उल्फा, केंद्र और असम सरकार के बीच शांति समझौते के आसार, परेश बरुआ गुट नहीं होगा समझौते का हिस्सा

घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि इस समझौते में असम से संबंधित काफी लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा, इसके अलावा यह मूल निवासियों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार प्रदान करेगा.
परेश बरुआ के नेतृत्व वाला यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं होगा क्योंकि वह सरकार के प्रस्तावों को लगातार अस्वीकार कर रहा है.
सूत्रों ने कहा कि राजखोवा समूह के दो शीर्ष नेता – अनूप चेतिया और शशधर चौधरी – पिछले सप्ताह राष्ट्रीय राजधानी में थे और उन्होंने शांति समझौते को अंतिम रूप देने के लिए सरकारी वार्ताकारों के साथ बातचीत की.
उल्फा गुट से ये अधिकारी कर रहे बातचीत
सरकार की ओर से जो लोग उल्फा गुट से बात कर रहे हैं उनमें इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा शामिल हैं.
परेश बरुआ गुट कर रहा है विरोध
परेश बरुआ के नेतृत्व वाले गुट के कड़े विरोध के बावजूद, राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट ने 2011 में केंद्र सरकार के साथ बिना शर्त बातचीत शुरू की थी. राजखोवा के बारे में माना जाता है कि वह चीन-म्यांमार सीमा के पास एक जगह पर रहते हैं.
1979 में हुआ था उल्फा का गठन
उल्फा का गठन 1979 में ‘संप्रभु असम’ की मांग के साथ किया गया था. तब से यह संगठन विघटनकारी गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था.
राजाखोवा गुट 2011 में शांति वार्ता में शामिल हुआ
उल्फा, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस’ (एसओओ) के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राजखोवा गुट तीन सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल हुआ था.
ये भी पढ़ें :
* असम में कांग्रेस से लोकसभा चुनाव के लिए टिकट को लेकर 71 उम्मीदवारों ने दिया आवेदन
* असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने उल्फा के कट्टरपंथी गुट से शांति की पेशकश की
* असम में करीब 1300 मदरसों को स्कूलों में तब्दील किया गया
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को The Hindkeshariटीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)