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बक्सर लोकसभा सीट पर अश्विनी चौबे और जगदानंद सिंह को पार्टियों ने दिया आराम, नए चेहरों में होगा घमासान

Lok Sabha Election 2024: भगवान राम और उनके भाईयों ने इसी जगह पर शिक्षा पाई. रामायण में वर्णित दुर्दांत राक्षसी ताड़का का वध यहीं हुआ.यहीं मुगल बादशाह हुमांयू और शेरशाह सूरी के बीच निर्णायक युद्द हुआ…यही वह जगह है जहां बंगाल और अवध के नवाब की संयुक्त सेना को अंग्रजों ने मात दी थी और भारत में ब्रितानी हुकूमत की नींव पक्की की थी…आप समझ ही गए होंगे हम बात कर रहे हैं बिहार की आध्यात्मिक राजधानी बक्सर की. भोजपुरी भाषी ये जिला 1991 में अस्तित्व में आया लेकिन इसका सियासी और धार्मिक महत्व काफी पुराना है. यहां हुए चुनाव की खासियत ये है कि जिसने भी यहां का सामाजिक समीकरण साध लिया उसकी जीत निश्चित है..यही वजह है कि यहां अब तक हुए 16 आम चुनाव में 11 बार ब्राम्हण उम्मीदवारों को जीत मिली है. एक आंकड़ा ये भी अहम है कि यहां सबसे अधिक 6 बार बीजेपी और पांच बार कांग्रेस को जीत मिली है. लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले The Hindkeshariकी विशेष सीरीज Know Your Constituency में आज बात इसी बक्सर लोकसभा सीट (Buxar Lok Sabha seat) की…जहां इस बार बीजेपी और INDIA गठबंधन ने नए चेहरों को मौका दिया है और इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए एक तीसरे शख्स के मैदान में उतरने की चर्चा है. 

पटना से लगभग 172 किमी पश्चिम और मुगलसराय से 109 किमी पूर्व में मौजूद बक्सर के सियासी हिसाब-किताब पर तफ्सील से बात करेंगे लेकिन पहले जान लेते हैं खुद इस धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी बक्सर का इतिहास क्या है? प्राचीन काल में बक्सर का नाम ‘व्याघ्रसर’ था क्योंकि उस समय यहां पर बाघों का निवास हुआ करता था.

इस जगह का जिक्र रामायण महाकाव्य में भी मिलता है. ऐसा माना जाता है कि बक्सर में गुरु विश्वामित्र का आश्रम था जहां भगवान राम और उनके भाइयों ने शिक्षा-दिक्षा हासिल की. यहीं के ब्रह्मपुर गांव में प्राचीन ब्रह्मेश्वर मंदिर मौजूद है जिसे मोहम्मद गजनवी ने अपने आक्रमण के दौरान ढहा दिया था. बाद में अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मानसिंह ने इसका पुनर्निमाण कराया.

मुगल काल के दौरान हुमायूँ और शेरशाह के बीच ऐतिहासिक लड़ाई 1539 ई.यहीं के चौसा में लड़ी गई थी. इसके बाद सर हेओटर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने 23 जून 1764 को मीर कासिम, शुजा-उद-दौला और शाह आलम-द्वितीय की सेना को हराया था. बक्सर से 6 किलोमीटर दूर मौजूद कटकौली के मैदान में ये युद्ध हुआ था. जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई और भारत में ब्रिटिश राज की नींव पुख्ता हुई. इस मैदान में इस लड़ाई की याद में आज भी पत्थर का स्मारक लगा हुआ है. बक्सर को जिला बनाने के लिए यहां के लोगों ने करीब 11 साल लंबी लड़ाई. जिसके बाद 17 मार्च 1991 में इसको जिले का दर्जा मिला. इससे पहले बक्सर शाहाबाद का हिस्सा था. 

