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In-depth: 17 बार झेला हमला, 7 राज्यों में जमीन, 'रत्न भंडार' का रहस्य… जानें अद्भुत जगन्नाथ मंदिर का इतिहास


नई दिल्ली/पुरी:

देश के चार धामों में से एक 12वीं सदी में बने ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर का खजाना यानी रत्न भंडार रविवार (14 जुलाई) को 46 साल बाद खोला गया है. आखिरी बार इसे 1984 में खोला गया था. महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर के इस खजाने में 150 किलो से भी ज्यादा सोना और 250 किलो चांदी है. पुरी मंदिर के मुख्य प्रशासक अरविंद पाढ़ी ने बताया कि बाहरी रत्न भंडार का सामान लकड़ी के 6 बक्सों में शिफ्ट करके सील कर दिया गया है. आंतरिक रत्न भंडार का सामान अभी शिफ्ट नहीं किया जा सका है. इसे 19 जुलाई तक रोक दिया गया है. अब यह काम ‘बहुडा यात्रा’ और ‘सुना बेशा’ के बाद किया जाएगा. महाप्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की गुडिंचा मंदिर से जगन्नाथ श्रीमंदिर लौटने की यात्रा को ‘बहुडा यात्रा’ कहते हैं. मंदिर लौटने पर सोने के जेवरों और कपड़ों से उनका श्रृंगार किया जाता है, जिसे ‘सुना बेशा’ कहते हैं. 

जगन्नाथ मंदिर के तहखाने में एक खजाना है, जिसे ‘रत्न भंडार’ के नाम से जाना जाता है. रत्न भंडार में भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के कीमती आभूषण रखे हुए हैं, जो किसी जमाने में राजाओं ने दान किए थे. मंदिर की संपत्ति को लेकर 1978 की जांच के बाद का हिसाब तो है, लेकिन इसके बाद हर साल दान में मिलने वाले सोना-चांदी का कोई हिसाब नहीं है. आइए जानते हैं आखिर क्यों खोला गया महाप्रभु जगन्नाथ का रत्न भंडार और क्या है इसका रहस्य:-

इस साल जगन्नाथ यात्रा 7 और 8 जुलाई को हुई थी. 

क्या है जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार से जुड़ा विवाद?
1984 के बाद से जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार नहीं खोला गया है. BJP और कांग्रेस ने इसे लेकर ओडिशा सरकार से कई सवाल किए थे. BJP और कांग्रेस ने तत्कालीन नवीन पटनायक की सरकार से सवाल किया था कि‘रत्न भंडार’ को सरकार आखिर क्यों नहीं खोल रही है? सरकार कह रही है कि ‘रत्न भंडार’ के भीतरी कक्ष की चाबी नहीं है. ऐसे में ये चाबी गई कहां और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इतने दिनों से सरकार आखिर इस मंदिर के खजाने का ऑडिट क्यों नहीं करा रही है? 2018 में ओडिशा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को रत्न भंडार खोलने के लिए निर्देश दिए, लेकिन 4 अप्रैल 2018 को कोर्ट के आदेश पर जब 16 लोगों की टीम रत्न भंडार का दरवाजा खोलने पहुंची, तो चाबी ही नहीं मिली.

BJP और कांग्रेस का सवाल है कि ओडिशा सरकार ने न्यायिक आयोग की 2018 में दी गई रिपोर्ट को अब तक पब्लिक क्यों नहीं की? BJP और कांग्रेस के आरोपों पर नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल यानी BJD ने कहा है कि 1985 के बाद से ही रत्न भंडार को नहीं खोला गया है. BJP भगवान जगन्नाथ के नाम पर राजनीति कर रही है.

पिछले साल अगस्त में जगन्नाथ मंदिर मैनेजमेंट कमिटी ने राज्य सरकार से सिफारिश की थी कि रत्न भंडार 2024 की वार्षिक रथ यात्रा के दौरान खोला जाए. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के बाद ओडिशा में सरकार बदल चुकी है. BJP ने अपने मेनिफेस्टो में कहा था कि सरकार आने पर वो रत्न भंडार खुलवाएगी.

