In-Depth: बांध बेकार, गाद निकालने से भी नहीं बनेगी बात, आखिर बाढ़ से कैसे बचेगा बिहार?
Bihar Flood: मैं बिहार से हूं. बचपन में मैट्रिक की परीक्षा में एक सवाल आता था. कोसी बिहार (Kosi River) का शोक क्यों हैं? दशकों गुजर गए लेकिन ये सवाल अब भी मौजूं है. बिहार हर साल बाढ़ से बर्बाद होता है. लाखों लोग अपना गांव छोड़ सड़क किनारे प्लास्टिक के नीचे रहने को मजबूर होते हैं. कोसी, गंगा, बागमती, गंडक सहित अन्य नदियां जब अपने रौद्र रूप में आती हैं तो बिहार का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाता है. खेती-किसानी सब चौपट हो जाती है. क्या इंसान क्या जानवर… सब जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में लगे होते हैं.
इस साल भी बिहार के 17 जिलों के करीब 15 लाख लोग बाढ़ की चपेट में हैं. दशकों से डूब रहे बिहार को बाढ़ से निजात दिलाने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है. लेकिन बिहार के डूबने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.
The Hindkeshariसे बातचीत में दिनेश मिश्र ने बिहार में बाढ़ के कारण, निदान के साथ-साथ सरकारी और प्रशासनिक विफलता के बारे में भी बताया. बिहार बाढ़ त्रासदी की पहली कड़ी में आपने बिहार में बाढ़ आने का कारणों के बारे में जाना. दूसरी कड़ी में बिहार में बांध निर्माण की कहानी के बारे में. अब इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट की तीसरी और फाइनल कड़ी में पढ़िए बिहार को बाढ़ से कैसे मुक्ति मिल सकती है?
तटबंध बनाने से नहीं रुकेगी बाढ़
बिहार की नदियों और बाढ़ पर डिटेल स्टडी कर चुके आईआईटीयन दिनेश मिश्र ने बताया कि अग्रेजों के भारत छोड़ने के समय बिहार में 160 किलोमीटर लंबा तटबंध था. आज 3800 किलोमीटर लंबा तटबंध है. मतलब आजादी के बाद हमने करीब 3600 किलोमीटर लंबा तटबंध बनाया. 1952 में बिहार में बाढ़ प्रवण क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था, आज 73 लाख हेक्टेयर है. ऐसे में यह कहना कि तटबंध बनाने से बाढ़ रुक जाएगी, सही नहीं होगा.
तटबंध से ड्रेनेज सिस्टम हुआ तबाह
दिनेश मिश्र ने बताया कि तटबंध बनाने से ड्रेनेज सिस्टम तबाह हो गया. पहले जब बाढ़ आती थी तो नदी किनारा तोड़कर बाहर आती थी और अपने साथ जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली फर्टिलाइजर सिल्ट भी लाती थी. तब घुटने भर पानी आता था और निकल जाता था. तटबंध बनने से पहले बाढ़ बिल्ली की तरह आती थी पर तटबंध बनने के बाद बाढ़ बाघ की तरह आती है. महीनों तक गांव के गांव, शहर और कस्बे डूब जाते हैं.
प्रकृति ने नदी को दी हैं 3 ड्यूटी
उन्होंने कहा कि मेरी समझ से प्रकृति ने नदी को कुछ ड्यूटी दी है- जितनी भी वर्षा किसी नदी के क्षेत्र में हो उसका कुछ हिस्सा तो गर्मी से वाष्प बन जाएगा, कुछ भूमिगत जल को समृद्ध करेगा और कुछ नदियों के सहारे समुद्र तक जाएगी. इससे मत्सय पालन के साथ-साथ परिवहन का विकल्प भी बनेगा. लेकिन तटबंध बनने से तीनों काम बंद हो गए.
नेपाल के डिस्चार्ज से बिहार में बाढ़ की थ्योरी गलत
नेपाल के डिस्चार्ज से बिहार में तबाही की थ्योरी को दिनेश मिश्र ने गलत बताया. उन्होंने कहा कि बाढ़ के समय कहा जाता है कि नेपाल ने पानी छोड़ा है, जिससे तबाही मचती है. यह थ्योरी गलत है. क्योंकि छोड़ेगा वहीं जिसने पकड़ कर रखा है. कोसी और गंडक पर दो तटबंध बनाकर पानी को कंट्रोल तो भारत और बिहार सरकार ने किया है. जहां बिहार के इंजीनियर रहते हैं. जो बिना सरकार की मंजूरी के पानी नहीं छोड़ते है.