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अब इसकी डेमोग्राफी को भी समझ लेते हैं. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इसमें ब्रह्मपुर, डुमरांव, बक्सर, राजपुर सुरक्षित के अलावा कैमूर जिले का रामगढ़ और रोहतास जिले का दिनारा विधानसभा क्षेत्र शामिल है. यहां कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख 6 हजार से ज्यादा है. जिसमें से 9 लाख 53 हजार से अधिक पुरुष मतदाता और 8 लाख 52 हजार से ज्यादा महिला मतदाता हैं. इस लोगसभा सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 4 लाख से ज्यादा है. इसके बाद यादव वोटरों की संख्या 3.5 लाख के करीब है. राजपूत मतदाताओं की संख्या 3 लाख है. भूमिहार मतदाता करीब 2.5 लाख हैं. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी 1.5 लाख के करीब है. इसके अलावा यहां पर कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, दलित और अन्य जातियां भी बड़ी तादाद में हैं.रामगढ़ से सुधाकर सिंह, ब्रह्मपुर से शंभू नाथ यादव और दिनारा से विजय मंडल राजद प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए थे. दो सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी. बक्सर से कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी और राजपुर से विश्वनाथ राम विजयी हुए थे. डुमरांव से सीपीआई माले के अजीत कुमार सिंह ने जीत दर्ज की थी. भारतीय जनता पार्टी को एक भी विधानसभा सीट पर जीत नहीं मिली थी.

आजादी के बाद यहां पहला चुनाव साल 1952 में हुआ था जिसमें तब के डुमरांव के महाराज कमल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार को तौर पर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. इसके बाद 1957 में बक्सर लोकसभा क्षेत्र बना. इस चुनाव में भी कमल सिंह विजयी हुए हालांकि 1962 के चुनाव में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद करीब तीन दशक तक कांग्रेस पार्टी का इस सीट पर एकतरफा राज्य रहा.

क्योंकि 1962 से 1984 तक के चुनाव में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ जब 1977 में भारतीय लोकदल के टिकट पर रामानंद तिवारी चुनाव जीते थे. रामानंद तिवारी भोजपुर इलाके के कद्दावर समाजवादी नेता थे और कई बार विधायक व बिहार सरकार में मंत्री भी रहे थे. 1989 के लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस पत्ता यहां से बिल्कुल साफ हो गया. 1989 में इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के तेज नारायण सिंह चुनाव जीते थे.1996 के चुनाव में यहां पहली बार कमल खिला और लाल मुनि चौबे यहां के सांसद चुने गए. वो लगातार चार बार यहां से सांसद रहे यानी कि 1996 से लेकर 2004 तक इस सीट पर भगवा झंडा लहराता रहा, लेकिन साल 2009 के चुनाव में भाजपा से ये सीट राष्ट्रीय जनता दल के जगदांनद सिंह ने छीन ली.हालांकि साल 2014 के चुनाव में एक बार फिर से बाजी पलटी और बीजेपी ने यहां बड़ी जीत दर्ज की और अश्विनी चौबे यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे.2019 में भी अश्विनी चौबे ने ही जीत दर्ज की थी. उन्होंने राजद प्रत्याशी जगदानंद सिंह को चुनाव में हराया था . 

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इस बार यानी 2024 में यहां चुनावी माहौल बदला-बदला दिख रहा है क्योंकि बीजेपी ने अपने सीटिंग सांसद अश्वनी चौबे को तो RJD ने पिछले चुनाव में उपविजेता रहे जगदानंद सिंह को विराम दे दिया है. बीजेपी ने अपने पूर्व विधायक मिथिलेश तिवारी पर तो RJD ने जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह पर दांव खेला है. हालांकि दिलचस्प ये है कि इस सीट से IPS आनंद मिश्रा चुनाव लड़ना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने VRS भी लिया था लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. बहरहाल मिथिलेश तिवारी के लिए अच्छी बात ये है कि उन्हें बीजेपी के मजबूत गढ़ में फिर से कमल खिलाना है. इस सीट पर पहले तो लालमुनि चौबे ने बीजेपी की जड़ें मजबूत की और उनके बाद अश्विनी चौबे ने यहां से बीजेपी के टिकट पर लगातार दो बार जीत दर्ज की है. उधर नीतीश सरकार में कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह पिता की विरासत थामने इस चुनाव में उतरे हैं। इनके पिता जगदानंद सिंह ने 2009 में बीजेपी के चर्चित नेता लालमुनि चौबे के जीत के रथ को रोक डाला था. चर्चा ये भी है इस बार ददन पहलवान भी यहां से पर्चा दाखिल कर सकते हैं. यदि ऐसा होगा तो यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा. अब देखना ये है कि पूर्वांचल के रास्ते बिहार का द्वार कहा जाने वाला गंगा किनारे बसे बक्सर से जिताकर जनता किसे संसद में भेजती है.

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