पूर्व PM शेख हसीना को ढाका भेजें भारत… बांग्लादेश ने मोदी सरकार को लिखी चिट्ठी
नई दिल्ली:
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सोमवार को कहा कि उसने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका वापस भेजने के लिए भारत को एक डेप्लोमेटिक नोट भेजा है. हसीना 5 अगस्त से भारत में निर्वासन में रह रही हैं. वह छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के बीच देश छोड़कर भारत आ गई थीं. शेख हसीना 20 साल बांग्लादेश की सत्ता में रहीं. वो 23 जून को 1996 में पहली बार पीएम बनी थीं.
ढाका स्थित अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने ‘मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार’ के लिए हसीना और उनकी कैबिनेट में शामिल मंत्रियों, सलाहकारों, सैन्य व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं.
अंतरिम सरकार में विदेश मंत्री तौहीद हुसैन ने अपने कार्यालय में संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमने भारत सरकार को एक राजनयिक संदेश भेजा है, जिसमें कहा गया है कि बांग्लादेश में न्यायिक प्रक्रिया के लिए उन्हें (हसीना) वापस ढाका भेजा जाए.”
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बांग्लादेश गृह मंत्रालय के सलाहकार ने भी लिखी थी चिट्ठी
इससे पहले दिन में गृह मंत्रालय के सलाहकार जहांगीर आलम ने कहा कि उनके कार्यालय ने भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री हसीना के प्रत्यर्पण के लिए विदेश मंत्रालय को एक चिट्ठी भेजी है. उन्होंने एक सवाल के जवाब में मीडिया से कहा, “हमने उनके (हसीना) प्रत्यर्पण के संबंध में विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा है. प्रक्रिया अभी जारी है.”
आलम ने कहा कि ढाका और नई दिल्ली के बीच प्रत्यर्पण संधि पहले से ही मौजूद है. इस संधि के तहत हसीना को बांग्लादेश वापस लाया जा सकता है.
कैसे गई हसीना की सरकार?
दरअसल, बांग्लादेश में 5 जून को हाईकोर्ट ने जॉब में 30% कोटा सिस्टम लागू किया था, इसके बाद से ही ढाका में यूनिवर्सिटीज के छात्रों ने प्रदर्शन शुरू हो गए थे. यह आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को दिया जा रहा था. यह आरक्षण खत्म कर दिया गया, तो छात्रों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी. देखते ही देखते प्रदर्शन हिंसक हो गया. 5 अगस्त को प्रदर्शनकारी PM हाउस घुस आए. जिसके बाद शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गईं. इसके बाद सेना ने देश की कमान संभाल ली. बाद में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में सलाहकार सरकार बनी.
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भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण समझौता क्या है?
भारत और बांग्लादेश के बीच साल 2013 में प्रत्यर्पण समझौता हुआ था. भारत के नॉर्थ-ईस्ट उग्रवादी समूह के लोग बांग्लादेश में छिपे हुए थे. सरकार उन्हें बांग्लादेश में पनाह लेने से रोकना चाहती थी. इसी वक्त बांग्लादेश के प्रतिबंधित संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन के लोग भारत में आकर छिप रहे थे. इसलिए दोनों देशों ने इस समस्या से निपटने के लिए ये समझौता किया था. इस समझौते के तहत दोनों देश एक-दूसरे के यहां पनाह ले रहे भगोड़ों को लौटाने की मांग कर सकते हैं.
हालांकि, समझौते के मुताबिक भारत राजनीति से जुड़े मामलों में किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है, लेकिन अगर उस व्यक्ति पर हत्या और किडनैपिंग जैसे संगीन मामले दर्ज हों तो उसके प्रत्यर्पण को रोका नहीं जा सकता.
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हसीना पर 225 केस
बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद बनी यूनुस सरकार ने शेख हसीना पर हत्या, अपहरण से लेकर देशद्रोह के 225 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं. बांग्लादेशी सरकार ने चेतावनी दी है कि भारत में रहते हुए हसीना की तरफ से दिए जा रहे बयान दोनों देशों के संबंध बिगाड़ रहे हैं. इसलिए उन्हें भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक ढाका भेजा जाना चाहिए.
हसीना ने यूनुस सरकार को बताया था फासीवादी
इस बीच शेख हसीना ने बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को फासीवादी बताया है. हसीना ने कहा कि मोहम्मद यूनुस एक फासीवादी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. ये सरकार आजादी विरोधी और कट्टरपंथियों की समर्थक है. शेख हसीना ने कहा कि देश विरोधी ताकतों ने घरेलू और विदेशी षड्यंत्रों के जरिए अवैध और असंवैधानिक तरीके से सत्ता पर कब्जा कर लिया.
बता दें कि 16 दिसंबर को बांग्लादेश में आजादी की 53वीं वर्षगांठ मनाई गई. 1971 में इसी दिन बांग्लादेश ने भारत की मदद से पाकिस्तान से आजादी हासिल की थी.
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