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हम न होते तो जर्मन बोल रहे होते…: स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को वापस मांगने पर फ्रेंच नेता को US ने याद दिलाया इतिहास


न्यूयॉर्क:

स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी दुनियाभर में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की ऐसी पहचान है, जिससे हर कोई यकीनन वाकिफ होगा. फिल्मों से लेकर फेमस वेबसीरीज तक में कैमरा स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के इर्द-गिर्द ना घूमें, ऐसा हरगिज नामुमकिन ही है. लेकिन अब स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को लेकर अमेरिका और फ्रांस में जुबानी जंग छिड़ी हुई है. अमेरिका ने फ्रांस के सेंटर-लेफ्ट पॉलिटिशयन राफेल ग्लक्समैन की उस बात को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि वर्ल्ड फेमस स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को फ्रांस वापस ले लेना चाहिए. व्हाइट हाउस ने इसे बेकार की सियासत करार दिया. मगर सवाल यह है कि स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी जो दोस्ती की निशानी थी, अब बहस का मुद्दा क्यों बन गई?

फ्रांस की मांग: “हमें हमारा स्टैच्यू लौटाओ”

सेंटर-लेफ्ट पॉलिटिशयन राफेल ग्लक्समैन का कहना है कि अमेरिका अब उन मूल्यों को नहीं मानता, जिनके लिए फ्रांस ने 1886 में यह स्टैच्यू गिफ्ट किया था. उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर निशाना साधते हुए कहा कि जो वैज्ञानिक आजादी मांगते हैं, उन्हें निकाला जा रहा है. अमेरिका तानाशाहों का साथ दे रहा है तो हमें हमारी स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी वापस चाहिए. ग्लक्समैन के इस बयान का इशारा साफ था कि ट्रंप की सियासत उन्हें नागवार गुजर रही है.

राफेल ग्लक्समैन ने कहा, “हमें स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी वापस दे दो… हम उन अमेरिकियों से कहने जा रहे हैं, जिन्होंने वैज्ञानिक स्वतंत्रता की मांग करने के लिए अत्याचारियों और बर्खास्त शोधकर्ताओं का पक्ष लेना चुना है – ‘हमें स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी वापस दे दो. क्योंकि हमने इसे आपको एक उपहार के रूप में दिया था, लेकिन जाहिर है, आप इसे तुच्छ समझते हैं. इसलिए यह यहां घर पर ठीक रहेगा.”

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अमेरिका का पलटवार: “हम न होते तो जर्मन बोलते”

व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने जवाब में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने कहा, “स्टैच्यू कहीं नहीं जा रहा उस फ्रांसीसी नेता को याद दिलाना चाहूंगी कि अगर अमेरिका न होता, तो फ्रांस आज जर्मन बोल रहा होता. हमें धन्यवाद कहो.” उनका ये तीखा जवाब दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिकी मदद की याद दिलाता है. दरअसल ये बहस सिर्फ स्टैच्यू तक नहीं रही बल्कि इतिहास और सम्मान की हो गई.

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दोस्ती की निशानी: 138 साल पुरानी कहानी

28 अक्टूबर 1886 को न्यूयॉर्क हार्बर में स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को खड़ा किया गया था. फ्रांस के मूर्तिकार ऑगुस्त बार्थोल्डी ने इसे बनाया, और फ्रांस ने अमेरिका को आजादी की 100वीं सालगिरह पर तोहफे में दिया. यह स्टैच्यू आजादी और लोकतंत्र का प्रतीक बनी. पेरिस में भी सीन नदी पर इसकी छोटी बहन मौजूद है, मगर ग्लक्समैन की मांग को लोग सियासी ड्रामा ज्यादा मान रहे हैं.

ट्रंप से नाराजगी: क्या है असली वजह?

ग्लक्समैन ट्रंप के कट्टर आलोचक हैं. यूक्रेन जंग को लेकर अमेरिका की नीतियों से वह खफा हैं. फ्रांस के दक्षिणपंथी नेताओं को भी वह कोसते हैं, जिन्हें वे ट्रंप और अरबपति एलन मस्क का “फैन क्लब” कहते हैं. उनकी यह मांग मूर्ति से ज्यादा एक सियासी बयान है. 

(IANS इनपुट्स के साथ)


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