"अगर यहां न्याय का मंदिर है तो..": इलाहाबाद HC ने जिला जज की बर्खास्तगी को सही ठहराया
प्रयागराज:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दहेज की मांग और निजी मामले में एक कनिष्ठ न्यायाधीश को प्रभावित करने के प्रयास के आरोपी न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को सही ठहराया है. न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की खंडपीठ ने कहा कि यदि यहां न्याय का मंदिर है तो न्यायिक अधिकारियों को शीर्ष पुरोहित की तरह काम करना चाहिए. सेवा से हटाए गए अपर जिला न्यायाधीश उमेश कुमार सिरोही द्वारा दायर रिट याचिका को बृहस्पतिवार को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, “स्वयं या अपने करीबी के लिए लाभ लेने के इरादे से किए गए किसी भी कृत्य से हमेशा सख्ती से निपटा जाएगा.”
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मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार द्वारा 16 अप्रैल 2021 को पारित आदेश को चुनौती दी थी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक, गोपनीय) के 28 मई 2021 के पत्र के आधार पर बर्खास्तगी का आदेश पारित किया गया. उस समय याचिकाकर्ता ललितपुर में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के तौर पर सेवारत था.
पीठ ने कहा, “एक बार गंदी मछली चिह्नित होने पर इसे तालाब में नहीं रखा जा सकता. गलती की कोई गुंजाइश की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे एक न्यायिक अधिकारी के लिए किसी दूसरे न्यायिक अधिकारी को प्रभावित करने की संभावना बनती है.”
उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष की तरफ से याचिकाकर्ता के खिलाफ 2016 और 2017 में दो आरोप पत्र जारी किए गए जिसमें पहले आरोप पत्र में उसे अपने भाई (जो एक न्यायाधीश हैं) के लिए दहेज की मांग करने और भाई की पत्नी और उसके मायके के लोगों को झूठे मामले में फंसाने के लिए षड़यंत्र रचने का आरोपी बनाया गया.
सिरोही की पत्नी ने अपनी देवरानी और उसके मायके वालों के खिलाफ पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी. सिरोही और उसके भाई के खिलाफ दूसरा आरोप था कि उन्होंने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करते हुए जांच अधिकारी को प्रभावित करने का प्रयास किया था.
दूसरे आरोप पत्र में आरोप लगाया गया था कि सिरोही ने अपनी पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए मामले में सुनवाई के दौरान एक अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रभावित करने का प्रयास किया था. उन पर मेरठ के तत्कालीन जिला न्यायाधीश के खिलाफ पक्षपात का झूठा आरोप लगाने का भी इल्ज़ाम है.
वर्ष 2020 में उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत ने सिरोही के खिलाफ जांच रिपोर्ट स्वीकार की और सेवा से बर्खास्तगी की सिफारिश की. राज्य सरकार ने यह सिफारिश स्वीकार कर ली. बहस सुनने और रिकॉर्ड पर गौर करने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि सिरोही के खिलाफ अति गंभीर दुराचार का मामला बनता है.
अदालत ने जांच अधिकारी को प्रभावित करने के प्रयास और दहेज की मांग के आरोपों को सही पाया.
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