लोकसभा चुनाव 2024: कर्नाटक में कबसे मिल रहा है मुसलमानों को आरक्षण, और किन राज्यों में मिलता है
कर्नाटक की लड़ाई
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जाति सर्वेक्षण और सोशियो इकोनॉमिक सर्वेक्षण की बात कही है. इसके बाद से ही भाजपा ने कांग्रेस पर हमले तेज कर दिए हैं. पिछले साल बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जाति पर आधारित एक सर्वेक्षण कराया था. इसी तरह के एक सर्वेक्षण पर एक रिपोर्ट जयप्रकाश हेगड़े आयोग ने सौंपी थी. इसे कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने स्वीकार कर लिया है. जयप्रकाश हेगड़े को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में उडुपी चिकमगलूर से उम्मीदवार बनाया है.
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)का मुद्दा कर्नाटक में प्रमुखता से उठाया जा रहा है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को अहिंदा (दलित, पिछड़े और मुसलमान)नेता के तौर पर पेश किया जा रहा है. वहीं भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का सबसे बड़ा ओबीसी नेता बता रही है. कर्नाटक में सिद्धारमैया की गांरटी बनाम मोदी की गारंटी की लड़ाई में ओबीसी आरक्षण भी एक मुद्दा बन गया है. आइए देखते हैं कि कर्नाटक में आरक्षण की लड़ाई आखिर है क्या.
मंडल आयोग की सिफारिशें
भारत में पहली जातिय जनगणना अंग्रेज राज में 1931 में हुई थी. आजादी के बाद पहली सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए पढ़ाई और रोजगार में आरक्षण की व्यवस्था कर रही थी. उसी समय यह पता चला कि कई और भी जातियां पिछड़ी हुई हैं. इनका पता लगाने के लिए सरकार ने काका कालेकर आयोग का गठन 1953 में किया था. इस आयोग ने जाति जनगणना की सिफारिश की थी.
वहीं 1980 में मंडल आयोग ने देशभर में ओबीसी की 3742 जातियों की पहचान करते हुए उनके लिए 52 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की.लेकिन मंडल आयोग की सिफारिशों को मानते हुए वीपी सिंह की सरकार ने ओबीसी के लिए केवल 27 फीसदी आरक्षण लागू किया.
आरक्षण पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी तक सीमीत कर दिया. इसके साथ ही क्रिमीलेयर भी लागू कर दिया. आज यह क्रिमीलेयर आठ लाख रुपये है. आरक्षण लेने के लिए परिवार की आय आठ लाख रुपये सालाना से कम होनी चाहिए.
भारत में पहली जातिय जनगणना
मैसूर के राजा नलवागी कृष्णाराज वादियार ने 1918 में मिलर आयोग का गठन किया था. इसका मकलस गैर ब्राह्मण जातियों का प्रतिनिधित्व का पता लगाना था. वहीं आजादी के बाद गठित नागना गौड़ा आयोग ने ओबीसी के लिए नौकरियों में 45 फीसदी और शिक्षा में 50 फीसदी आरक्षण की वकालत की थी.लेकिन इससे लिंगायत को बाहर रखा गया. इससे विवाद बढ़ा और आयोग की सिफारिश पर अमल रुक गया.
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री देवराज ने 1975 में हवानूर आयोग का गठन किया. हवानूर आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 1977 में ओबीसी के तहत मुसलमानों को आरक्षण दिया.इस आयोग ने आरक्षण को तीन श्रेणियों में बांट दिया था.सरकार के इस दम को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों को ओबीसी में शामिल करने की समीक्षा के लिए एक और आयोग गठित करने को कहा. इस पर 1984 में वेंकटस्वामी आयोग का गठन किया गया. इस आयोग ने मुसलमानों को ओबीसी में शामिल करने का सुझाव दिया. लेकिन वोक्कालिगा और लिंगायतों की कुछ उपजातियों को ओबीसी से बाहर कर दिया.भारी विरोध को देखते हुए इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया.
कांग्रेस की वीरप्पा मोइली सरकार ने 1994 को मुसलमानों को श्रेणी-2 के तहत शामिल करने का आदेश दिया. इसके बाद जुलाई 1994 में सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को आधार मानते हुए जातियों को 2ए (अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ा), 2बी (अधिक पिछड़ा), 3ए (पिछड़ा) और 3बी (अपेक्षाकृत पिछड़ा) की श्रेणी में बांटने का आदेश दिया. श्रेणी 2बी में मुसलमानों के साथ-साथ बौद्ध और ईसाई धर्म अपनाने वाले अनुसूचित जाति के लोगों को भी रखा गया.इसमें मुसलमानों के लिए चार फीसदी, बौद्धों और ईसाइयों के लिए दो फीसदी आरक्षण दिया गया. इससे कुल आरक्षण 50 फीसदी से बढ़कर 57 फीसदी हो गया था.
इस सितंबर 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में कर्नाटक सरकार को कहा कि आरक्षण को 50 फीसदी तक सीमित किया जाए.फरवरी 1995 में आई एचडी देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) सरकार ने ओबीसी के 32 फीसदी आरक्षम में से मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण श्रेणी 2 बी के तहत देने का फैसला किया.
जाति जनगणना
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2015 में एक सोशियो इकोनामी सर्वे कराने का फैसला किया. इसके लिए कंथाराजू आयोग का गठन किया गया. लेकिन आयोग के रिपोर्ट देने से पहले ही सिद्धारमैया सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया. लेकिन इस आयोग की लीक हुई रिपोर्ट ने वोक्कालिंगा और लिंगायतों को आंदोलित कर दिया. बाद में आई सरकारों ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया. सरकार का कहना था कि रिपोर्ट पर आयोग के सचिव के दस्तखत नहीं हैं. इस रिपोर्ट का जयप्रकाश हेगड़े आयोग ने अध्ययन किया. हेगड़े आयोग ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सौंप दी.
इस बीच भाजपा की बसवराज बोम्मई सरकार ने दिसंबर 2022 में उन श्रेणियों को बदल दिया जिनके आधार पर मौजूदा आरक्षण दिया जा रहा था. इस दौरान आरक्षण से मुसलमानों को बाहर कर दिया गया. मुसलमानों को हटाकर वोक्कालिगा और लिंगायतों को इसमें जोड़ा गया.मुसलमानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्लूएस) के आरक्षण में शामिल कर दिया गया है.सरकार के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. मामला अदालत में लंबित होने के कारण नई आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं हो पाई है. कर्नाटक नए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मुसलमानों को चार फिसदी आरक्षण देना जारी रखा है.
भारत में कहां कहां मिलता है मुसलमानों को आरक्षण
ऐसा नहीं है कि ओबीसी कोटे के तहत केवल कर्नाटक में ही मुसलमानों को आरक्षण दिया जाता है. ओबीसी कोटे में मुसलमानों की कुछ उप जातियों को उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में भी दिया जाता है. इन राज्यों में बीजेपी या उसके सहयोगी दल की सरकार है.
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 15(4) के तहत दिया जाता है.इसमें सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है. वहीं संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया गया है.
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