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हज यात्रा के दौरान हो जाए मौत तो वापस नहीं भेजा जाता शव, जानें सऊदी में क्यों है ये नियम

भारत और पाकिस्तान वालों के रीति-रिवाज
इस साल मक्का गए अब तक 98 भारतीयों की मौत हो चुकी है. सऊदी अरब सरकार के साथ रीति-रिवाजों और नियम-कानूनों का हवाला देते हुए कर्नाटक राज्य हज समिति के कार्यकारी अधिकारी एस सरफराज खान ने पीटीआई को बताया कि हज के दौरान मरने वाले लोगों के शवों को उनके मूल स्थान पर वापस नहीं लाया जाता है. उनके शवों को संबंधित अधिकारियों द्वारा वहीं दफना दिया जाता है और मृत्यु प्रमाण पत्र भी उनके परिजनों को सौंप दिए जाते हैं.” पाकिस्तान हज मिशन के महानिदेशक अब्दुल वहाब सूमरो ने 19 जून को बताया कि 18 जून तक कुल 35 पाकिस्तानी हज यात्रियों की मौत हुई है. डॉन अखबार में सूमरो के हवाले से कहा गया कि मक्का में 20, मदीना में छह, मीना में चार, अराफात में तीन और मुजदलिफा में दो लोगों की मौत हुई है. उन्होंने कहा कि सऊदी सरकार ने हरमैन में दफनाने की व्यवस्था की है और अगर कोई पाकिस्तानी हजयात्री मांग करे तो उसके शव को उसके उत्तराधिकारियों के माध्यम से वापस देश भेजने के भी प्रबंध किए गए हैं. 

भगदड़ रूकी पर गर्मी जानलेवा
सऊदी अरब ने आधिकारिक तौर पर मौतों की जानकारी नहीं दी है, हालांकि 1000 से अधिक लोगों की मौत की खबर आ रही है. यह सभी मौतें गर्मी के कारण हुईं हैं. हालांकि मक्का के बाहरी इलाके में स्थित मीना घाटी में रमी अल-जमारात (शैतान को पत्थर मारने) की रस्म के दौरान भी बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है. पत्थर मारने की रस्म के बीच अक्सर इस स्थान पर भगदड़ मच जाती है. हालांकि, सऊदी अरब ने इसको लेकर इन दिनों इंतजाम किए हैं, जिससे हादसों पर लगाम लगी है, लेकिन गर्मी अब भी जानलेवा साबित हो रही है. अभी मक्का में करीब 52 डिग्री सेल्सियस तापमान है.   

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मक्का में रहने वालों की कैसी है जिंदगी?
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में सऊदी सरकार ने सिनेमाघरों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध हटा दिया लेकिन इसके बावजूद मक्का में कोई सिनेमाघर नहीं है. सिनेमा के लिए, निवासी लगभग 70 किलोमीटर (35 मील) दूर तटीय शहर जेद्दाह जाते हैं. मैरेज हॉल पवित्र क्षेत्रों से दूर रखे जाते हैं. वहीं की निवासी जैनब अब्दु बताती हैं, “यह एक पवित्र शहर है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए. जन्मदिन और अन्य समारोहों में संगीत बजता है, लेकिन यह बहुत तेज नहीं होना चाहिए. साल में एक बार, शहर की आबादी एक महीने तक के लिए प्रभावी रूप से दोगुनी हो जाती है क्योंकि दुनिया भर से हज यात्री आते हैं, मगर हम इसे अपनी खुशनसीबी समझते हैं. 

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“मस्जिद के आस-पास के इलाके बदल गए”
मक्का में जन्मी और पली-बढ़ी 57 वर्षीय फजर अब्दुल्ला अब्दुल हलीम बताती हैं कि पहले के दिनों में लोगों के घर तीर्थयात्रियों के लिए खुले रहते थे. अगर कोई बीमार होता था तो वे अपने घरों में उसका इलाज करते थे. वो खूबसूरत समय था. अब्दुल हलीम का पारिवारिक घर ग्रैंड मस्जिद के करीब था, इसलिए वे अपनी छत से काबा की परिक्रमा करने वाले हाजियों को देख सकते थे. मक्का के परिवार ग्रैंड मस्जिद के आसपास ही घूमते थे, क्योंकि वहां अन्य सार्वजनिक स्थान कम थे. अब्दुल हलीम ने याद किया कि वह अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ हर दोपहर नमाज के लिए वहां जाती थीं और शाम की नमाज तक वहां रहती थीं. अब शादी के बाद जेद्दाह में बसने और मक्का में रिश्तेदारों के गुजर जाने का मतलब है कि उनके पास शहर में आने के कम कारण हैं. पिछले दशक में होटलों, गगनचुंबी इमारतों, राजमार्गों और अन्य बुनियादी ढांचों के निर्माण के बाद मस्जिद के आस-पास के इलाके बदल गए हैं और पहचान में नहीं आ रहे हैं. अब्दुल-हलीम और अब्दु ने कहा कि वे पहले बिना किसी पूर्व योजना के आसानी से हज कर लेते थे, लेकिन वे दिन खत्म हो गए जब स्थानीय लोग आसानी से हज में शामिल हो सकते थे. अब उन्हें भी बाकी लोगों की तरह ही हज के लिए आवेदन करना होगा और फीस देनी होगी.
 

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