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बरमूडा ट्राएंगल का रहस्य: आसमान में बैठा वो 'अदृश्य दैत्य', जो निगल गया सैकड़ों प्लेन


नई दिल्ली:

बरमूडा ट्राएंगल, एक ऐसी जगह जो अपने आपमें कई रहस्यमयी कहानियां समेटे हुआ है. आप और हम इसके बारे में बचपन से ही सुनते आ रहे हैं लेकिन जब भी इसके बारे में जानने या समझने की कोशिश की तो हमेशा साइंस के इतने भारी भरकम कॉन्सेप्ट सामने रख दिए गए जिनकी मदद से इसे जानने समझने की जगह हम इससे दूरी बनाते रहे. हमे हमेशा लगता था कि काश कभी ऐसा हो कि कोई इसके बारे में हमें आसान भाषा में ही समझा दे. चलिए आज हम आपके लिए ये करते हैं…आज हम आपको बरमूडा ट्राएंगल और इससे जुड़ी तमाम उन बातों से रूबरू कराएंगे जो आजतक कई लोगों के लिए रहस्य की तरह है…

आखिर बरमूडा ट्रायंगल है क्या ? 

आसान भाषा में समझना चाहें तो ये अटलाटिंक महासागर में करीब पांच लाख स्क्वायर किलोमीटर का एक ऐसा इलाका है. जो फ्लोरिडा के पास से शुरू होकर प्यूटोरिको और बरमूडा द्वीप तक जाता है. ऐसे में ये समुद्र के अंदर एक काल्पनिक सा ट्रायंगल क्रिएट करता है. इसी पूरे इलाके को हम बरमूडा ट्रायंगल के नाम से जानते हैं. 

क्रिस्टोफर कोलंबस ने इसे लेकर क्या कहा था

जहां तक बात इस ट्राएंगल के खोज की है तो इसका श्रेय जाता है क्रिस्टोफर कोलंबस को. ऐसा माना जाता है कि इस रास्ते (इस ट्रायंगल के रास्ते) से सबसे पहले कोलंबस ही गुजरा था. कोलंबस ने इसका जिक्र अपनी किताब में भी किया है. उन्होंने इस ट्रायंगल का जिक्र करते हुए कहा है कि

जब मैं 1498 में इस रास्ते से आगे बढ़ने लगा तो मैंने देखा कि मौसम में एकाएक बदलाव आ गया. और समुद्र की लहरें काफी तेजी से ऊपर उठने लगी. सामने आसामान में बिजली चमक रही थी और हर तरफ बेहद तेज हवाओं के चलने का शोर था

बरमूडा ट्रायंगल आखिर क्यों है डेविल ट्रायंगल ?

बरमूडा ट्रायंगल में आजतक इतनी अधिक घटनाएं हो चुकी हैं कि कई लोग इसे डेविल ट्राएंगल भी कहकर बुलाते हैं. इसे यह नाम सबसे पहले 1964 में विनसेंट गैडिज ने दिया था.

उन्होंने अपनी किताब में बताया था कि यह ट्राएंगल किस तरह से जहाजों को निगल लेता है. जहां से होकर जो भी गुजरना चाहता है वह कभी वापस नहीं आता. इसी वजह से डेविल ट्राएंगल है. 

यहां से गुजरते ही होने लगती है अप्रिय घटनाएं 

कहा जाता है कि इस इलाके में जाने के बाद कई तरह की अप्रिय घटना खुद-ब-खुद होने लगती हैं. जैसे कि कभी जहाज का इंजन अपने आप काम करना बंद कर देता है. जहाज खुद पानी के अंदर धंसने लगता है, अगर कोई पानी में तैरना चाहे तो उसे तैरने में दिक्कत होती है. यहां हुई सबसे बड़ी घटनाओं की अगर बात करें तो अगस्त 1942 में अमेरिकी नौसेना के जहाज इसी बरमूडा ट्राएंगल के ऊपर से लौट रहे थे, तभी अचानक उनका संपर्क रेडियो स्टेशन से टूट जाता है. और उनका नेविगेशन सिस्टम फेल हो जाता है. इस जहाज को ढूंढने जब रेस्क्यू टीम रवाना की गई तो उनका भी आज तक कुछ पता नहीं चल सका है. 

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कहा तो यहां तक जाता है कि इस ट्राएंगल के इलाके में घुसते ही कंपास और विमानों के नेविगेशन टूल तक बंद पड़ जाते हैं.

इसी तरह 1942 में ही दिसंबर के महीने में जब अमेरिका का एक और लड़ाकू विमान इस ट्राएंगल के ऊपर से गुजरने की कोशिश करता है तो इसके साथ भी वही होता है जो पहले वाले जहाज के साथ हुआ था. इसका पायलट बताता है कि उसका नेविगेशन काम नहीं कर रहा है. 

क्यों गायब हो जाते थे जहाज ? 

बरमूडा ट्रायंगल के इतने खतरनाक होने और यहां से गुजरने वाले जहाजों के गायब होने के कारणों का पता लगाने के लिए कई शोध किए गए हैं. लेकिन किसी भी शोध में आज तक यह साफ नहीं हो पाया है कि इस ट्राएंगल में प्रवेश करते ही ऐसा कैसे और क्यों होता है. और जो जहाज आज तक यहां से गायब हुए हैं वो आखिर गए कहां ? हालांकि, कई अलग-अलग वैज्ञानिक इस ट्राएंगल को लेकर अलग-अलग तर्क देते हैं. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जहाजों के साथ होने वाली अप्रिय घटना यहां मौसम में एकाएक हुए बदलाव की वजह से होता है.

