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महाराष्ट्र के सियासी 'रण' में कौन कितने पानी में, सीट बंटवारे पर कहां फंसा पेच?


मुंबई:

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए महायुति और महाविकास आघाडी चुनाव तैयारी में जुट चुकी हैं. सीट शेयरिंग के मामले में महायुति की तुलना में महाविकास आघाडी में ज्यादा टकराव देखा जा रहा है. खासकर कांग्रेस और शिवसेना UBT में. महा विकास आघाडी के सहयोगियों के बीच सीट बंटवारा समझौते को अंतिम रूप देने में देरी से छोटे घटक दलों के बीच सहमति नहीं बन रही है.

जानकारी के मुताबिक कांग्रेस 105,  शिवसेना UBT 95, एनसीपी शरद पवार 84 और बाकी में समाजवादी पार्टी
जैसे छोटे घटक दल चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के नतीजें के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस की पकड़ फिर से मजबूत हुई है और ज्यादा सीट का मतलब मुख्यमंत्री का चेहरा भी कांग्रेस का हो सकता है. संकेत तो यही मिल रहे हैं.

महाराष्ट्र चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा तय!
वहींं, दूसरी तरफ महायुति में सीटों को बंटवारे को लेकर ज्यादा खटपट नही दिख रही है. यहां चुनाव में भी मुख्यमंत्री का चेहरा भले ही वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही हैं. लेकिन ज्यादा सीटें बीजेपी के हिस्से में ही हैं. बीजेपी-150 के करीब तो एकनाथ शिंदे की शिवसेना-78, अजित पवार की एनसीपी 52-54 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.

महाराष्ट्र में बदल रहे हैं समीकरण!
लोकसभा की तरह इस बार भी मराठा बीजेपी से नाराज दिख रहे हैं. लेकिन दलित वोटरों का झुकाव इस बार किधर होगा ये अभी साफ नहीं है. लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान और आरक्षण खतरे में होने का नारा अब पहले से कमजोर हो चला है. वैसे 1995 के चुनाव के पहले तक दलित और आदिवसी मतदाता कांग्रेस के साथ ही रहते थे. लेकिन बीजेपी-शिवसेना युति की पहली सरकार के बाद समीकरण बदलना शरू हो गया था.

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रामदास आठवले, प्रकश अम्बेडकर , रासु गवई जैसे नेता उभरे और दलित वोट बिखरना शुरू हो गया. जिसका फायदा बीजेपी को मिलना शुरू हो गया. हालांकि, उसके बाद से कांग्रेस ने बहुत कोशिश की है. एक बड़ा दलित चेहरा उभारने की. लेकिन वो सफल नहीं हो पाई है.

संविधान और आरक्षण का मुद्दा कितना हावी?
जानकारों की मानें तो लोकसभा में विपक्षी दलों ने बीजेपी के खिलाफ ‘संविधान और आरक्षण विरोधी’ होने की धारणा  स्थापित की, जिसके कारण बीजेपी को पूरे देश में एससी और एसटी सीटों पर भारी नुकसान उठाना पड़ा. लेकिन लेकिन इस बार मराठा उम्मीदवार  मराठा और दलित दोनों का वोट काटेंगे, जिसका नुकसान महायुति को कम महाविकास अघाड़ी को ज्यादा हो सकता है.



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