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IPC और CrPc की जगह लेंगे नए कानून, अगले हफ्ते संसद में पेश होंगे नए बिल

दरअसल, भारत सरकार बुनियादी कानूनों इंडियन पीनल कोड ( IPC ), 1860, द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर ( CrPC), 1973, और इंडियन एविडेंस एक्ट ( IEA ), 1872 में बदलाव के लिए 2 कानून लेकर आई है. IPC की जगह, भारतीय न्याय संहिता बिल, CrPC की जगह, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल और IEA की जगह भारतीय साक्ष्य बिल लाया जाएगा. यह बिल सिर्फ संशोधन बिल नहीं है, जो कुछ समस्याओं के समाधान के लिए लागू किया जाए, बल्कि ये बिल पूरे कानून को बदल देंगे. ये बिल मौजूदा क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बुनियादी बदलाव करने का मौका देते हैं. यहां पर गौर करने वाली बात है कि इन कानूनों का अंग्रेजी में भी यही नाम होगा.

IPC क्या है?

सिविल लॉ और क्रिमिनल भी IPC यानी भारतीय दंड संहिता के तहत आते हैं. गंभीर अपराधों के मामले में आईपीसी की धाराएं लगाई जाती हैं. IPC भारतीय नागरिकों के अपराधों की परिभाषा के साथ उसके लिए तय दंड को बताती है. इसमें 23 चैप्टर हैं और 511 धाराएं हैं. इसकी धाराएं भारतीय सेना पर लागू नहीं होती.

कितना अलग है CrPC?

आमतौर पर थानों में मामले आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज होते है, लेकिन इनकी जांच की प्रक्रिया में CrPC का इस्तेमाल किया जाता है. इसका पूरा नाम है- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (Code of Criminal Procedure). आसान भाषा में समझें तो पुलिस अपराधिक मामलों को आईपीसी के तहत दर्ज करती है, लेकिन उसके बाद की प्रक्रिया सीआरपीसी के तहत चलती है. इसे उदाहरण से समझ सकते हैं.

सरकार की ओर से कहा गया कि 18 राज्यों, 6 केंद्र शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 22 हाई कोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसदों और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं. चार साल की चर्चा और इस दौरान 158 बैठकों के बाद सरकार ने बिल को अगस्त में पेश किया था. इन बदलावों के लिए पहली बैठक सितंबर 2019 में संसद भवन के पुस्तकालाय के रूम नंबर जी-74 में हुई थी.

कानूनों में क्या होंगे बदलाव?

IPC में अभी 511 धाराएं हैं. इसकी जगह पर भारतीय न्याय संहिता लागू होने के बाद इसमें 356 धाराएं बचेंगी. यानी 175 धाराएं बदल दी जाएंगी. 8 नई जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं खत्म होंगी. इसी तरह CrPC में 533 धाराएं बचेंगी. 160 धाराएं बदलेंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 खत्म होंगी. पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान होगा, जो पहले नहीं था.

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सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा. देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं. इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं. इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं. तीनों बिल जांच के लिए संसदीय कमेटी के पास भेजे गए हैं. इसके बाद इन्हें लोकसभा और बाद में राज्यसभा से पास कराया जाएगा.

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