड UCC बिल

बिल में यह भी प्रस्‍ताव है कि लिव-इन रिलेशनशिप उन मामलों में पंजीकृत नहीं किए जाएंगे, जो “नैतिकता के विरुद्ध” हैं. यदि एक साथी विवाहित है या किसी अन्य रिश्ते में है, यदि एक साथी नाबालिग है, और यदि एक साथी की सहमति “जबरदस्ती, धोखाधड़ी” द्वारा प्राप्त की गई थी, या गलत बयानी (पहचान के संबंध में) की गई है, तो पंजीकृत नहीं किया जाएगा.

रिश्ते की वैधता की होगी “जांच”

एक वरिष्ठ अधिकारी ने The Hindkeshariको बताया कि लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्‍ट्रेशन के लिए एक वेबसाइट तैयार की जा रही है, जिसे जिला रजिस्ट्रार से सत्यापित किया जाएगा, जो रिश्ते की वैधता स्थापित करने के लिए “जांच” करेगा. ऐसा करने के लिए, वह किसी एक या दोनों साझेदारों या किसी अन्य को मिलने के लिए बुला सकता है. इसके बाद जिला रजिस्ट्रार तय करेगा कि किसी जोड़े को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत दी जाए कि नहीं.

 

अगर रजिस्‍ट्रार किसी कपल को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत नहीं देता है, तो उसे लिखित में इसका कारण बताना होगा. 

लिव-इन रिलेशनशिप को ‘खत्‍म’ करना भी आसान नहीं होगा

रजिस्‍टर्ड लिव-इन रिलेशनशिप को ‘खत्‍म’ करना भी आसान नहीं होगा. इसके लिए “निर्धारित प्रारूप” में एक लिखित बयान दाखिल करना होगा. यदि रजिस्ट्रार को लगता है कि संबंध समाप्त करने के कारण “गलत” या “संदिग्ध” हैं, तो इसकी पुलिस जांच भी हो सकती है. 21 वर्ष से कम आयु वालों के माता-पिता या अभिभावकों को भी इसके बारे में सूचित किया जाएगा. 

6 महीने की जेल और 25 हजार रुपये जुर्माना…

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए दी गई गलत जानकारी कपल को मुसीबत में भी डाल सकती है. गलत जानकारी प्रदान करने पर व्यक्ति को तीन महीने की जेल, 25,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत नहीं कराने पर अधिकतम छह महीने की जेल, ₹ 25,000 का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ेगा. यहां तक ​​कि पंजीकरण में एक महीने से भी कम की देरी पर तीन महीने तक की जेल, ₹ 10,000 का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

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लिव-इन रिलेशनशिप में हुए बच्‍चे होंगे वैध संतान 

मंगलवार सुबह उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर अन्य प्रमुख बिंदुओं में यह है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता मिलेगी यानी, वे “दंपति की वैध संतान होंगे”. अधिकारी ने The Hindkeshariको बताया, इसका मतलब है कि “लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान पैदा हुए सभी बच्चों को वे अधिकार मिलेंगे, जो शादी के बाद हुए बच्‍चों को मिलते हैं. किसी भी बच्चे को ‘नाजायज’ के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकेगा.”

इसके अलावा, “सभी बच्चों को विरासत (माता-पिता की संपत्ति सहित) में समान अधिकार होगा”, अधिकारी ने यूसीसी की भाषा पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, जो “बच्चे” को संदर्भित करता है न कि “बेटे” या “बेटी” को. यानि बच्‍चा बेटा हो या बेटी दोनों को समान अधिकार मिलेंगे. यूसीसी ड्राफ्ट में यह भी कहा गया है कि अपने लिव-इन पार्टनर द्वारा छोड़ी गई महिला भरण-पोषण का दावा कर सकती है. 

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