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क्या भारत में चीन डंप कर रहा अपना सरप्लस माल? USA-Dragon ट्रेड वॉर देश के लिए मौका या संकट

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन का मानना है कि भारत को चीन के माल पर कड़ी नजर रखनी चाहिए.

नई दिल्ली:

अमेरिका (USA)ने चीन (China) के सामानों पर नया प्रतिबंध लगा दिया है. इसका क्या असर होगा? भारत (India) पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? निर्यातकों (Exporters) के संगठन FIEO की मानें तो चीन के पास इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे कई क्षेत्रों में जरूरत से ज्यादा क्षमता है और इसलिए बीजिंग और वाशिंगटन के बीच बढ़ते व्यापार युद्ध के कारण घरेलू बाजार में माल की डंपिंग के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) के अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने कहा कि उद्योग और सरकार को चीन से आयात पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और यदि वृद्धि या डंपिंग होती है, तो डाइरेक्टोरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज (DGTR) को व्यवसायों की सुरक्षा के लिए उचित कार्रवाई करनी चाहिए. डीजीटीआर (व्यापार उपचार महानिदेशालय) वाणिज्य मंत्रालय की एक जांच शाखा है, जो एंटी-डंपिंग शुल्क, सुरक्षा शुल्क और काउंटरवेलिंग शुल्क से संबंधित जांच करती है. ये विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के एक समझौते के तहत सदस्य देशों को प्रदान किए जाते हैं.

अमेरिका ने मंगलवार को चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों, उन्नत बैटरी, सौर सेल, स्टील, एल्यूमीनियम और चिकित्सा उपकरणों पर नए टैरिफ लगाने की योजना की घोषणा की है. यह एक चुनावी वर्ष का कदम हो सकता है. हालांकि, इससे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच टकराव बढ़ने की संभावना है. थिंक टैंक जीटीआरआई (GTRI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध बढ़ने से बीजिंग को भारतीय बाजारों में माल डंप करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

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अश्विनी कुमार ने बृहस्पतिवार को संवाददाताओं से कहा, “चीन कई क्षेत्रों में जरूरत से ज्यादा क्षमता पर बैठा है और ऐसे में किसी भी मामले में डंपिंग के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता है. खासकर तब जब उनके निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बंद हो.” हालांकि, कुमार ने कहा कि यह भारत और अन्य प्रतिस्पर्धियों को आपूर्ति अंतर को पाटने का अवसर भी प्रदान करता है. चीन पर अतिरिक्त शुल्क से प्रभावित उत्पादों में से भारत के पास फेसमास्क, पीपीई, सीरिंज, सुई, चिकित्सा दस्ताने, एल्यूमीनियम और लोहा और इस्पात में अवसर हैं. उन्होंने कहा, “चीन में भी अमेरिकी निर्यात पर जवाबी कार्रवाई से भारत के लिए मौका हाथ लग सकता है. बशर्ते चीन द्वारा लक्षित उत्पादों में हमारी बाजार पहुंच हो.”

लाल सागर संकट से परेशानी बढ़ी

FIEO के अध्यक्ष ने कहा कि लाल सागर संकट (Red Sea crisis) का समुद्री माल ढुलाई और हवाई माल ढुलाई दोनों पर महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. यह भारतीय निर्यात को प्रभावित कर रहा है. चूंकि परंपरागत रूप से समुद्र से भेजे जाने वाले कुछ सामान को इस संकट के कारण हवाई मार्ग से भेजा जा रहा है, इसलिए हवाई माल ढुलाई की मांग में वृद्धि हुई है. कुमार ने कहा, इससे एयर कार्गो की लागत बढ़ गई है. कुछ रिपोर्टों में भारत से यूरोप जैसे मार्गों के लिए 300 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी का सुझाव दिया गया है.

रणनीति की हो रही तलाश

अश्विनी कुमार ने कहा, “समुद्र और हवाई माल ढुलाई लागत में वृद्धि से विदेशी खरीदारों के लिए भारतीय निर्यात अधिक महंगा हो जाता है. इससे वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा को नुकसान हो सकता है. ऊंची माल ढुलाई दरों के कारण हमने कुछ ऑर्डर खो दिए हैं, खासकर धातु और वस्तुओं में.” उन्होंने यह भी कहा कि देरी और उच्च लागत भारतीय निर्यात के सुचारू प्रवाह को बाधित कर सकती है, जिससे संभावित ऑर्डर रद्द हो सकते हैं और प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है. उन्होंने कहा, “कुल मिलाकर, लाल सागर संकट भारतीय निर्यातकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रहा है. भारत सरकार और एक्सपोर्टर्स इन प्रभावों को कम करने के लिए रणनीतियों की तलाश कर रहे हैं, जैसे वैकल्पिक शिपिंग मार्गों की खोज करना और शिपिंग लाइनों के साथ बातचीत करना.”

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