बरमूडा ट्राएंगल के आसपास के मौसम पर शोध कर वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि इस ट्राएंगल के ऊपर खतरनाक हवाएं चलती हैं और इनकी रफ्तार 170 मील प्रति घंटे रहती है. ऐसे में जब कोई जहाज एकाएक इतनी तेज गति से चल रही हवाओं के संपर्क में आता है तो उसका संतुलन बिगड़ जाता है और वह हादसे का शिकार हो जाता है. 

पहले क्या इस वजह से होती थी ज्यादा घटनाएं ? 

कुछ लोगों को कहना है कि पहले के मुकाबले अब बरमूडा ट्राएंगल में होने वाली घटनाओं की संख्या में काफी कम हुई है. इसकी एक वजह उन्नत तकनीक का इस्तेमाल भी है. तकनीक के इस्तेमाल से आज ऐसे रडार औऱ सोनार तैयार किए गए हैं जो यात्रा के दौरान समुद्री जहाजों को पानी के नीचे मौजूद खतरों के बारे पहले ही बता देते हैं. लेकिन आज से 50 साल से पहले उस समय के पानी के जहाजों के पास इस तरह का तकनीक नहीं था. ऐसे में मौसम में बदलाव से लेकर पानी के नीचे मौजूद बड़े पत्थर के खतरों के बारे में उन्हें पहले मालूम नहीं चल पाता था. 

तो ये हैं बरमूडा ट्रायंगल में हादसों की कुछ प्रमुख वजहें ?

अलग-अलग समय पर विभिन्न वैज्ञानिकों ने बरमूडा ट्राएंगल से गुजरने वाले जहाजों के साथ हादसे की वजह को अलग-अलग बताया है. इन तमाम वैज्ञानिकों द्वारा दी गई थ्योरी को मिलाकर अगर ये आकंलन करने की कोशिश करें कि आखिर यहां होने वाली घटनाओं के पीछे की वजह क्या रही होगी तो हम दो से तीन निष्कर्ष पर पहुंचेंगे….

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1- समुद्र के नीचे होने वाले ज्वालामुखी विस्फोट के कारण 

वैज्ञानिकों की एक थ्योरी ये कहती है कि बरमूडा ट्राएंगल जिस जगह है वहां समय-समय पर ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं. ऐसे में समुद्र के नीचे जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है इसकी वजह से धरती के अंदर से कई तरह की गैस बाहर निकलती है. इनमें मिथेन गैस भी शामिल है. ऐसे में ज्वालामुखी विस्फोट के बाद जब मिथेन गैस समुद्र के पानी से मिलता है तो वह समुद्र की डेंसिटी यानी उसके घनत्व को कम कर देता है. चुकी इन जहाजों को समुद्र की ज्यादा डेंसिटी के हिसाब से डिजाइन किया जाता है.

ऐसे समुद्र के पानी की डेंसिटी घटने के बाद जहाज एकाएक नीचे धंसने लगते हैं. लिहाजा यहां कई जहाज उस गति से नहीं बढ़ पाते हैं. औऱ इंजन पर ज्यादा जोर पड़ने वह वो फेल तक हो जाते हैं. 

2- इस वजह से चलती हैं तेज हवाएं 

इस ट्राएंगल के शोध के दौरान वैज्ञानिकों को पता चला कि बरमूडा के आसपास के इलाकों में छोटे-छोटे समुद्री पहाड़ हैं. अब ऐसे में जब हवाएं इन पहाड़ियों से टकराती हैं तो उनमें एक हलचल शुरू हो जाती है. औऱ ये देखते ही समुद्र के पानी के अंदर भी एक बड़ा सा चक्रवात बना देती हैं. और ये हवा बादलों औऱ समुद्र के पानी को एक बड़े लहर में तबदील कर देते हैं. ऐसे में अगर वहां से गुजर रहा कोई हवाई जहाज या पानी का जहाज इन लहरों की चपेट में आता है वो अपना संतुलन खो देता है. इस दौरान यहां हवा की गति भी काफी तेज पाई जाती है. 

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3- समुद्र के अंदर के चट्टानों के कारण भी होते हैं हादसे

बरमूडा ट्राएंगल के अंदर कई जगहों पर समुद्र के अंदर बड़े-बड़े चट्टान पाए जाते हैं. कई बार बड़े पानी के जहाज पानी के नीचे इन चट्टानों का अंदाजा नहीं लगा पाती हैं. इस वजह से कई बार इनसे टकराने से जहाज को बड़ी क्षति पहुंचती हैं और वो डूब सकते हैं. हालांकि, बीते कुछ समय से नई तकनीक के इस्तेमाल से इस तरह की घटनाओं में काफी कमी आई है. 

विमानों पर भी पड़ता है इस वजह से असर

समुद्र के पास जब हवा का बड़ा बवंडर या चक्रवात बनता है तो इसका असर समुद्र के ठीक ऊपर वायुमंडल में भी देखने को मिलता है. कई बार चक्रवात की वजह से वायुमंडल में भी हवा इतनी तेज गति से चल रही होती है कि उस दौरान अगर उल्टी दिशा से आ रहा कोई विमान उसकी चपेट में आ जाए तो वो टूट भी सकता है. वहीं अगर विमान हवा की दिशा में ही जा रहा हो तो उसकी गति कई गुणा बढ़ जाता है. 


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