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मकर संक्रांति पर्व : खिचड़ी के चार यार – दही, घी, पापड़ और अचार


नई दिल्ली:

भारत में मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर विभिन्न प्रांतों में प्रसाद के रूप में खिचड़ी खाई जाती है. कहीं इसे ताई पोंगल, कहीं खेचड़ा, कहीं माथल तो कहीं बीसी बेले भात कहा जाता है. नाम चाहे कुछ भी हो लेकिन इसे खाने का असली मजा दही, घी, पापड़ और अचार के साथ ही आता है. कहा भी गया है-खिचड़ी के चार यार -दही, घी, पापड़ और अचार. खिचड़ी मुगल बादशाह जहांगीर और औरंगजेब को भी बहुत पसंद थी. इतना ही नहीं, अंग्रेज भी भारत से इस पोषक आहार को ब्रिटेन लेकर गए थे जहां आज यह नाश्ते में शौक से खायी जाती है.

खिचड़ी से जुड़ी दिलचस्प जानकारी

दीनदयाल शोध संस्थान, नयी दिल्ली द्वारा भारत में खानपान की विविध परंपरा और संस्कृति पर प्रकाशित किताब ‘पोषण उत्सव’ में खिचड़ी को लेकर ऐसी ही बहुत सी दिलचस्प जानकारी दी गई हैं. संक्रांति पर्व पर देश के विभिन्न हिस्सों में खिचड़ी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की समृद्ध परंपरा है और संपूर्ण देश में अलग अलग नामों से प्रचलित खिचड़ी का ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी उल्लेख मिलता है.

किताब में बताया गया है कि यूनानी राजदूत सेल्यूकस ने भारतीय उप महाद्वीप में दाल और चावल की लोकप्रियता के बारे में उल्लेख किया है, साथ ही मोरक्को के यात्री इब्नबतूता ने भी 1550 के अपने भारतीय प्रवास के दौरान चावल और मूंग से बने व्यंजन के रूप में खिचड़ी का वर्णन किया है.

किताब में दावा किया गया है कि खिचड़ी की परंपरा इतनी पुरानी है कि 15वीं शताब्दी में भारत की यात्रा करने वाले अफानासी निकितिन ने भी खिचड़ी पर अपनी कलम चलाई. किताब के अनुसार, ‘‘ खिचड़ी मुगल साम्राज्य, विशेष तौर पर जहांगीर के समय में बहुत लोकप्रिय थी. यहां तक कि औरंगजेब को भी खिचड़ी बहुत पसंद थी.”

हैदराबाद निजामों का शाही भेाजन खिचड़ी

पुस्तक के अनुसार, 19वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत से खिचड़ी अपने देश ले गए जहां यह केडगेरे नाम से इंग्लैंड में एक नाश्ता पकवान बन गयी. इतिहास को उद्धृत कर किताब में कहा गया है कि 19वीं शताब्दी में अवध के नवाब उद्दीन शाह के समय खिचड़ी का स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें बादाम और पिस्ता भी इस्तेमाल किया जाता था और हैदराबाद के निजामों ने भी अपने शाही भेाजन में खिचड़ी को बहुत महत्व दिया.

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खिचड़ी पर लेख के अनुसार, कन्याकुमारी से लेकर खीर भवानी तक, कोटेश्वर से कामाख्या तक, जगन्नाथ से केदारनाथ तक, सोमनाथ से काशी विश्वनाथ तक, सम्मेद शिखर से श्रवणबेलगोला तक, बोधगया से सारनाथ तक, अमृतसर से पटना साहिब तक, अंडमान से अजमेर तक, लक्षद्वीप से लेह तक, पूरा भारत किसी न किसी तरह से खिचड़ी का प्रेमी है.

किताब कहती है कि “खिचड़ी एक ऐसा भोजन है जिसमें बहुत लचीलापन है. शैशवकाल का पहला भोजन खिचड़ी ही होता है. जीवन के अंतिम क्षणों में भी खिचड़ी का ही सहारा होता है. बीमार होने पर या बीमारी के बाद भी खिचड़ी एक सुपाच्य भोजन के रूप में पाचनतंत्र पर महरम की तरह काम करती है.”

किताब कहती है कि इस प्रकार पूरे भारत में खिचड़ी एक उत्सव का नाम है. मृत व्यक्ति की स्मृति में पहला गोग्रास छोड़ना हो तो भी खिचड़ी. और अब तो लग्जरी रिजार्ट के एग्जॉटिक मेन्यू में भी प्रमुख स्थान पा चुकी है खिचड़ी. लेख में खिचड़ी को लेकर प्रचलित मुहावरा ‘बीरबल की खिचड़ी’ का जिक्र करते हुए कहा गया है कि मुगल सम्राट अकबर के समय में भी खिचड़ी प्रचलित रही होगी.

