कभी मुगलों के खिलाफ लड़कर बनाया था इतिहास, अब महाराणा के वंशज 'गद्दी' के लिए आपस में लड़ रहे
जयपुर:
भारतीय इतिहास के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित राजपूत शासकों में से एक महाराणा प्रताप ने आत्मसम्मान के लिए लगभग 450 साल पहले मुगल बादशाह अकबर के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी लेकिन उनके वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ को इस पूर्व राजपरिवार की ‘गद्दी’ संभालने के बाद सड़क पर संघर्ष करना पड़ रहा है.
विश्वराज सिंह सिटी पैलेस परिसर में स्थित धार्मिक स्थल ‘धूणी’ (पवित्र अग्नि) पर धोक देने और और ‘गद्दी’ पर विराजने की रस्म पूरा करने के लिए एकलिंगनाथ जी मंदिर जाना चाहते थे. सोमवार को दिन में चित्तौड़गढ़ किले में कार्यक्रम में विश्वराज को इस पूर्व राजपरिवार की ‘गद्दी’ पर बिठाने की रस्म ‘दस्तूर’ का आयोजन किया गया. यह गद्दी विश्वराज के पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ के हाल ही में निधन के कारण खाली हुई है.
इस पूरे प्रकरण की जड़ संपत्ति विवाद है जो एक तरह से ‘सर्वोच्च कौन है’ की लड़ाई में बदल गया है. सिटी पैलेस और एकलिंगनाथजी मंदिर अरविंद सिंह के नियंत्रण में हैं. हालांकि, सोमवार रात को सिटी पैलेस के बाहर हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद जिला प्रशासन ने सिटी पैलेस के धूणी वाले ‘विवादित’ भाग के लिए रिसीवर नियुक्त कर दिया है. यहां प्रवेश के बारे में निर्णय प्रशासक द्वारा लिया जाएगा. मामला अब तक सुलझा नहीं है. हालांकि, स्थिति नियंत्रण में है.
- भींडर ने कहा कि उन्होंने और अन्य लोगों ने लक्ष्यराज सिंह से बात की और उन्हें परंपरा के अनुसार काम करने के लिए कहा, लेकिन वह अड़े रहे.
- उन्होंने कहा, ‘हमने उनसे कहा कि विश्वराज धूणी के दर्शन करने के बाद लौट आएंगे और उस स्थान पर कोई नहीं रहेगा. राजपूत समुदाय उनसे नाराज है.’
- पूर्व विधायक भींडर ने कहा कि लक्ष्यराज ने सोचा होगा कि अगर विश्वराज को सिटी पैलेस में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है और वह अनुष्ठान पूरा करते हैं तो यह मान्य हो जाएगा कि वह परिवार के ‘प्रमुख’ हैं.
- इसी तरह सलुम्बर के पूर्ववर्ती राजघराने के मुखिया देवव्रत सिंह ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि कल जिस तरह से विश्वराज सिंह के साथ व्यवहार किया गया, उससे पूरे देश में ‘खराब’ संदेश गया है.
उन्होंने कहा, ‘धूणी पर सिर्फ दस मिनट का कार्यक्रम था, लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई. यह बहुत अपरिपक्व और मूर्खतापूर्ण निर्णय रहा. यह पूरी तरह से अनुचित था. सदियों से परंपरा का पालन किया जाता रहा है. यह हमारी संस्कृति है और परंपरा का पालन शालीनता से किया जाना चाहिए था.’
जब मेवाड़ देसी रियासत था तब ‘महाराणा’ के यहां शासन करने के लिए 16 ‘उमराव’ (मंत्री), 32 ‘ठिकानेदार’ (बत्तीसा) हुआ करते थे. पूर्व राजपरिवार के प्रमुख को अब भी वही सम्मान और आदर दिया जाता है जो पूर्ववर्ती महाराजा को दिया जाता था और सभी पूर्ववर्ती ‘उमराव’, ‘ठिकानेदार’ और अन्य ‘सरदार’ परंपरा के हिस्से के रूप में समारोहों के दौरान पदानुक्रम का पालन करते हैं.
- चित्तौड़गढ़ किले में सोमवार को हुए कार्यक्रम में मेवाड़ क्षेत्र के राजपूत परिवारों के प्रमुख एकत्रित हुए और सर्वसम्मति से विश्वराज सिंह को मेवाड़ परिवार का प्रमुख स्वीकार किया तथा उन्हें ‘महाराणा’ घोषित किया.
- समारोह में विश्वराज का तिलक सलूम्बर के पूर्व राजघराने के प्रमुख देवव्रत सिंह ने किया, जिन्होंने तलवार से अपनी उंगली काटकर रक्त से उनका अभिषेक किया. यह परंपरा सालों साल से चली आ रही है.
- इसके बाद विश्वराज और अन्य लोगों की योजना उदयपुर के सिटी पैलेस में स्थित धूणी और एकलिंगनाथजी मंदिर में मत्था टेकने जाने की थी लेकिन दोनों ही स्थान अरविंद सिंह मेवाड़ के नियंत्रण में हैं.
उन्होंने विश्वराज को दोनों स्थानों पर प्रवेश करने से रोकने के लिए अपने वकील के माध्यम से सोमवार को स्थानीय समाचार पत्रों में दो सार्वजनिक नोटिस प्रकाशित करवाए, जिसमें अतिक्रमण या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई.
जब विश्वराज सिंह और अन्य लोग सिटी पैलेस के बाहर पहुंचे, तो उन्हें पुलिस ने रोक दिया. विश्वराज ने सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए जगदीश चौक पर कई घंटे इंतजार किया, लेकिन रात में दोनों पक्षों की ओर से पथराव होने पर तनाव बढ़ गया. स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन ने सिटी पैलेस में धूणी वाले हिस्से के लिए रिसीवर नियुक्त कर दिया है और प्रवेश के संबंध में आगे का निर्णय रिसीवर द्वारा लिया जाएगा.
उन्होंने कहा कि इलाके में शांति है. कलेक्टर ने कहा कि कल रात हुई पत्थरबाजी के मामले में कानूनी कार्रवाई की जाएगी. संपर्क करने पर लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने फोन नहीं उठाया.
भगवान शिव के एक रूप एकलिंगजी मेवाड़ के तत्कालीन शासकों के आराध्य देव हैं. तत्कालीन शाही राजवंश के महाराणा उनके दीवान के रूप में शासन करते थे. शोक समाप्त करने की रस्म के हिस्से के रूप में, एकलिंगनाथजी मंदिर में मुखिया को एक रंगीन पगड़ी भी दी जाती है. विश्वराज सिंह और अन्य लोग इन रस्मों को पूरा करना चाहते थे.
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