लाइव स्ट्रीमिंग के दौर में जज सुनवाई के दौरान संयम बरतें…. CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने ऐसा क्यों कहा
सुप्रीम कोर्ट का पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट की टिप्पणियों को हटाने का निर्देश.
दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट (Supreme Court) की ओर से जारी एक आदेश में उन टिप्पणियों को हटाने का निर्देश दिया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की गई थी. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम हाई कोर्ट की ओर से की गई टिप्पणी से आहत हैं. ये टिप्पणी न केवल गैरजरूरी हैं ,बल्कि सुप्रीम कोर्ट के साथ हाई कोर्ट (Punjab Haryana High Court) की गरिमा को भी कम करने वाली हैं. अदालत के फैसले से कोई पक्षकार तो असंतुष्ट हो सकता है, लेकिन जज कभी भी अपने से उच्च संवैधानिक फोरम की ओर से पारित आदेश पर असंतोष नहीं जाहिर कर सकते.
जस्टिस राजबीर सहरावत ने 17 जुलाई को दिए अपने आदेश में एक केस में हाई कोर्ट की ओर शुरु की गई अवमानना कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी. आज चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे कोई कार्रवाई से परहेज करते हुए उम्मीद जताई कि आने वाले दिनो में जज सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश पर बात करते वक्त ज़रूरी सावधानी बरतेंगें.
क्या है मामला?
- मामला सुप्रीम कोर्ट की आलोचना से जुड़ा है और पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट की टिप्पणियों का है.
- पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है.
- पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक असामान्य आदेश में अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी.
- हाईकोर्ट ने कहा था कि लंबित कुछ कार्यवाही के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट को निर्देश जारी करने की कोई गुंजाइश नहीं है.
- जस्टिस राजबीर सहरावत की पीठ ने कहा कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर देखा जाए तो इस प्रकार का आदेश मुख्य रूप से दो कारकों से प्रेरित होता है.
- पहला, इस तरह के आदेश के परिणाम की जिम्मेदारी लेने से बचने की प्रवृत्ति, जो संभवतः इस बहाने से उत्पन्न होने वाली है कि अवमानना कार्यवाही पर रोक का आदेश किसी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा.
- दूसरा, सुप्रीम कोर्ट को वास्तविकता से अधिक ‘सुप्रीम ‘ मानने की प्रवृत्ति और हाई कोर्ट को संवैधानिक रूप से उससे कम ‘उच्च’ मानने की प्रवृत्ति है.
अदालत में दलीलें
- AG आर वैंकटरमनी: हाईकोर्ट के इस फैसले पर दखल देना चाहिए. सिंगल जज को इस तरह का आदेश नहीं देना चाहिए था.
- SG तुषार मेहता: इसका एक वीडियो क्लिप भी है
- SG: जहां तक वीडियो का सवाल है, यह घोर अवमानना का मामला बनता है.
- जस्टिस खन्ना: एकमात्र मुद्दा यह है कि जब अपीलीय न्यायालय द्वारा रोक लगाई जाती है, तो उस आदेश का पालन किया जाना चाहिए. बहुत सी ऐसी बातों के बारे में अनावश्यक टिप्पणियां की गई हैं जो प्रासंगिक नहीं हैं.
- SG तुषार मेहता: आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को असंवैधानिक बताया गया है और डिवीजन बेंच के कुछ आदेशों को भी असंवैधानिक करार दिया गया है.
- SG तुषार मेहता: उन्होंने वीडियो में यह भी कहा कि न्यायाधीशों को न्यायिक प्रशिक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए और कभी-कभी भाव बहुत कुछ कह देते हैं, इसलिए न्यायालय को यह निर्णय लेना चाहिए कि क्या स्वत: संज्ञान से केवल टिप्पणियों पर ही गौर किया जाना चाहिए.
- वीडियो पर भी गौर किया जाना चाहिए, जो न्यायिक अनुशासनहीनता या न्यायिक अनुचितता है और इस प्रकार अवमाननापूर्ण भी है. इसे एक आम आदमी भी देख रहा है.