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क्यों खोला गया रत्न भंडार?
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के सुपरिंटेंडेंट डीबी गडनायक ने कहा कि मरम्मत के लिए रत्न भंडार खोला गया है. पहले रत्न भंडार का सर्वे होगा. जगन्नाथ मंदिर मैनेजमेंट कमिटी के चीफ जस्टिस रथ के मुताबिक दोनों रत्न भंडार के दोनों हिस्सों में नए ताले लगा दिए गए हैं. रत्न भंडार से निकाले गए कीमती सामानों की डिजिटल लिस्टिंग की जाएगी.

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पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा में देश-विदेश से श्रद्धालु जुटते हैं. 

कैसा है जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार?
रत्न भंडार के 2 हिस्से हैं:- बाहरी कक्ष: यहां देवताओं के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ज्वेलरी रखी गई है. जगन्नाथ मंदिर मैनेजमेंट कमिटी की ओर से हाईकोर्ट में दिए गए हलफनामे के मुताबिक, बाहरी रत्न भंडार में कुल 95.320 किलो सोना, 19.480 चांदी के जेवर हैं. इन्हें त्योहारों पर निकाला जाता है और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का श्रृंगार किया जाता है. इसकी चाबी कलेक्टर के पास होती है.

भीतरी कक्ष: ज्वेलरी के अलावा बाकी सोना रत्न भंडार के भीतरी कक्ष में रखा गया है. इसकी चाबी गायब है. जगन्नाथ मंदिर मैनेजमेंट कमिटी के हलफनामे के मुताबिक, आंतरिक भंडार में 50.6 किलो सोना, 134.50 चांदी है.

इन दोनों के अलावा एक वर्तमान रत्न भंडार भी है.  यहां 3.480 किलो सोना, 30.350 किलो चांदी है. इनका इस्तेमाल अनुष्ठानों के समय होता है.

क्या रत्न भंडार से निकले सांप?
जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार खुलने के साथ ही कई मिथक टूटे. ऐसे दावे किए गए थे कि रत्न भंडार की रखवाली सांप करते हैं. सांपों की मौजूदगी की आशंका के चलते सरकार ने मंदिर में सांपों को पकड़ने के लिए एक्सपर्ट और स्नेक हेल्पलाइन के 11 सदस्यों को तैनात किया था. यहां तक कि पुरी जिला मुख्यालय अस्पताल को एंटीवेनम स्टॉक में रखने के लिए कहा गया था. लेकिन रत्न भंडार से एक भी सांप नहीं मिला. 

किसने बनवाया जगन्नाथ मंदिर?
जगन्नाथ पुरी मंदिर की वेबसाइट पर बताया गया कि 1150 ईस्वी में ओडिशा के आसपास के इलाके में गंग राजवंश का शासन था. उस समय राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव राजा हुआ करते थे. राजा अनंतवर्मन ने ही जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया था. आज से 861 साल पहले 1161 ईस्वी में ये मंदिर बनकर तैयार हो गया था.

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पुरी जगन्नाथ मंदिर चार धामों में शामिल है. 

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जगन्नाथ मंदिर के नाम कहां-कहां है जमीन?
जगन्नाथ मंदिर के नाम पर कुल 7 राज्यों में 61 हजार एकड़ जमीन है. इनमें से ओडिशा में 60,426 एकड़ जमीन है. पश्चिम बंगाल में 322 एकड़ जमीन है. महाराष्ट्र में 28 एकड़, मध्य प्रदेश में 25 एकड़, आंध्र प्रदेश में 17 एकड़, छत्तीसगढ़ में 1.7 एकड़ और बिहार में 0.27 एकड़ जमीन जगन्नाथ मंदिर के नाम पर रजिस्टर्ड है.

जगन्नाथ मंदिर पर कब-कब हुए हमले?
पुरी जगन्नाथ मंदिर की वेबसाइट के मुताबिक मंदिर पर 17 बार आक्रमण और लूटपाट की गई थी. आक्रमणकारियों के लिए मंदिर धन-संपत्ति की लूट का एक आकर्षक स्थान था. गैर-हिंदू आक्रमणकारियों के लिए मंदिर जिहाद (धार्मिक युद्ध) प्रदर्शित करने का एक अच्छा स्थान था. हर आक्रमण के पीछे इसकी संपत्ति और अपवित्र मूर्तियों को लूटना ही मकसद था. मंदिर को नष्ट करने के लिए पहला हमला 1340 में बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने किया था. दूसरा हमला 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने किया. तीसरी बार बंगाल के सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के कमांडर इस्माइल गाजी ने 1509 में हमला किया.

