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क्या समान नागरिक संहिता की तरफ बढ़ रहा है असम, क्या है सीएम हिमंत बिस्वा सरमा का दावा


नई दिल्ली:

असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने गुरुवार को असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम एवं नियम 1935 (Assam Muslim Marriage and Divorce Registration Act 1935) को रद्द करने के एक विधेयक को मंजूरी दी. यह कानून विशिष्ट परिस्थितियों में कम उम्र में निकाह की इजाजत देता था. विधानसभा के मानसून सत्र में इस निरसन विधेयक को पेश किया जाएगा.बीजेपी सरकार ने इस साल के शुरू में इस कानून को खत्म करने का प्रस्ताव पास किया था.गुरुवार की बैठक ने इस निर्णय को लागू करने के लिए आवश्यक निरसन विधेयक को अधिकृत किया.विपक्ष ने इस कदम को चुनावी साल में वोटरों का धुव्रीकरण करने की कोशिश बताया है.वहीं सत्तापक्ष इसे समान नागरिक संहिता बनाने की दिशा में उठाया गया पहला कदम बताया है.

क्या कहना है हिमंत बिस्वा सरमा का

मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सरमा ने एक्स पर लिखा,”हमने बाल विवाह के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा उपाय करके अपनी बेटियों और बहनों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है.”

उन्होंने कहा,”आज असम कैबिनेट की बैठक में हमने असम निरसन विधेयक 2024 के माध्यम से असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम और नियम 1935 को निरस्त करने का निर्णय लिया है.इसे निरस्त करने का निर्णय विवाह और तलाक के पंजीकरण में समानता लाने के उद्देश्य से लिया गया है.”उन्होंने कहा कि निरस्तीकरण विधेयक को अगले मानसून सत्र में विधानसभा के समक्ष विचार के लिए रखा जाएगा.

असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम एवं नियम 1935 के रद्द होने के बाद मुस्लिम विवाह या तलाक का रजिस्ट्रेशन स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के माध्यम से हो सकेगा.इसके अलावा 1935 से विवाह की उम्र में मिलने वाली छूट भी खत्म हो जाएगी.मुस्लिम विवाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर और डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार के जरिए होगा. जो काजी डिवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत काम कर रहे थे,उन्हें हटा दिया जाएगा. इसके बदले में उन्हें दो-दो लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा.

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क्या असम में भी लागू होगा समान नागरिक संहिता

असम सरकार के इस फैसले को समान नागरिक संहिता की दिशा में उठाया गया पहला कदम बताया जा रहा है.इस साल फरवरी में जब असम सरकार ने मुस्लिम मैरिज एक्ट को रद्द करने की बात शुरू की थी तो तब राज्यमंत्री जयंत मल्ल बरुआ ने कहा था कि हम समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ रहे हैं. इसी के तहत यह महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है.कैबिनेट के फैसले के बाद उन्होंने कहा उन्होंने कहा कि सीएम सरमा ने पहले ही प्रदेश में यूसीसी लागू करने की बात कही थी, इसी कदम के तहत हमने असम मुस्लिम विवाह, तलाक रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1935 को खत्म कर दिया है.

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने पर कहा था कि यह असम में भी होगा.

इस साल फरवरी में उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता विधेयक पारित किया था. उसी समय असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि असम में भी समान नागरिक संहिता लागू होकर रहेगी. 

क्या सच में असम में बढ़ रही है मुस्लिम आबादी

मंत्रिमंडल की बैठक से एक दिन पहले ही सरमा ने रांची में मीडिया से कहा था कि असम में मुस्लिम आबादी अब 40 फीसदी हो गई है. उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य में जनसंख्या में बदलाव एक बड़ा मुद्दा है. सीएम ने कहा था कि मैं असम से आता हूं और जनसंख्या में बदलाव एक बहुत बड़ा मुद्दा है. मेरे राज्य में मुस्लिम आबादी अब 40 फीसदी हो गई है, जो 1951 में 12 फीसदी थी. यह मेरे लिए कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि जीवन और मृत्यु का मामला है. सरमा झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए सहप्रभारी बनाए गए हैं.

हालांकि सरमा का यह दावा पूरी तरह से सही नहीं था. भारत सरकार की वेबसाइट ‘सेंसस इंडिया’ पर 1961 का धार्मिक सेंसस की रिपोर्ट है.इसमें 1961 में असम धर्म के आधार पर आबादी और उसके 1951 से अंतर की जानकारी दी गई है. इस डॉक्यूमेंट के चार नंबर पेज पर 1951 में मुस्लिम आबादी 19 लाख, 95 हजार 936 बताई गई है. यह उस समय की कुल आबादी का 22.60 फीसदी थी. यह 1961 की जनगणना में बढ़कर 27 लाख 65 हजार 509 हो गई. यह कुल आबादी की 23.29 फीसदी था. 

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हिमंत बिस्वा सरमा के दावे पर विपक्ष का ऐतराज

सरमा के इस दावे पर एमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था,”1951 में मुस्लिम आबादी 24.68 फीसदी थी, वह (हेमंत) झूठे हैं. उन्हें असम के मुसलमानों से नफरत है. 1951 में असम था. नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय नहीं थे.2001 में मुस्लिम आबादी 30.92 फीसदी थी और 2011 की जनगणना में 34.22 फीसदी. झूठ की वजह से पूरा प्रशासन मुसलमानों से नफरत करता है.”

वहीं लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने भी हमला किया. उन्होंने एक्स पर 19 अप्रैल को नागांव लोकसभा सीट पर सरमा के प्रचार की तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा,”रांची में हिमंत बिस्वा सरमा को भूलने की बीमारी लग रही है.सिर्फ दो महीने पहले ही उन्हें असम के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में नाचते-गाते देखा गया था.साफ है कि जब वे बीजेपी के लिए वोट मांग रहे थे तो यह उनके लिए जिंदगी और मौत का सवाल नहीं था.”

क्या कहते हैं असम के चुनाव परिणाम

सरमा असम में मुस्लिम आबादी को राजनीतिक मुद्दा बनाते रहते हैं. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने राज्य की 14 में से 11 सीटें जीती हैं. कांग्रेस के खाते में तीन सीटें आईं. बीजेपी को 2019 की ही तरह नौ सीटें मिली हैं. उसकी सहयोगी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और असम गण परिषद (एजीपी) ने एक-एक सीटें जीती हैं. चुनाव परिणाम आने के बाद सरमा ने कहा था, ”एनडीए ने असम में अपने कुल वोट शेयर में सुधार करते हुए लगभग 46 फीसदी तक पहुंचा दिया है.2019 के लोकसभा में हासिल किए गए 39 फीसदी और 2021 के विधानसभा चुनावों में 44 फीसदी से एक बड़ी छलांग.राज्य में 40 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी के बावजूद हमने यह हासिल किया है.”

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