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अपने लिए राफ़ेल जेट हासिल करने के एक कदम करीब पहुंची भारतीय नौसेना, फ्रांस ने भेजी डिटेल्ड बिड

26 लड़ाकू विमानों के लिए भारतीय नौसेना के अनुरोध का फ्रांस ने आधिकारिक तौर पर डिटेल्ड बिड के साथ जवाब दे दिया है. भारत अब इस बिड का बारीकी से मूल्यांकन करेगी, और उसके बाद फ़्रांस के साथ कॉन्ट्रैक्ट को लेकर बातचीत शुरू करेगी. यह सौदा 5.5 अरब यूरो – लगभग ₹50,141 करोड़ – का हो सकता है. इससे पहले, भारतीय वायुसेना के लिए 36 राफ़ेल विमान खरीदे जा चुके हैं.

भारतीय नौसेना ने दोनों विमानवाहक पोतों पर मिग-29के जेट विमानों के पूरक के तौर पर राफ़ेल जेट हासिल करने की योजना बनाई है. मिग-29के अब विश्वसनीयता संबंधी दिक्कतों का सामना कर रहा है. इन्हीं दिक्कतों का ज़िक्र करते हुए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की 2016 की एक रिपोर्ट में कहा गया था, “मिग-29के, जो पोत पर तैनात बहु-उद्देश्यीय विमान है और हमारे बेड़े की हवाई रक्षा का मुख्य आधार है, समस्याओं से घिरा हुआ है…”

रिपोर्ट में कहा गया था, “सबसे अच्छे हालात हों, तो भी तैनात किए जाने वाले अवसरों पर आधे से भी कम बार मिग-29 जेट परिचालन के लिए पूरी तरह फिट हो सकेगा…”

हालांकि भारतीय नौसेना ने मिग-29के की उपलब्धता को बेहतर किया है, लेकिन फिर भी नौसेना राफ़ेल चाहती है, क्योंकि चीन भी अपना तीसरा विमानवाहक पोत कमीशन करने की तैयारी कर रहा है. नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरिकुमार ने अगस्त में कहा था, “मौजूदा समय में मिग-29 जेट INS विक्रांत के लड़ाकू बेड़े का हिस्सा हैं… अत्याधुनिक फ़्रांसीसी लड़ाकू जेट राफ़ेल-एम अब मिग-29 की जगह लेंगे…”

नौसेना सूत्रों के मुताबिक, निकट भविष्य में चीन द्वारा हिन्द महासागर में विमानवाहक पोतों के समूह का संचालन करने की पूरी संभावना है. राफ़ेल जेट हासिल करने के फ़ैसले को भी इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए.

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चीन पहले से हिन्द महासागर में जिबूती में अपना पहला विदेशी बेस संचालित कर रहा है, जहां उसने युद्धपोतों को खड़ा करना शुरू कर दिया है.

The Hindkeshariने पिछले साल सैटेलाइट तस्वीरें हासिल की थीं, जिनसे संकेत मिले थे कि अफ़्रीका के किनारे पर जिबूती में चीन का नौसैनिक अड्डा पूरी तरह ऑपरेशनल है और हिन्द महासागर क्षेत्र में तैनात चीनी युद्धपोतों को उससे मदद मिलती है.

जिबूती में चीन का बेस उसका पहला विदेशी सैन्य बेस है, जिसे 59 करोड़ अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹4912 करोड़) की लागत से बनाया गया है. यह बेस रणनीतिक तौर से अहम बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य पर स्थित है, जो अदन की खाड़ी और लाल सागर को अलग करता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण चैनलों में से एक स्वेज़ नहर के प्रवेश द्वार पर निगरानी रखता है.

कोवर्ट शोर्स (Covert Shores) के नौसेना विश्लेषक एच.आई. सटन का कहना है, “चीन का जिबूती बेस ‘किलेबंद तरीके से बनाया गया है, जिसमें सुरक्षा की मध्ययुगीन लगने वाली कई परतें हैं, और यह आज के ज़माने के औपनिवेशिक किले जैसा दिखता है… इसे साफ़ तौर पर सीधे हमलों का सामना करने के लिए डिज़ाइन किया गया है…”

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