देश

'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर JPC का कार्यकाल बढ़ा, राष्ट्रीय सहमति बनाने की कवायद आगे बढ़ाने की तैयारी!


नई दिल्ली:

लोकसभा ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से जुड़े दो अहम बिलों की समीक्षा के लिए गठित जॉइंट पार्लियामेंट कमिटी (JPC) का कार्यकाल बढ़ा दिया है. मंगलवार को पूर्व कानून राज्य मंत्री और JPC के अध्यक्ष पी पी चौधरी ने लोक सभा में ‘संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 तथा संघ राज्यक्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024 सम्बन्धी JPC की रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत किये जाने के लिए समय मॉनसून सत्र, 2025 के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक के लिए बढ़ाने का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसहमति से स्वीकार कर दिया गया.

दरअसल, JPC ने तय किया है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से जुड़े दो अहम बिलों की संवैधानिक वैद्यता की समीक्षा के बाद संयुक्त समिति देश के सभी राज्यों का दौरा करेगी. तैयारी आने वाले महीनों में सभी राज्य सरकारों और विधान सभाओं के प्रतिनिधियों से चर्चा करने की है.

The Hindkeshariसे एक्सक्लूसिव बातचीत में JPC के अध्यक्ष पी पी चौधरी ने कहा, “वन नेशन, वन इलेक्शन” से जुड़े दो बिलों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा के बाद ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी देश के हर राज्य में जाएगी और वहां राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों के साथ ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर विचार विमर्श करेगी.

JPC ने 8 जनवरी, 2025 से “वन नेशन, वन इलेक्शन” से जुड़े Bills की समीक्षा करने की प्रक्रिया शुरू की. पिछले ढाई महीने में हुई छे बैठकों में मुख्य फोकस “वन नेशन, वन इलेक्शन” से जुड़े बिलों की संवैधानिक वैधता पर रहा है. मंगलवार को हुई छठी बैठक में भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीएसएटी) के वर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति डीएन पटेल समिति के सामने पेश हुए और “वन नेशन, वन इलेक्शन” से जुड़े दोनों अहम बिलों की संवैधानिक वैद्यता पर समिति के सदस्यों के सामने अपना पक्ष रखा.

यह भी पढ़ें :-  'एक चुनाव' पर शशि थरूर की '362' वाली खुशी BJP के लिए कितनी टेंशन है?

सूत्रों के मुताबिक कानून विदों ने कहा – “एक राष्ट्र, एक चुनाव” व्यवस्था बहाल होने से हर साल देश में चुनावों पर होने वाला हज़ारों करोड़ का खर्च बचेगा, गवर्नेंस की क्वालिटी में सुधार होगा. पी पी चौधरी के मुताबिक, “वन नेशन, वन इलेक्शन” को लागू करने से GDP को 1.6% तक फायदा होगा, देश की जीडीपी 6 से 7 लाख करोड़ तक बढ़ जाएगी. यह पैसा पूरे देश में बटेगा, राज्यों को भी फायदा होगा.”

मंगलवार को हुई चर्चा के दौरान पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए लाखों EVMs, सुरक्षा और स्टाफ की उपलब्धता से जुडी लोजिस्टिक्स की चुनौतियों का सवाल भी उठा. JPC की बैठकों में चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय के साथ-साथ नीति आयोग के अधिकारीयों ने भी मंगलवार से भाग लेना शुरू कर दिया है. अब 2 अप्रैल को JPC ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और 21वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बीएस चौहान को चर्चा के लिए बुलाया है.

पी पी चौधरी ने The Hindkeshariसे कहा, “हमने 8 जनवरी, 2025 से “वन नेशन, वन इलेक्शन” से जुड़े Bills की समीक्षा करने की प्रक्रिया शुरू की. ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी की बैठकों में विपक्षी दलों के सांसदों के 90 फ़ीसदी सवाल One Nation, One Election की कांस्टीट्यूशनल वैलिडिटी यानी संवैधानिक वैधता पर रहे हैं. विपक्षी दलों के सांसद सकारात्मक तरीके से ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी की बैठक में विशेषज्ञों से सवाल पूछ रहे हैं. ममता बनर्जी ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” को लेकर जो सवाल उठाए हैं उसे तृणमूल कांग्रेस के सांसद ने वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी के सामने भी रखा है”

यह भी पढ़ें :-  दिल्ली शराब घोटाला मामला : कोर्ट ने AAP नेता संजय सिंह की न्यायिक हिरासत 10 नवंबर तक बढ़ाई

JPC ने वेबसाइट लांच करने का भी फैसला किया है जिस पर “वन नेशन, वन इलेक्शन” के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध होगी. पी पी चौधरी कहते हैं, “वन नेशन, वन इलेक्शन” की सोच पर नवीं कक्षा से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर तक के स्टूडेंट में Essay कंपटीशन ओर्गनइजे करना ज़रूरी होगा, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में डिबेट कंपटीशन भी होना चाहिए। हमारी कोशिश सिर्फ जॉइन पार्लियामेंट्री कमिटी में आम सहमति बनाने पर नहीं बल्कि पूरे देश में एक राष्ट्रीय सहमति बनाने की होगी”.

पूरे देश में लोक सभा और राज्य विधान सभा के चुनाव एक साथ कराने की कवायद नई नहीं है. आज़ादी के बाद, 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव 1951-52 में एक साथ कराए गए थे और यह परंपरा 1957, 1962 और 1967 में हुए तीन चुनावों में भी जारी रही.

कानून मंत्रालय की तरफ से जारी एक नोट के मुताबिक, “1968 और 1969 में कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण समकालिक चुनावों का यह चक्र बाधित हुआ था. चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, जिसके बाद 1971 में नए चुनाव हुए. पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा के विपरीत, जिन्होंने अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा किया, पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल आपातकाल की घोषणा के कारण अनुच्छेद 352 के तहत 1977 तक बढ़ा दिया गया था. तब से, केवल कुछ ही लोकसभाओं का कार्यकाल पूरे पांच साल तक चला है, जैसे कि आठवीं, दसवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं. छठी, सातवीं, नौवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं सहित अन्य को समय से पहले भंग कर दिया गया था. पिछले कुछ सालों में राज्य विधानसभाओं को भी इसी तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा है. समय से पहले विधानसभा भंग होना और कार्यकाल विस्तार एक आवर्ती चुनौती बन गई है. इन घटनाओं ने एक साथ चुनाव कराने के चक्र को पूरी तरह से बाधित कर दिया है, जिसके कारण देश भर में अलग-अलग चुनावी कार्यक्रम होने लगे हैं.”

यह भी पढ़ें :-  'वन नेशन, वन इलेक्शन' से कितना बदल जाएगा भारत का चुनाव? विधानसभाओं के बचे टर्म का क्या होगा? जानिए हर सवाल का जवाब

ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” से जुड़े दो महत्वपूर्ण बिलों पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कोई डेडलाइन तय नहीं की है. पी पी चौधरी कहते हैं, “टाइम फिक्स करना मुश्किल काम है लेकिन हमारा प्रयास होगा कि जितना जल्दी हो सके हम अपनी रिपोर्ट तैयार कर लोक सभा में पेश करें”.
 


Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button