2019 से कम मतदान, क्या होगा परिणाम? लोकसभा चुनाव के पहले चरण का सीटवार Analysis
गर्मी भीषण में मतदान बूथों से मतदाताओं की दूरी
हमारे सहयोगी प्रभाकर कुमार बिहार से जुड़ रहे हैं. उन्होंने वोटिंग प्रतिशत कम रहने के बारे में समझाते हुए कहा, “पिछले चुनाव की मुकाबले इस बार चुनाव प्रतिशत में 5 से 10 फीसदी की कमी आई है.. जिसका सबसे अहम कारण है गर्मी … यहां हीटवेव चल रही है … मतदान के दिन तापमान ज्यादा था… तो इस तापमान में लोगों का घर से निकलकर बूथ पर खड़े होना और वहां पर काफी इंतजाम ना होना.. इसके लिए चुनाव आयोग और प्रशासन भी जिम्मेदार हैं… हमारे पास जानकारी आई है कि कई बूथों पर इतना भी इंतजाम नहीं था कि लोग छाया में खड़े हो सकें.. अमूमन टेंट लगा दिया जाता है, लेकिन वो भी नहीं था.. पीने के पानी की व्यवस्था भी नहीं थी.. इससे भी वोट प्रतिशत पर असर पड़ता है… दूसरा सबसे बड़ा कारण है… वो है पलयान कर चुकी जनसंख्या.. आप जब प्रतिशत निकालते हैं… तो उसमें वोटरों में रजिस्टर लोगों की संख्या और कितने वोट पड़े से निकलते हैं… एक परिवार को मानते हैं कि आठ लोगों का परिवार है.. बिहार में ज्यादातर परिवार में 3-4 बच्चे बाहर काम कर रहे हैं… वो कभी भी वोट देने नहीं आते हैं… लेकिन वोट प्रतिशत निकालते पर उन्हें भी काउंट दिया जाता है.. ऐसे में बिहार में वोट परसेंटेज कम होता दिख रहा है, उसकी मुख्य वजह है कि लोगों का पलायन बढ़ रहा है.”
उन्होंने कहा कि बिहार की जैसी राजनीतिक स्थिति है, उसमें वहां काफी उथल-पुथल हुई है. नीतीश कुमार कभी महागठबंधन में रहे थे और चुनाव से 3 महीने पहले एनडीए में वापस आ गए तो नीतीश कुमार के पलटी खाने से वोटरों में निराशा है. एलजेपी में भी हमने देखा कि चाचा-भतीजे में भी तनातनी हो गई थी. इसका भी कारण मतदान में देखने केा मिल रहा है.
राजस्थान में जातिगत राजनीति और स्थानीय मुद्दे
राजस्थान की कई लोकसभा सीटों में मतदाताओं में निराशा देखी गई है. हमारी सहयोगी हर्षा कुमारी सिंह ने बताया कि पिछले चुनाव में 64 फीसदी वोटिंग हुई था और इस बार पहले चरण में 57 फीसदी वोटिंग हुई है. यहां सबसे कम मतदान करौली-धौलपुर में 50 फीसदी, झुंझुनूं में 52 फीसदी और भरतपुर में 53 फीसदी वोटिंग हुई. उन्होंने कहा कि इन चुनावों में मतदाताओं का उत्साह नजर नहीं आया. पिछली बार का जो जीत का मार्जिन था वो कम होगा क्योंकि इन चुनावों में स्थानीय मुद्दे भी आ गए हैं और जातिगत राजनीति हावी होती नजर आ रही है… और गर्मी तो है ही.”
अमिताभ तिवारी ने कहा कि राजस्थान में राजपूत समाज में नाराजगी है. राजपूत समाज को भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. वहीं जाट समाज के सामने हनुमान बेनीवाल के इंडिया गठबंधन से जाने और किसान आंदोलन का भी मुद्दा है. वहीं आदिवासी समाज में भी संशय है. पहले चरण में राजस्थान की 25 में से 12 सीटों पर वोटिंग हुई है.
उत्तराखंड की करीब 25 जगहों पर मतदान का बहिष्कार
उत्तराखंड में लोकसभा की 5 सीटे हैं और पांचों सीटों पर पहले चरण में वोटिंग हुई है. 2024 में 55.85 फीसदी वोटिंग हुई है. यह पिछली बार की तुलना में कम है. हमारे सहयोगी किशोर रावत ने कहा कि चुनाव हमेशा अप्रैल-मई में ही हुए हैं और गर्मी हमेशा से ही एक कारण रही है. हालांकि यहां पर शादियों का सीजन है और यह भी एक कारण है कि मतदान कम हुआ है. दूसरा सबसे बड़ा कारण है कि लोगों में यह चर्चा थी कि यह अलग चुनाव है. इस बार डोर टू डोर कंवेंसिंग नहीं हुई. नेताओं ने रैलियां की.” साथ ही उन्होंने बताया कि उत्तरराखंड में करीब 25 जगहों पर लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया है और उनका कहना है कि उनकी मांगें पूरी नहीं हुई है. मांगें बड़ी नहीं थी और उनमें बिजली पानी जैसी छोटी-छोटी मांगे थीं. यह ऐसी चीजें थी कि वोटर मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंचे. वहीं एक कारण राजनीतिक दल भी हैं, जो उनकी अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे और लोगों को पोलिंग स्टेशन तक नहीं ला पाए.
