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1995 में नरसिम्हा सरकार ने बढ़ाई थी पावर, अब होगी कम, क्या वक्फ बोर्ड, समझिए


नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड पर अंकुश लगाने की तैयारी शुरू कर दी है. सूत्रों के मुताबिक़ नरेंद्र मोदी सरकार ने वक्फ क़ानून में संशोधन के बिल को मंजूरी दे दी है. वक्फ बोर्ड से किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति बनाने का अधिकार वापस होगा. शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में वक्फ क़ानून में क़रीब चालीस संशोधनों को मंजूरी मिली है. माना जा रहा है कि अगले सप्ताह ये बिल संसद में लाया जा सकता है. संशोधनों के अनुसार अब वक्फ बोर्ड जिस भी संपत्ति पर दावा करेगा उसका सत्यापन करना अनिवार्य होगा. इसी तरह वक्फ की विवादित संपत्तियों का भी सत्यापन ज़रूरी होगा. बता दें कि साल 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वक्फ बोर्डों को  जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार प्रदान करते हुए उसकी ताकत बढ़ा दी थी. पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने वक्फ बोर्ड अधिनियम में कई बदलाव किए थे.

वक्फ अधिनियम पहली बार साल 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था. लेकिन बाद में इसे निरस्त कर दिया गया था और साल 1995 में नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया था. जिससे वक्फ बोर्डों को अधिक अधिकार दिए गए. बाद में वर्ष 2013 में संशोधन पेश किए गए, जिससे वक्फ को इससे संबंधित मामलों में असीमित और पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त हुई.

वक्फ बोर्ड क्या होता है?

वक्फ का मतलब होता है ‘अल्लाह के नाम’. यानी ऐसी ज़मीनें जो किसी व्यक्ति या संस्था के नाम नहीं है. लेकिन मुस्लिम समाज से संबंधित हैं, वो वक्फ की ज़मीनें होती हैं. इसमें मस्ज़िद, मदरसे, क़ब्रिस्तान, ईदगाह, मज़ार और नुमाइश की जगहें आदि शामिल हैं. एक वक्त के बाद ऐसा देखा गया कि ऐसी ज़मीनों को ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल किया जा रहा है और यहां तक की बेचा जा रहा है. ऐसे में वक्फ बोर्ड मुस्लिम समाज की ज़मीनों पर नियंत्रण रखने के लिए बनाया गया था. वक्फ की ज़मीनों के बेजा इस्तेमाल को रोकने और ज़मीनों को ग़ैर क़ानूनी तरीक़ों से बेचने से बचाने के लिए वक्फ बोर्ड बनाया गया था.

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वक़्फ़ कितने प्रकार के होते हैं?

– शिया वक़्फ़ बोर्ड 
-⁠सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड 

वक्फ अलल औलाद – ये वो ज़मीनें होती हैं जो किसी व्यक्ति ने मुस्लिम समाज के कल्याण के लिए दान दे दी हों. दान देने के बाद ये ज़मीन मुस्लिम समाज के इस्तेमाल में होती हैं. लेकिन इसका मैनेजमेंट दानदाता के परिवार के पास होता है. परिवार के सदस्य ऐसी ज़मीन को बेच नहीं सकते. लेकिन उसके इस्तेमाल पर फ़ैसला ले सकते हैं. 

वक्फ अलल ख़ैर – इन ज़मीनों का कोई मालिक नहीं होता. वक्फ बोर्ड के अधीन आने वाली इन ज़मीनों पर बोर्ड किसी व्यक्ति को इसका मैनेजर बना देता है. वक्फ बोर्ड की भाषा में इस मैनेजर को मुतवल्ली कहते हैं. मुतवल्ली इस ज़मीन का समाजहित में काम लाने के लिए काम करता है. वो अपने विवेक से किसी को ज़मीन दे नहीं सकता. 

यूपी में वक़्फ़ की कितनी ज़मीनें हैं?

उत्तर प्रदेश में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के पास 1,23,000 ज़मीनें हैं. जबकि ⁠शिया वक़्फ़ बोर्ड के पास कुल 3102 ज़मीनें हैं. कम होने के बावजूद शिया बोर्ड की ज़मीनें जहां-जहां हैं, उनका टुकड़ा काफ़ी बड़ा-बड़ा है.

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