कोसी को छोड़ 1989 से 2017 तक बिहार में 378 बार टूटा तटबंध
दिनेश मिश्र ने बताया कि सृष्टि की शुरुआत से नेपाल से पानी आता था. तब अनकंट्रोल आता था और पूरे इलाके पर फैलता हुए चला जाता था. लेकिन बराज बनने से पानी का रास्ता रुक गया. उन्होंने बताया कि 1989 से लेकर 2017 तक बिहार में 378 बार तटबंध टूट चुका है. जबकि सरकार की इस रिपोर्ट कोसी का जिक्र नहीं है.
गाद निकालने से भी नहीं होगा समस्या का समाधान
ऐसा सुझाव अक्सर सुनने में आता है कि तटबंधों के बीच से हर साल आने वाली गाद को हटा दिया जाए तो समस्या का समाधान हो जाएगा. तब नदी गहरी हो जाएगी और बाढ़ की समस्या का समाधान हो जाएगा. नदियों की गाद सफाई के बारे में दिनेश मिश्र ने बताया कि जितनी गाद हर साल आती है, उससे दोगुनी निकाली जाए तभी नदी की गहराई बढ़ेगी.
गाद निकलना कितना टफ, दिल्ली IIT की रिपोर्ट ने बताया
उन्होंने यह भी बताया कि 15 दिसंबर से 15 मई तक ही नदियों की गाद सफाई की जा सकती है. क्योंकि उसके बाद नदियों में पानी ज्यादा होता है. दिल्ली IIT की एक स्टडी के आधार पर उन्होंने बताया कि सहरसा के महिषी से कोपरिया तक हर साल पांच इंच नदी का तल ऊपर उठ रहा है. महिषी से कोपरिया 35 किमी की लंबाई में गाद सफाई के बारे में उन्होंने बताया कि रोज 75 हजार ट्रक पांच महीने तक लगेंगे. उसमें में 37500 ट्रक रोज आएंगे और उतने ही रोज जाएंगे.
ये ट्रक नदियों की मिट्टी लेकर कहीं जाएंगे, लेकिन कहां जाएंगे, यह निर्धारित नहीं है. इसके लिए छह लेन का एक्सप्रेस वे चाहिए. इस एक्सप्रेस हाइवे पर नए सिरे से पुल बनाने होंगे. ट्रकों की कीमत, उसके रखरखाव, डीजल पर खर्च का भी ध्यान रखना होगा.
270 किमी लंबी कोसी का गाद निकालना संभव नहीं
दिनेश मिश्र ने गाद निकालने की बात पर कहा कि देश में कोसी की लंबाई 270 किलोमीटर है. 270 किमी की गाद निकालने में कितना समय, संसाधन और खर्च आएगा आप सहज ही अंदाजा लगा सकते है. उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई अनजान शासक गाद निकासी की ऐसी योजना को स्वीकृत कर देगा तो पता चलेगा कि पूरा देश नदी से मिट्टी ही खोद रहा है.
बिहार में बाढ़ की समस्या का कैसे होगा निदान
निदान के संबंध में दिनेश मिश्र ने कहा कि पानी की निकासी पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए, तटबंध बनाने का काम उल्टा है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 2007 में 34 जगह तटबंध, 52 जगह ब्रिज, 829 जगह ग्रामीण सड़कें टूटी थी. इसके बाद भी पानी नवंबर तक नहीं निकला. जितनी जगह भी तटबंध, ब्रिज, व सड़कें टूटी थी, वहां से पानी अपना रास्ता मांग रहा था. आपको यहां से पुल देना चाहिए था, ताकि पानी निकल जाए.
85 साल से नेपाल से बेनतीजा बातचीत कर रही सरकार
नेपाल के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि 85 साल से नेपाल से बेनतीजा बातचीत चल रही है. मुख्यमंत्री अथवा सरकार का कोई जिम्मेदार अधिकारी राज्य के इंजीनियरों को बुलाकर एक मीटिंग करें और साफ कहें कि नेपाल के बांध को लेकर हमलोगों ने 85 साल इंतजार किया, लेकिन ये कब बनेगा इसका कोई पता नहीं है. तटबंध की स्थिति आप देख ही रहे हैं. आप लोग विशेषज्ञ हैं, आपलोग इसका समाधान बताईये. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि देखना होगा मीटिंग में विशेषज्ञ क्या सलाह देते हैं.