लेख में उस दंतकथा का भी उपयोग किया गया है जिसके अनुसार, अपने कुछ असफल अभियानों के बाद अपनी सामरिक रणनीति को बदलने की प्रेरणा मराठा योद्धा शिवाजी को खिचड़ी से ही मिली थी. ऐसी ही कुछ कहानी महाराणा प्रताप के बारे में भी है -यानि मेवाड़ से मराठवाड़ा तक खिचड़ी का एकछत्र प्रताप.

खिचड़ी के चार यार

किताब के अनुसार, खिचड़ी मात्र एक भोजन ही नहीं बल्कि भारत की पूरी संस्कृति और भारतीय भोजन शैली की अगुवा है. इसके चार यार कहे जाते हैं -दही, घी, पापड़ और अचार. खिचड़ी को खाने का असली मजा तभी आता है जब इसे चम्मच के बजाय हाथ से खाया जाए. किताब में जानकारी दी गई है कि खिचड़ी से जुड़े त्योहार को देश के प्रांतों में विभिन्न नामों से जाना जाता है. जैसे, तमिलनाडु में इसे ताई पोंगल या उझवर तिरूनल कहा जाता है. गुजरात और उत्तराखंड में उत्तरायण पर्व पर खिचड़ी को प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है. असम में भोगाली बिहु, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रात, पंजाब में लोहड़ी, कर्नाटक में मकर संक्रमण पर्व पर खिचड़ी बनाने की परंपरा है.

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‘पोषण उत्सव’ में देश के विभिन्न राज्यों में खिचड़ी से जुड़े त्यौहारों और उनमें इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य अन्न और मसालों का भी विस्तार से ब्यौरा दिया गया है. किताब में बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश में आला/बाला खिचड़ी चना, भुना हुआ धनिया और छाछ के साथ बनायी जाती है जबकि उत्तराखंड के गढ़वाल में खिचड़ी उड़द की दाल, तिल और गर्म मसाले के साथ तैयार की जाती है.

किताब के अनुसार, उत्तर प्रदेश में आंवला खिचड़ी बहुत लोकप्रिय है तो वहीं ओडिशा में खिचड़ी को खेचड़ा कहा जाता है जहां आमतौर पर इसे अदरक और हींग के साथ बनाया जाता है. जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद में भी खिचड़ी एक महत्वपूर्ण व्यंजन है. कई जगह पर खिचड़ी को अचार, दही, आलू भर्ता, बैंगन भर्ता, दालमा और चटनी के साथ परोसा जाता हैय

पोषण उत्सव के अनुसार, आंध्र प्रदेश में संक्रांति व अन्य त्यौहारों पर मुख्य भोजन खिचड़ी ही होता है. यहां काजू के इस्तेमाल के कारण खिचड़ी गरिष्ठ होती है. केरल में इस खिचड़ी को माथन कहा जाता है और इसमें माथन यानि के लाल कद्दू मुख्य सामग्री होती है. इस प्रदेश में इमली, नारियल और करी पत्ता इसकी पौष्टिकता में और इजाफा कर देते हैं.

भारत के बाहर भी खिचड़ी लोकप्रिय

किताब में यह रोचक जानकारी दी गयी है कि भारत के बाहर भी खिचड़ी काफी लोकप्रिय है. बांग्लादेश में पौष संक्रांति, थाइलैंड में सोंगकरन, कम्बोडिया में मोहा संगक्रान, लाओस में पिमालाओ, श्रीलंका में पोंगल, उझवर तिरूनल और नेपाल में माघे संक्रांति पर खिचड़ी पकायी जाती है.

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ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान में सैनिकों के लिए खिचड़ी मुख्य आहार था और इसके लिए गांव वालों से अलग से लगान लिया जाता था जिसे ‘खिचड़ा लाग’ कहा जाता था. किताब के अनुसार, गुजरात जैसे कुछ बड़े राज्यों में विभिन्न हिस्सों में खिचड़ी के नाम बदल जाते हैं. गुजरात के काठियावाड़ में राम खिचड़ी, सूरत में सोला खिचड़ी और पारसी समुदाय में भड़ूची वाघरेली खिचड़ी चाव से खायी जाती है.

(इस खबर को The Hindkeshariटीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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