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हर साल अक्षय तृतीया के दिन से जगन्नाथ यात्रा के लिए रथों का निर्माण शुरू होता है. 

जगन्नाथ मंदिर पर चौथा हमला एक अफगान हमलावर ने 1568 साल में किया था. पांचवां हमला 1592 में हुआ. छठा हमला 1601 में बंगाल के नवाब इस्लाम खान के कमांडर मिर्जा खुर्रम ने किया. सातवां हमला 1608 में हुआ. आठवां हमला हाशिम खान की सेना ने किया. नौवां हमला 1611 में हुआ. मंदिर पर दसवां हमला 1615 में और 11वां हमला इसके 2 साल बाद 1617 में हुआ.

जगन्नाथ मंदिर पर 12वां हमला 1621 में हुआ. 13वां हमला 1641 में हुआ. 14वां हमला 1647 में हुआ. 15वां हमला फतेह खान ने 1655 में किया. 16वां हमला 1692 में औरंगजेब के आदेश पर हुआ. मंदिर पर 17वां हमला 1699 में मुहम्मद तकी खान ने किया था. 

जगन्नाथ मंदिर के दिलचस्प तथ्य
जगन्‍नाथ मंदिर 4 लाख वर्गफुट में फैला है. मंदिर करीब 214 फुट ऊंचा है. इसके शिखर पर हमेशा एक लाल ध्वजा लहराती रहती है. ये ध्वजा हवा में हमेशा विपरीत दिशा में ही नजर आती है. इसे रोज शाम को बदला जाता है. ध्वजा बदलने के लिए व्यक्ति मंदिर के शिखर पर उल्टा चढ़ता और उतरता है. मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा.

मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया देख पाना भी संभव नहीं है. मान्यता है कि मंदिर के गुंबद के आसपास कभी कोई पक्षी उड़ता. पक्षी शिखर के पास भी उड़ते नजर नहीं आते. ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ सबसे ऊपर हैं, उनसे ऊपर कोई कैसे उठ सकता है.

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मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र है. ये किसी भी स्थान से देखने पर सामने ही नजर आता है. इसे नील चक्र भी कहते हैं. 

जब सिंह द्वार से मंदिर में प्रवेश किया जाता है, तो समुद्र की लहरें सुनाई नहीं देती, जबकि बाहर निकलते ही अथाह समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देने लगती है.

जगन्नाथ मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है, जहां हर रोज करीब 1 लाख लोगों का खाना बनता है. यहां भगवान को हर दिन 6 वक्त भोग लगाया जाता है, जिसमें 56 तरह के पकवान शामिल होते हैं. भोग के बाद ये महाप्रसाद मंदिर परिसर में ही मौजूद आनंद बाजार में बिकता है.

-यहां कई परिवार पीढ़ियों से सिर्फ भोग बनाने का ही काम कर रहे हैं. वहीं, कुछ लोग महाप्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाते हैं, क्योंकि इस रसोई में बनने वाले शुद्ध और सात्विक भोग के लिए हर दिन नया बर्तन इस्तेमाल करने की परंपरा है. आप मंदिर में जगन्नाथ का महाप्रसाद तो खा सकते हैं, लेकिन यहां की रसोई नहीं देख सकते.

-मंदिर की रसोई में महाप्रसाद बनने की प्रक्रिया भी दिलचस्प है. प्रसाद तैयार करने के लिए लकड़ी के चूल्हे पर मिट्टी के 7 बर्तन एक के ऊपर एक रखे जाते हैं. सब कुछ एक बार में ही पकाया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत सबसे ऊपर रखे पात्र में प्रसाद सबसे पहले बनता है. इसके बाद दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे और सातवें पात्र का प्रसाद तैयार होता है.

-भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा लकड़ी की बनी होती है. हर 12 साल बाद प्रतिमाएं बदली जाती हैं. इस मंदिर में गैर-हिंदुओं या गैर-भारतीय धर्मों के लोगों का प्रवेश वर्जित है.

-इस मंदिर में हर साल विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा निकाली जाती है. ये रथयात्रा 5 किलोमीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में होती है.


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