MUDA घोटाले में घिरे कर्नाटक सीएम सिद्धारमैया, क्या केस दर्ज होने पर चलेंगे केजरीवाल की राह
बेंगलुरु:
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार मुश्किल दौर से गुजर रही है. ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं कि अगर राज्यपाल थावरचंद गहलोत सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ़ मुकदमा चलाने की इजाज़त दे देते हैं तो इसके क्या राजनीतिक परिणाम होंगे. राज्यपाल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को भेजे कारण बताओ नोटिस में साफ पूछा है कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा चलाने की इजाज़त क्यों ना दी जाए. अगर मुकदमा चलाने की इजाज़त दी जाती है तो क्या सिद्धारमैया इस्तीफा देंगे या फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ही तरह अपने पद पर बने रहेंगे. अब सवाल ये भी है कि अगर मुकदमा दर्ज होता है तो जांच कौन सी एजेंसी करेंगी. राज्य सरकार की एजेंसियां या फिर सीबीआई, ऐसे और भी कई सवाल है.
MUDA घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की भूमिका
केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे से जब The Hindkeshariने पूछा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की MUDA के कथित घोटाले में क्या भूमिका है. इस पर उनका जवाब था कि जमीन के लेनदेन का मामला जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा महत्वपूर्ण पदों पर रहे, उनका परिवार इसमें लाभार्थी है, ऐसे में उनकी इसमें भूमिका ना हो ऐसा हो ही नही सकता. दरअसल मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली. उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया. लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया यानी एक बार फिर ये जमीन कृषि की जमीन बन गई.
1998 में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे और सरकार जे एच पटेल की थी. 2004 में डेनोटिफाई ज़मीन के एक टुकड़े को सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने खरीदा, ये जमीन 3 एकड़ 14 गुंटा थी. 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस की साझा सरकार थी और उस वक्त सिद्धारमैया उप मुख्यमंत्री ही थे. इसी दौरान जमीन के विवादास्पद टुकड़े को दुबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग किया गया. लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक़ लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था. ऐसे में MUDA से हक़ की लड़ाई शुरू हुई.
2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे. जमीन की अर्जी उनके परिवार की तरफ़ से उन तक पहुंचाया गया. लेकिन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस अर्जी को ठंडे बस्ते में डाल दिया ये कहते हुए की वो मुख्यमंत्री हैं और लाभार्थी उनका परिवार है ऐसे में वो इस फाइल को आगे नहीं बढ़ाएंगे. 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास फाइल फिर पहुंची. तब सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे. बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने MUDA के 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का फैसला किया.
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस मामले में क्या कहा
सिद्धरमैया ने पहली बात कही कि अगर उनकी नियत में खोट होता तो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहते हुए वो अपनी पत्नी की फाइल पर कार्रवाई कर सकते थे और अगर कुछ गलत था और नियमों की अनदेखी हुईं थी तो बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने उनकी पत्निं को प्लॉट्स क्यों दिए? दूसरी बात मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने ये कही कि हम इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार हैं. हम इस मामले पर कानूनी और राजनीतिक दोनों तरह से लड़ेंगे.
बीजेपी और जेडीएस का क्या आरोप
बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि साल 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया राज्य के प्रभावशाली और महत्वपूर्ण पदों पर रहे. ऐसे में उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, भले ही सिद्धारमैया सीधे तौर पर इस लेनदेन से ना जुड़े हो. लेकिन उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल ना किया हो ऐसा नहीं हो सकता.
RTI एक्टिविस्ट टी जे अब्राहम ने क्या बताया
RTI एक्टिविस्ट टी जे अब्राहम ने मैसूर में लोकायुक्त में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा दायर करवाया. लेकिन कानून के मुताबिक मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल की इजाज़त चाहिए. ऐसे में टीजे अब्राहम ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत से मुकदमा चलाने की इजाज़त मांगी.
टीजे अब्राहम ने The Hindkeshariको बताया कि डिनोटिफिकेशन जब हुआ तब सिद्धारमैया उप मुख्यमंत्री थे, लेकिन कहते हैं कि उनकी भूमिका नहीं है, कृषि भूमि जब खरीदी जो की कृषि भूमि थी ही नहीं, तब भी वो उप मुख्यमंत्री थे. लेकिन कहते हैं कि उनकी भूमिका नहीं है, जब उनकी पत्नी ने देवेदारी पेश की तब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे. लेकिन कहते हैं कि उनकी भूमिका नहीं है, अजीब हाल है.”
राज्यपाल का कारण बताओ नोटिस
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को शोकोज नोटिस भेज पूछा कि क्यों ना उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाज़त दी जाएं. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने सरकारी आवास पर सभी मंत्रियों को 26 जुलाई को नाश्ते पर बुलाया. वहां ये फैसला हुआ कि मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार करेंगे. मुख्यमंत्री का नाम MUDA घोटाले से जोड़ा गया था, ऐसे में सिद्धारमैया ने मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता नहीं की.
मंत्रिपरिषद ने तकरीबन 5 घंटे चली बैठक के बाद राज्यपाल थावरचंद गहलोत को सुझाव दिया कि टी जे अब्राहम की शिकायत को वो खारिज करें, क्योंकि राज्यपाल के जवाब तलब करने पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया है. जिसकी अध्यक्षता कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश पी एन देसाई कर रहे हैं. राज्यपाल छुट्टी पर थे और सोमवार देर रात उनके वापस बेंगलुरु लौटने की संभावना है. इसके बाद वो फैसला होगा कि आगे क्या करना है.
असल में जब इस तरह का माहौल बनता है तो फिर कई तरह की अटकलें भी लगती है. राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि हो सकता है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से पार्टी इस्तीफा देने का दबाव बनाए अगर उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाज़त राज्यपाल देते हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री कौन होगा. डीके शिवकुमार ED की जमानत पर है ऐसे में फिलहाल मुख्यमंत्री बनने की उनकी संभावना कम आंकी जा रही है. सभी की जुबान पर नाम कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे का है जिनका विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं है.