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"न्यायपालिका हमेशा नागरिकों के लिए है और रहेगी…" : CJI के तौर पर एक साल पूरा होने पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में पदभार संभालने वाले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में शीर्ष अदालत ने पारदर्शिता बढ़ाने का काम किया. साथ ही LGBTQIA+ समुदाय को शीर्ष अदालत के भीतर शामिल करने की दिशा में कई कदम उठाए. इस दौरान CJI ने सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर फैसले सुनाए. ऐसे सुधारों की शुरुआत की, जो आने वाले समय में न्याय प्रदान करने की प्रणाली की दक्षता को बढ़ाएंगे. 

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इकोनॉमिक्स ऑनर्स के बाद किया LLB

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था. उन्होंने इकोनॉमिक्स ऑनर्स में ग्रेजुएशन किया और दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत (LLB) की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने प्रतिष्ठित InLaks स्कॉलरशिप की मदद से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की. यहां से उन्होंने मास्टर्स और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट (SJD) पूरी की. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड लॉ स्कूल, येल लॉ स्कूल और यूनिवर्सिटी ऑफ विटवॉटरलैंड में लेक्चर भी दिया है. 

पिता वाईवी चंद्रचूड़ भी CJI रहे 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (वाईवी चंद्रचूड़) देश के 16वें चीफ जस्टिस थे. वाईवी चंद्रचूड़ 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक करीब सात साल CJI रहे. यह किसी CJI का अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल है. वाईवी चंद्रचूड़ के रिटायर होने के 37 साल बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ CJI बने थे. यह सुप्रीम कोर्ट के भी इतिहास का पहला उदाहरण जब पिता के बाद बेटा भीCJI बना. 

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कई हाईकोर्ट में दे चुके सेवाएं

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट आने से पहले कई हाईकोर्ट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट में जज बनने से पहले उन्होंने गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश और दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील की तौर पर प्रैक्टिस भी की. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वकील के तौर पर भी प्रैक्टिस की थी. 1998 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट बनाया गया था. 2000 तक वह भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के रूप में काम कर चुके हैं.

पिता के कई फैसले को पलटा 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के कई फैसले चर्चित रहे हैं. इनमें वर्ष 2018 में विवाहेतर संबंधों (Adultary Law) को खारिज करने वाला फैसला शामिल है. 1985 में तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ की बेंच ने सौमित्र विष्णु मामले में आईपीसी की धारा 497 को कायम रखते हुए कहा था कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला पुरुष होता है न कि महिला. वहीं, डीवाई चंद्रचूड ने 2018 के फैसले में धारा 497 को खारिज करते हुए कहा था, “व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है, लेकिन असल में यह महिला विरोधी है.”

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डीवाई चंद्रचूड ने कहा, “शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है, फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे? व्याभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है, क्योंकि यह विवाहित पुरुष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग बर्ताव करता है.”


CJI के रूप में उनकी अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान बेंच ने बीते एक साल में कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए. इनमें दिल्ली सरकार की शक्तियों से जुड़ा फैसला, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पिछली महा विकास अघाड़ी सरकार की बहाली से इनकार और समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए समलैंगिक जोड़ों के अधिकार से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले शामिल हैं.

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CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने एक साल का कार्यकाल पूरा किया, आम लोगों को प्रभावित करने वाले अहम फैसले सुनाए

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