- CJI: हमें यह भी बताया गया है कि आदेश पर रोक लगा दी गई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर टिप्पणी करने की इस प्रवृत्ति को अनुशासन बनाए रखना होगा.
- CJI: व्यवस्था में अनुशासन होना चाहिए. हम जज की टिप्पणियों को हटाने का प्रस्ताव देते हैं. टिप्पणियां निंदनीय हैं और अवमानना की ओर ले जाएंगी.
- CJI: हम ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करेंगे जिससे एक संस्था के रूप में हाईकोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचे. हम इन टिप्पणियों को हटा देंगे.
- SG : यह वीडियो घूम रहा है, डिवीजन बेंच इसकी जांच कर सकती है.
- जस्टिस ऋषिकेश रॉय: सुप्रीम कोर्ट भी सुप्रीम नहीं है, सर्वोच्चता संविधान की है. हम सब संविधान से नीचे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में CJI की दलील
- इस अदालत ने 17 जुलाई को जस्टिस राजबीर सहरावत द्वारा पारित आदेश का स्वतः संज्ञान लिया है.
- जस्टिस सहरावत ने भारत के सुप्रीम कोर्ट के बारे में जो टिप्पणियां की हैं, वे बहुत चिंता का विषय हैं.
- देश की सर्वोच्च संस्था के रूप में उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के बीच सामंजस्य को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को असंख्य निर्णयों में दोहराया गया है और ऐसा ही एक मामला तिरुपति बालाजी डेवलपर्स केस का है.
- न्यायिक प्रणाली की हेरार्की की प्रकृति के संदर्भ में न्यायिक अनुशासन का उद्देश्य सभी संस्थानों की गरिमा को बनाए रखना है, चाहे वह उच्च न्यायालय हो या सर्वोच्च न्यायालय
- हमारा मानना है कि जज की टिप्पणियां पूरी तरह से अनावश्यक और अनुचित थीं.
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेशों का अनुपालन करना पसंद का मामला नहीं बल्कि संविधान का मामला है. पार्टियां किसी आदेश से असंतुष्ट हो सकती हैं.
- जज कभी भी उच्च न्यायालय या संवैधानिक न्यायालयों द्वारा पारित आदेश से असंतुष्ट नहीं होते हैं.
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अदालत नोटिस जारी करने के लिए इच्छुक होता, लेकिन ऐसा करने से न्यायाधीश के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू हो जाती, जिससे सर्वोच्च न्यायालय बच रहा है.
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एक जज का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे सुनवाई के दौरान अनावश्यक और अनुचित टिप्पणियां कर रहे हैं.
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लाइव स्ट्रीमिंग के इस युग में यह आवश्यक है कि जज कार्यवाही के दौरान अधिक संयम बरतें और की गई टिप्पणियों से न्यायिक प्रक्रिया को अपूरणीय क्षति हो सकती है. हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में कुछ हद तक सावधानी बरती जाएगी.
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हम इस स्तर पर किसी भी न्यायिक जांच का निर्देश देने से बचते हैं, लेकिन अपने संवैधानिक कर्तव्य के अनुसार हम हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य थे और इस प्रकार आदेश से टिप्पणियां हटा दी गई हैं.
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हम आशा करते हैं कि अदालत को भविष्य में उसी जज या इस देश के किसी अन्य जज के संबंध में इसी तरह के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना पड़ेगा.
हाई कोर्ट के जज ने आदेश को कहा था ‘बकवास’
आज सुनवाई के दौरान 17 जुलाई के इस आदेश के बाद जस्टिस सहरावत की एक अन्य मामले में की गई सुनवाई के वायरल वीडियो का भी जिक्र आया. इस वीडियो में उन्होंने डिवीजन बेंच के आदेश को बकवास करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया था. अब चीफ जस्टिस ने कहा कि सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के इस दौर में जजों की सुनवाई के दौरान ज़रूरी एहतियात बरतनी चाहिए और ऐसी टिप्पणी करने से बचना चाहिए, जो न्यायिक प्रकिया को नुकसान पहुंचाए.