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4 हजार फीट ऊंची और 25 एकड़ में फैली बंजर पहाड़ी पर ला दी हरियाली, केसर से लेकर नींबू तक उगा रहे

जब उन्होंने शुरूआत में पौधे लगाने शुरू किए तो आसपास रहने वाले गांव वालों ने इसका विरोध किया. उनका कहना था कि आज तक यहां कोई पेड़ नहीं उगा और वे भी यहां पेड़ लगाने का विचार त्याग दें, लेकिन प्रोफेसर शंकर लाल का जुनून कहां हार मानने वाला था. शुरुआती दौर में शंकर लाल गर्ग ने यहां नीम, पीपल,नींबू  आदि के पेड़ लगाना शुरू किए. धीरे-धीरे यहां पेड़ों की संख्या बढ़ने लगी. आज 8 साल बाद यहां कुल 40 हजार से ज्यादा पौधे हैं. प्रोफेसर साहब का लक्ष्य यहां 50 हजार पौधे लगाने का है.

ऐसे उगाया केसर

इस पहाड़ पर कश्मीर में ही उगाए जाने वाले केसर को भी उगाया जाता है, इसी से इसका नाम केसर पर्वत पड़ा. शुरुआत में इसके बीज कश्मीर से मंगाए गए. पहले साल में कुल पांच फूलों को उगाने में सफलता मिली. इसी के अगले साल से गर्मियों में फ्रिज में पानी रख ठंडा किया जाता था और वही पानी पौधों को दिया जाता था. केसर की खेती के लिए यहां छायादार स्थिति बनाई गई. दिन में करीब 18 डिग्री और रात में 5डिग्री के करीब तापमान मेंटन किया जाता है. इसके लिए इन पौधों पर फ्रिज में रखे पानी का स्प्रे किया जाता है. ये कमाल इसलिए है क्योंकि आम तौर पर मालवा में गर्मियों में तापमान 40 डिग्री से भी ऊपर रहता है.

मुश्किलें बहुत आईं

पथरीली जमीन होने के कारण पहले कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा. शुरू में जमीन पर गड्ढे खोदने से लेकर पानी पहुंचाना तक असंभव था. 3 से 4 बार बोरिंग और कुंए की खुदाई करने के बावजूद पानी नहीं निकाला जा सका. इसके बाद यहां लगे पौधों को पानी देने के लिए पानी खरीदने का फैसला किया गया. इस पानी को इकट्ठा करने के लिए तालाब बनाया गया. इसके बाद यहां इकट्ठा हुए पानी को ऊपर मौजूद टंकी में भेजा गया. वहां से ड्रिप इरीगेशन के जरिए वैज्ञानिक तरीके से पौधों को पानी पहुंचाया गया.

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इस पहाड़ी की हरियाली में कोई खाद नहीं है . बारिश के दौरान पानी में नाइट्रोजन सल्फर मौजूद होता है और वही पौधों के लिए साल भर पर्याप्त है. अब इस पथरीली पहाड़ी पर सेब, केसर, मौसंबी, संतरा, अनार, रामफल, इटली का जैतून, मैक्सिको के खजूर, थाइलैंड का ड्रैगन फ्रूट, आस्ट्रेलिया के एवाकाडो , ओलिव,पाइनएप्पल और कई तरह के फूल-फल और पौधे मौजूद हैं. देश के सबसे साफ शहर को प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है, जो नहीं मिला उसे इंदौरियों ने अपनी जिद और जुनून से हासिल कर लिया. 



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