बीजेपी को पश्चिम बंगाल में दिख रहा मौका
अमिताभ तिवारी ने कहा, “पश्चिम बंगाल में टीएमसी को लग रहा है कि यदि यहां पर मेहनत नहीं की तो बीजेपी बाजी मार सकती है. वहीं भाजपा को लग रहा है कि नार्थ और वेस्ट में पार्टी आखिरी सीमा तक पहुंच चुकी है, ईस्ट में जहां पर बंगाल बहुत बड़ा क्षेत्र है, जहां पर पिछली बार 12 सीटों पर बीजेपी 10 फीसदी के मार्जिन से हारी थी. यहां पर उसे अपनी सीटें बढ़ाने का एक अच्छा मौका दिख रहा है. वहीं जो तीसरा घटक है सीपीएम और कांग्रेस के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई है. उनका कैडर भी लगा हुआ है कि इस बार सफाया हो गया तो स्थायी रूप से उनका डिब्बा गुल हो सकता है. यही कारण है कि इन दलों के वोटर और सपोर्टर काफी संख्या में बाहर निकले हैं.”
नॉर्थ ईस्ट की कई सीटों पर बंपर मतदान
वहीं नॉर्थ-ईस्ट की कई सीटों पर जमकर मतदान हुआ है. इसे लेकर हमारे सहयोगी ने सीट वार राज्यों और इन सीटों के बारे में बताया है. उन्होंने कहा कि जोरहाट में वोटिंग बढ़ने का कारण है कि वहां पर कांटे की टक्कर हमें देखने को मिल रही है. कांग्रेस के नेता गौरव गोगोई चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी पिछली सीट कलियाबोर से दो बार चुनकर गए थे, वो सीट परिसीमन में हट गई और इसीलिए उन्हें जोरहाट शिफ्ट होना पड़ा. वहां के जो मौजूदा सांसद तपन गोगोई हैं. तपन गोगोई का उनके साथ सीधा मुकाबला है. भाजपा का ऊपरी असम में चुनावी अभियान के केंद्र में जोरहाट था. साथ ही उन्होंने बताया कि चुनाव के दो महीने पहले ही असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की अगुवाई में रैली और जनसभाएं शुरू कर दी थीं. इसका असर भी दिखता है.
6 जिलों के 4 लाख मतदाताओं ने नहीं डाला वोट
चौधरी ने बताया कि सिक्किम की बात करें तो वो छोटा राज्य है, लेकिन वहां पर वोटिंग प्रतिशत इसलिए भी ज्यादा हुआ क्योंकि वहां पर विधानसभा के चुनाव भी साथ हो रहे थे.
चौधरी ने बताया कि पूर्वी नागालैंड के 6 जिलों के 4 लाख से ज्यादा मतदाताओं ने एक भी वोट नहीं डाला गया क्योंकि एक स्थानीय मुद्दे पर मतदान का बहिष्कार का आह्वान किया गया था.
AIADMK बिखरी, बड़ी शक्ति के रूप में उभरी BJP
तमिलनाडु में भी जमकर मतदान हुआ है. तमिलनाडु में डीएमके ने पिछले चुनावों में 39 में से 38 सीटें जीती थीं. हमारे सहयोगी नेहाल किदवई ने बताया, “इस बार एआईएडीएमके बहुत ही कमजोर है और टुकड़ों मे बिखरी हुई है. बीजेपी और एआईएडीएमके पहले के चुनावों में साथ आते थे, लेकिन इस बार वो साथ नहीं हैं. ऐसे में बीजेपी बड़ी शक्ति के रूप में तमिलनाडु में उभरी है, इसमें कोई दो राय नहीं है. कितनी सीट जीतती है, यह देखना होगा. उसका वोटिंग परसेंटेज जरूर बढ़ेगा.”
उन्होंने कहा कि डीएमके को लगा कि उसे अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराना है तो अपने ज्यादा से ज्यादा लोगों को पोलिंग बूथ तक पहुंचाना होगा और इस बार डीएमके ने ऐसा किया है. एक बात और है कि 1967 से लेकर अब तक तमिलनाडु में जो राजनीति हुई है, वो डीएमके या एआईएडीएमके बीच विभाजित रही है. जहां कम वोटिंग हुई है, वहां एआईएडीएमके के कैडर ने देखा कि वो कमजोर हैं तो उसने किसी भी पार्टी को वोट नहीं दिया.
वोटिंग कम होने से किसी ट्रेंड का पता नहीं लगता : तिवारी
102 सीटों पर पहले चरण में 65.4 फीसदी वोटिंग हुई है, जबकि पिछले चुनाव में यह 70 फीसदी थी. इसे लेकर अमिताभ तिवारी ने कहा कि वोटिंग प्रतिशत कम होने से किसी तरह के ट्रेंड का पता नहीं लगता है. उन्होंने कम वोटिंग के कारणों पर चर्चा करते हुए कहा कि इसका एक कारण भीषण गर्मी हो सकती है, बीजेपी कैडर का ओवर कॉन्फिडेंस हो सकता है. वोटर निराश हो सकता है कि यह चुनाव तो डन डील है और कहीं कहीं जैसे राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कुछ-कुछ जातियों में असंतोष है, जिसके कारण वोट प्रतिशत पहले की अपेक्षा कम रहा है. साथ ही उन्होंने कहा कि तमिलनाडु और बंगाल में राजनीति बहुत ही प्रतिस्पर्द्धी हो गई है.
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