‘नखरे, ड्रामा, नारेबाजी…' : पीए संगमा होते तो शायद पीएम मोदी यह न कहते; इतिहास बनाने वाले स्पीकर की कहानी

अपने दल के साथ सत्ताधारी दल को भी साधा
पीए संगमा के पास कानूनी प्रशिक्षण, सांसद तथा मंत्री के रूप में लंबा अनुभव होने का साथ-साथ निष्पक्षता के लिए नेकनामी, पारदर्शिता, शालीनता, बुद्धिमता तथा हाजिरजवाबी जैसे वे सभी गुण मौजूद थे जो इस महिमामय पद के लिए आवश्यक होते हैं. अध्यक्ष पद संभालते ही उन्होंने जिस सूझबूझ और विश्वास से अपनी जिम्मेदारी निभायी उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस कार्य में स्वभावतः निपुण थे. संसदीय सुधारों के लिए उनकी कार्यशैली अनूठी थी. अध्यक्ष के रूप में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वाद-विवाद के उत्तेजनापूर्ण क्षणों के दौरान भी सदस्य नियमों का पालन करते रहें. कांग्रेस उनके कार्यकाल में लगातार अविश्वास प्रस्ताव लेकर आती थी. ऐसे में उन्हें कांग्रेस के साथ सत्ताधारी दल को भी बैलेंस करना होता था. अपने अध्यक्ष पद के कार्यकाल के दौरान उन्होंने महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी स्थायी संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया ताकि वह लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं को 33 1/3 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराने हेतु संविधान (81वां संशोधन) विधेयक, 1996 पर विचार कर सके.अध्यक्ष के रूप में संगमा के कार्यकाल के दौरान सार्वजनिक जीवन में नैतिकता तथा आदर्शों के बारे में प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए विशेषाधिकार समिति के एक आठ सदस्यीय अध्ययन दल का गठन किया गया था. उनके इस कदम को सभी ने अत्यधिक सराहा. इस अध्ययन दल के प्रतिवेदन को बाद में बारहवीं लोक सभा में प्रस्तुत किया गया.
विदेशों में भी बढ़ाया मान
भारत की स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती समारोहों के उपलक्ष्य में 26 अगस्त से 1 सितम्बर, 1997 तक संसद के दोनों सदनों का विशेष अधिवेशन आयोजित करना उनके द्वारा उठाया गया एक और बड़ा कदम था. इस अधिवेशन में उपलब्धियों पर चर्चा की गयी तथा भविष्य के लिए राष्ट्रीय एजेंडा भी निर्धारित किया गया. विशेष सत्र का शुभारंभ करते हुए भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार अध्यक्ष ने सभा को संबोधित किया और एक दूसरे स्वतंत्रता आंदोलन की आवश्यकता पर बल दिया.
संगमा ने अध्यक्ष के रूप में भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का कुआलालम्पुर में अगस्त 1996 में तथा पोर्ट लुई में सितम्बर, 1997 में हुए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलनों में नेतृत्व किया. उन्होंने भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का बीजिंग में सितम्बर, 1996 में अंतर-संसदीय संघ के 96वें सम्मेलन में तथा काहिरा में सितंबर, 1997 में हुए 98वें सम्मेलन में भी नेतृत्व किया. संगमा ने इस्लामाबाद में अक्तूबर, 1997 में हुए “सार्क ” अध्यक्षों तथा सांसदों के संघ के सम्मेलन में भी भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया. उन्होंने भारतीय संसद द्वारा फरवरी, 1997 में नई दिल्ली में आयोजित “राजनीति में महिलाओं तथा पुरूषों के बीच सहभागिता की ओर ” विषय पर अंतर-संसदीय संघ के विशेषीकृत सम्मेलन की अध्यक्षता की थी. उनके घटनापूर्ण कार्यकाल के दौरान ” सार्क ” संसदों की लोक लेखा समितियों के सभापतियों तथा सदस्यों का सबसे पहला सम्मेलन भी अगस्त, 1997 में नई दिल्ली में हुआ था.

फिर कांग्रेस से हुआ मोहभंग
हालांकि, 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे के खिलाफ विद्रोह करने वाले नेताओं में संगमा भी शामिल थे. उन्होंने, शरद पवार और तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया. बाद में संगमा राकांपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. फिर संगमा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर अपनी खुद की नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया. वह पार्टी के टिकट पर वर्तमान 16वीं लोकसभा में निर्वाचित हुए थे. 2012 में संगमा ने राकांपा छोड़ दी और राष्ट्रपति पद के चुनाव में प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार बने. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए संगमा का 4 मार्च 2016 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. तब वह 68 साल के थे. संगमा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदन की कार्यवाही आनंदपूर्ण माहौल में कैसे चलाते हैं, सच कहें तो इसके बारे में उन्हें संगमा से सीखने को मिला. वह कुल 9 बार सांसद रहे.

पीएम मोदी ने भी की थी तारीफ
साल 2012 में पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उस समय उन्होंने कहा था कि मैं संसद की कार्यवाही देखने में इसलिए रुचि रखता था कि स्पीकर की कुर्सी पर पीए संगमा बैठे होते थे. किसी भी मसल पर उनका बॉडी लैंग्वेज आप याद कीजिए..वह एक छोटे बालक की तरह निर्मल थे. पीए संगमा ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले एक बार कहा था, ‘मोदी में प्रधानमंत्री बनने के गुण हैं. हिंदी भाषी क्षेत्र में उनका जनाधार है. उन्हें गैर-हिंदी भाषी क्षेत्र में, खासकर दक्षिण में अपनी स्थिति आंकनी होगी.देश के लोग आज विकास और सुराज चाहते हैं और उन्होंने गुजरात में साबित किया है.’
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