महीना जून, साल 1991, जब एक फोन कॉल ने बदल दी थी मनमोहन सिंह की जिंदगी
नई दिल्ली:
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश नम आंखों से याद कर रहा है. इस बीच उनसे जुड़ा एक ऐसा किस्सा बताते हैं, जो बहुत ही कम लोगों को पता होगा. वह फोन कॉल , जिसने देश की तस्वीर बदल दी. जून 1991 का वो दिन जब डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh Passed Away) नीदरलैंड में एक सम्मेलन में शामिल होने के बाद दिल्ली वापस लौटे थे. वह अपने घर में आराम कर रहे थे. इस बीच देर रात को एक कॉल आया. यह कॉल रिसीव किया मनमोहन सिंह के दामाद विजय तन्खा ने. फोन पर दूसरी तरफ आवाज थी पीवी नरसिम्हा राव के विश्वासपात्र पीसी एलेक्जेंडर की. एलेक्जेंडर ने विजय से उनके ससुर को जगाने की अपील की.
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कैसे वित्त मंत्री बने मनमोहन सिंह?
इस फोन कॉल के कुछ ही घंटों बाद मनमोहन सिंह और एलेक्जेंडर की मुलाकात हुई. उन्होंने डॉ. सिंह को नरसिम्हा राव की उनको वित्त मंत्री नियुक्त करने की योजना के बारे में बताया. उस समय मनमोहन सिंह यूजीसी अध्यक्ष थे. उनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं था. इसीलिए उन्होंने एलेक्जेंडर को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन नरसिम्हा राव उनको लेकर बहुत गंभीर थे.
नरसिम्हा राव के भरोसे ने बनाया वित्त मंत्री
मनमोहन सिंह के हवाले से उनकी बेटी दमन सिंह की किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरण’ में 21 जून 1991 के उस दिन का जिक्र है जब मन मोहन सिंह अपने यूजीसी ऑफिस में बैठे थे. उनसे घर जाने और तैयार होकर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए कहा गया. किताब में पूर्व पीएम के हवाले से कहा गया है कि पद की शपथ लेने के लिए लाइन में खड़ी नई टीम के सदस्य के रूप में उनको देखकर हर कोई हैरान था. हालांकि उनका पोर्टफोलियो बाद में आवंटित किया गया था. लेकिन नरसिम्हा राव ने उनको तभी बता दिया था कि वह वित्त मंत्री बनने जा रहे हैं.
1991 के सुधारों के वास्तुकार थे मनमोहन
वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह की नियुक्ति से भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा ही बदल गई. भारत एक कम-विकास वाली अर्थव्यवस्था से आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था में शुमार हो गया. मनमोहन सिंह नरसिम्हा राव के साथ साल 1991 के सुधारों के वास्तुकार थे. उन्होंने कांग्रेस के भीतर और बाहर कई तीखे हमले झेले. क्यों कि अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी. विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 2,500 करोड़ रुपये रह गया था, जो मुश्किल से 2 हफ्ते के आयात को कवर करने के लिए ही था. वैश्विक बैंक लोन देने से इनकार कर रहे थे और मुद्रास्फीति बढ़ रही थी. लेकिन मनमोहन सिंह की रणनीति से अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी.