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नीतीश, चिराग और चंद्रबाहू के इफ्तार और ईद मिलन समारोहों के बहिष्कार पर बंटे मुस्लिम संगठन

Nitish Kumar, Chirag Paswan and Chandrababu Naidu Boycott: नीतीश कुमार, चिराग पासवान और चंद्रबाहू नायडू के इफ्तार और ईद मिलन समारोहों के बहिष्कार के मुद्दे पर मुस्लिम संगठन बंटते नजर आ रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत  अध्यक्ष एडवोकेट फ़िरोज़ अहमद ने इसे गैर-जरूरी बताया और साफ किया कि इतना बड़ा डिसीजन से लेने से पहले किसी से राय-मशविरा नहीं किया गया और एकतरफा निर्णय ले लिया गया. 

फ़िरोज़ अहमद ने कहा

फ़िरोज़ अहमद ने The Hindkeshariसे कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने जिस मुद्दे पर ये डिसीजन लिया है, वो मुद्दा महत्वपूर्ण है. इस मुद्दे पर मुस्लिम समाज को एकजुट होकर बात करनी चाहिए. नीतीश, पासवान और नायडू का बायकॉट करने से अच्छा है कि इनसे मिलकर बात की जाए. बात कर इन्हें कनविंस करना चाहिए. न कि बायकॉट कर उन्हें इतना मजबूर कर दें कि वो बीजेपी के साथ ही चले जाएं. अभी वक्त है, उन्हें मनाने की कोशिश करनी चाहिए कि आपकी सेकुलर छवि है. अगर वो नहीं मानेंगे तो मुसलमानों को नुकसान होगा.  आखिरी दम तक मनाने की कोशिश करनी चाहिए. बायकॉट इस स्टेज पर प्रॉपर सॉल्यूशन नहीं है. अगर वो नहीं मान रहे तो इन नेताओं के घर पर भले ही जाकर धरना दे दें, मगर बायकॉट गलत है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने जल्दबाजी कर दी. इन्होंने किसी से बात नहीं की. हमसे भी बात नहीं की. पसमांदा-गैर पसमांदा पर सभी मुसलमानों को एकजुट करना चाहिए. वक्फ की लड़ाई भी मिलकर लड़नी चाहिए.

 जमीयत उलमा-ए-हिंद का फरमान

दरअसल, 21 मार्च को जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि खुद को सेक्युलर कहने वाले वे लोग, जो मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार और अन्याय पर चुप हैं और मौजूदा सरकार का हिस्सा बने हुए हैं, उनके खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सांकेतिक विरोध का फैसला किया है. इसके तहत अब जमीयत उलमा-ए-हिंद ऐसे लोगों के किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेगी, चाहे वह इफ्तार पार्टी हो, ईद मिलन हो या अन्य कोई आयोजन हो. मौलाना मदनी ने नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान जैसे नेताओं के बारे में कहा कि वे सत्ता की खातिर न केवल मुसलमानों के खिलाफ हो रहे अन्याय को नजरअंदाज कर रहे हैं, बल्कि देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की भी अनदेखी कर रहे हैं. 

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मौलाना मदनी ने की थी अपील

मौलाना मदनी ने देश की अन्य मुस्लिम संस्थाओं और संगठनों से भी अपील की है कि वे भी इस सांकेतिक विरोध में शामिल हों और इन नेताओं की इफ्तार पार्टियों और ईद मिलन जैसे आयोजनों में भाग लेने से परहेज करें. उन्होंने कहा कि जब देश में नफरत और अन्याय का माहौल पनप रहा है, तब इन नेताओं की चुप्पी उनके असली चरित्र को उजागर करती है. जमीयत उलमा-ए-हिंद ने देशभर में ‘संविधान बचाओ’ सम्मेलन आयोजित कर इन नेताओं को जगाने की कोशिश की, लेकिन इसका भी उन पर कोई असर नहीं पड़ा. मौलाना मदनी ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब ये नेता हमारे दुख-दर्द से कोई सरोकार नहीं रखते, तो हमें भी उनसे किसी तरह की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. इमारत-ए-शरिया ने मौलाना मदनी के इस कदम का समर्थन किया.
 



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