कंट्रोल फ्लडिंगः बाढ़ की तबाही कम करने का कारगर उपाय
दिनेश मिश्र ने आगे बताया कि इंजीनियरों की बैठक में शामिल .1 प्रतिशत लोग भी भलमनसाहत दिखाते हुए यदि ये बताएंगे कि तटबंधों में ही स्पिल वे बनाकर पानी निकालने का रास्ता बना दें और पानी बढ़ने पर स्पिल वे के जरिए उसे छाड़न धाराओं से बड़े क्षेत्र में फैलाए तो बाढ़ की तबाही कम होगी. इसके लिए लोगों के बीच एजुकेशन प्रोग्राम चलाए कि हम एक हद तक नदी का स्तर बढ़ने देंगे. और जब पानी बढ़ेगा तो इन छाड़न धाराओं तक हम पहुंचाने का काम करेंगे.
1907 में अंग्रेज अधिकारी ने दी थी कंट्रोल फ्लडिंग की थ्योरी
दिनेश मिश्र ने बताया कि इससे बाढ़ आएगी तो इन छाड़न धाराओं से आएगी और जाएगी. जब पानी बड़े इलाके में फैलेगा तो केवल घुटने भर पानी होगी. इससे खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी. टेक्निकल टर्म में इसे कंट्रोल फ्लडिंग कहते है. जिसे पहली बाहर बिलवर्न इंग्लिश ने रिटायरमेंट के बाद 1907 में कहा था. दिनेश जी ने बताया कि किसी एक जगह पर इसका मॉडल बनाकर मूल्यांकन किया जा सकता है.
कटाव रोकना बेहद खर्चीला काम, पूरा बजट उसी में जाएगा
कटाव रोकने के बाबत दिनेश जी ने बताया कि यह बहुत ही खर्चीला धंधा है. कुसहा त्रासदी के समय 5 जून से लेकर 18 जून तक स्पर कट रहा था. 13 दिन का समय हमारे हाथ में था. उसके पहले नदी की गतिविधि पर नजर क्यों नहीं रखी गई. कटाव क्यों नहीं रोका जा सका? कटाव रोकना खर्चीला धंधा है.
कटाव रोकने जाए तो पूरा बजट उसी में चला जाएगा. इसलिए नदी को तटबंध से दूर रखने का प्रयास करना पड़ता है. स्पर इस काम में मदद करते हैं. स्पर तक नदी के पानी को पहुंच जाने पर नदी का पहला हमला स्पर पर ही होता है. वह नदी को ठेल कर तटबंध से दूर रखने का प्रयास करता है. नदी स्पर को नीचे से काटने का भी प्रयास करती है. ऐसे में इस मुकाबले में कौन जीतेगा यह कहा नहीं जा सकता. ऐसे में स्पर कब तक बचा पाता है, कहना मुश्किल है.
सरकार की पुनर्वास नीति से लोग परेशान
पर उस पर पैनी नजर रखने से इसे रोका जा सकता है. बाढ़ इलाके के बुजुर्ग कहते हैं कि आज से 50 साल पहले हमारा गांव कट जाता था तो हम कही भी जाकर झोपड़ी बना लेते थे, कोई पूछने वाला नहीं था. लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है. सरकार की पुनर्वास नीति इतनी ऊबाऊ है कि लोगों को सालों साल बाद लाभ नहीं मिलता.
स्थानीय शोषण तंत्र बंद हो तो खेती-मछली पालन से भी कमाई
राज्य में मौजूद जल संसाधन से रोजगार के बाबत पूछे जाने पर दिनेश मिश्र ने बताया कि खेती, मछली पालन और स्थानीय उपज से संबंधित उद्योग लगाकर रोजगार का जरिया बढ़ाया जा सकता है. लेकिन मुश्किल ये है कि आपके पास बिजली, रोड सहित अन्य संसाधन नहीं है. यहीं के लोग दिल्ली, पंजाब जाकर काम करते है. लेकिन यहां नहीं करना चाहते. स्थानीय शोषण चक्र से लोग ऊब चुके है. इसमें बदलाव के बाद ही स्थितियां बदलेगी.
स्पिल वे और छाड़न धाराओं से रुकेगी तबाही
दिनेश मिश्र का कहना है, “नदियों के जल को एक हद तक रोका जाए, यदि उसके बाद भी पानी बढ़ता है तो तटबंधों पर बनाए गए स्पिल-वे के जरिए उसे छाड़न धाराओं से एक बड़े क्षेत्र में फैलाया जाए, तभी बाढ़ की तबाही कम होगी. ऐसा करने से जिन इलाकों में नदियों का पानी फैलाया जाएगा वहां के खेतों की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी. साथ ही भू-जल का स्तर भी ठीक होगा. महीनों तक बाढ़ में डूबे रहने की नौबत भी नहीं आएगी.”
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