"महाराष्ट्र, बंगाल और कर्नाटक…", जानें The HindkeshariBattleground में BJP के 'टारगेट' को लेकर विश्लेषकों ने क्यों लिया इन राज्यों का नाम

नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव 2024 के 4 चरण के चुनाव हो चुके हैं. पांचवें चरण के लिए 20 मई को वोट डाले जाएंगे. कुल 543 सीटों में से 379 सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला EVM में लॉक है. The Hindkeshariके एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने ‘बैटलग्राउंड’ में राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी, लोकनीति के नेशनल को-ऑर्डिनेटर संदीप शास्त्री और सी वोटर के फाउंडर डायरेक्टर यशवंत देशमुख से तमाम मुद्दों, पर उनकी राय जाननी चाही.
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महाराष्ट्र, बंगाल और कर्नाटक बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण: संदीप शास्त्री
लोकनीति के नेशनल को-ऑर्डिनेटर संदीप शास्त्री ने कहा कि बीजेपी के लिए दक्षिण भारत के राज्यों में पिछले चुनाव में बीजेपी को 29 सीट मिले थे. उसमें कुछ बढ़ोतरी हो सकती है. कर्नाटक में बीजेपी को कुछ नुकसान हो सकता है लेकिन इसकी कमी तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में हो सकता है. इसी तरह बीजेपी का प्रदर्शन बहुत हद तक बंगाल के परिणामों पर भी निर्भर करेगा. अभी के नंबर के आसपास बीजेपी रहती है या उससे अधिक होती है वो बंगाल के चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा. बंगाल में कांटे की टक्कर दिख रही है. उसी तरह महाराष्ट्र भी बेहद महत्वपूर्ण है. महाराष्ट्र में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा किसी भी दल के लिए कुछ भी भविष्यवाणी करना कठिन है. क्योंकि इनका कोई पुराना इतिहास ही नहीं है.
वोटर टर्नआउट का चुनाव परिणाम पर क्या होगा असर?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा, “चुनाव में कम वोटर टर्नआउट कोई बड़ा फैक्टर नहीं होता. आप कम वोटिंग पर्सेंटेज से ये नहीं बता सकते कि सरकार जा रही है या रिपीट हो रही है. क्योंकि ऐसा कई बार हुआ है जब वोटर टर्नआउट कम रहा, लेकिन सरकार रिपीट हुई. ऐसा भी हुआ है, जब वोटर टर्नआउट ज्यादा रहा, लेकिन सरकार बदल गई. इसबार वोटर टर्नआउट में कमी के कारण नतीजों का आकलन करना मुश्किल जरूर हुआ है.”
पीएम मोदी का वाराणसी से चुनाव लड़ना बड़ा फैक्टर
सी वोटर के फाउंडर डायरेक्टर यशवंत देशमुख ने कहा कि, “पीएम मोदी के वाराणसी से लड़ने के फैसले का आस-पास के इलाकों पर प्रभाव पड़ा. इसमें बनारस का सांस्कृतिक महत्व एक कारक रहा है. 2014 के बाद से पीएम मोदी के नेतृत्व में यहां बहुत विकास हुआ है. मुस्लिम वोटों में बदलाव से भी फर्क पड़ा है. बीजेपी को पहले एक अंक में वोट प्रतिशत मिलता था. अब उसे दो अंक में मुस्लिम वोट प्रतिशत मिलता है. ये अजीब बात है कि अगर मुसलमान बीजेपी को वोट देते हैं, तो उन्हें सरकारी मुसलमान कहा जाता है.”
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