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PM मोदी, ट्रंप और ‘चीन को देख लेंगे’.. टैरिफ से इतर ‘बोनहोमी’ मुलाकात में क्या संदेश नजर आया?


नई दिल्ली:

ट्रेड, टैरिफ और वीजा…. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बैठक से पहले सबकी नजर इस तीन मोर्चे पर है. ऐसे में एक और फ्रंट ऐसा है जिसको लेकर डिप्लोमेसी की टोह लेने वाले फॉरेन एक्सपर्ट करीबी नजर बनाए हुए हैं- वह है सामरिक संबंधों पर किस तरह से दोनों देश आगे बढ़ते हैं. ट्रंप अमेरिका की सत्ता में कमबैक कर रहे हैं और वो भी अपने पुराने अंदाज में बिना किसी फिल्टर के. अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के पहले कार्यकाल में पीएम मोदी के साथ उनके बोनहोमी यानी याराने की याद अब भी ताजा है. ऐसे में एक चीज जो तय थी कि जब दोनों वापस से एक साथ बैठेंगे तो व्यापार से इतर डिफेंस के मुद्दों पर एक साथ बड़ा संदेश देते नजर आएंगे.

सवाल है कि मोदी-ट्रंप के बैठक के निचोड़ में चीन, सामरिक महत्व वाले संगठन क्वाड, भारत-अमेरिका डिफेंस डील और तमाम ऐसे मोर्चे पर क्या संदेश नजर आता है. दरअसल जवाब सिंपल है- दोनों देश एक साथ, एक मंच पर हैं और दोनों के तेवर पहले से ज्यादा तीखे हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने साफ शब्दों में कहा है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम देशों के रूप में एकजुट रहें. हम दोस्त हैं और हम ऐसे ही बने रहेंगे.

1 भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग और ‘चीन’ फैक्टर: “हम जिसे चाहें उसे हरा देंगे”

भारत और अमेरिका को एहसास है कि चीन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उसके लिए “सबसे बड़ा खतरा” है. दोनों महत्वपूर्ण और नई टेक्नोलॉजी के लिए चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंतित भी हैं.

हालांकि एक चीज पर नजर रखनी चाहिए कि फोकस क्षेत्र को लेकर भारत और अमेरिका में मतभेद है, क्योंकि भारत के लिए फोकस उसकी सीमा पर है, जबकि अमेरिका के लिए, यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में है. भारत के दृष्टिकोण से देखें तो इसकी सीमा और हिंद महासागर समुद्री क्षेत्र प्रमुख हैं. वहीं अमेरिका ताइवान स्ट्रेट, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर के बारे में सोचता है.

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इस मतभेद के बावजूद दोनों देश चीन के मुद्दे पर एक साथ खड़े हैं.

जब बैठक के बाद डोनाल्ड ट्रंप से एक पत्रकार ने सवाल किया कि अगर आप व्यापार के मामले में भारत के साथ सख्त रुख अपनाएंगे तो आप चीन से कैसे लड़ेंगे?. इसपर अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहला जवाब दिया कि हम जिसे चाहें उसे हराने के लिए बहुत अच्छी स्थिति में हैं.

2 भारत दर्शक बनकर नहीं खड़ा रहेगा, शांति की बात करेगा

भारत युद्ध और शांति के खेल में बस दर्शक बनने को तैयार नहीं है. पीएम मोदी की बातों से प्रोएक्टिव डिप्लोमेसी का यह साफ संदेश नजर आता है. राष्ट्रपति ट्रंप के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान व्हाइट हाउस में पत्रकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का क्या रुख है, तो पीएम मोदी ने जवाब दिया कि भारत इस युद्ध में तटस्थ नहीं है, लेकिन भारत शांति के साथ खड़ा है.

ट्रंप से एक सवाल बांग्लादेश में संकट और अमेरिका के कथित तौर पर इसमें शामिल होने पर भी था. डोनाल्ड ट्रंप ने इसपर कहा कि अमेरिका बांग्लादेश के मुद्दों में शामिल नहीं है. उन्होंने कहा कि यह ऐसी चीज है जिस पर प्रधानमंत्री लंबे समय से काम कर रहे हैं.  बांग्लादेश मुद्दे को हल करने के लिए पीएम मोदी पर छोड़ रहा हूं.

3 भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग: ‘क्वाड’ फैक्टर और हुआ अहम

ट्रंप के साथ पीएम मोदी की मुलाकात में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा-सुरक्षा संबंधों पर मुख्य फोकस रहा. और क्वाड इसकी अहम कड़ी है. क्वाड यानी भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक  रणनीतिक मंच. अमेरिका में भले राष्ट्रपति बदलते गए लेकिन तमाम प्रशासन के तहत क्वाड क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में विकसित हुआ है. 

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ट्रंप के ओवल ऑफिस में लौटने के बाद अमेरिका की यात्रा करने वाले दूसरे क्वाड नेता (जापान के बाद) के रूप में, पीएम मोदी की यात्रा क्वाड के बढ़ते महत्व को दिखाती है.

 
पीएम मोदी ने ज्वाइंट ब्रिफिंग में कहा, “भारत और अमेरिका की साझेदारी लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करती है. हम इंडो-पैसिफिक में शांति, स्थिरता और समृद्धि बनाए रखने के लिए मिलकर काम करेंगे. इसमें QUAD की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. इस बार, भारत QUAD शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहा है – हम उस दौरान अपने साथी देशों के साथ नए क्षेत्रों में अपना सहयोग बढ़ाएंगे.”

गौरतलब है कि भले ही इसके शुरुआत फेज, साल 2018 में चीन ने इसे केवल “सुर्खियां बटोरने वाले विचार” के रूप में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इस ग्रूप ने इंडो-पैसिफिक रिजन में बीजिंग की बढ़ती मुखरता के जवाब में संयुक्त मोर्चे के रूप में लोकप्रियता हासिल की है.

4 भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग: डिफेंस डील पर बनी बात?

पिछले दो दशकों में रक्षा सहयोग भारत-अमेरिका संबंधों का एक प्रमुख पिलर बनकर सामने आया है.‘अमेरिका फर्स्ट’ का नारा लगाने वाले ट्रंप यह चाहते हैं कि भारत अमेरिकी रक्षा उपकरणों की खरीद का विस्तार करे. वहीं दिल्ली को इस तलाश में है कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और को-प्रोडक्शन यानी साथ में रक्षा उपकरणों के उत्पाद की अधिक अनुकूल शर्त मिले.

  1. ट्रंप ने अपनी ब्रिफिंग में बताया, “इस साल से अमेरिका भारत में सैन्य बिक्री को कई अरब डॉलर तक बढ़ाएगा. हम अंततः भारत को F35, स्टील्थ लड़ाकू विमान देने का रास्ता भी खोल रहे हैं.
  2. उम्मीद है कि दोनों देश रक्षा सहयोग के लिए 10-वर्षीय फ्रेमवर्क का मसौदा तैयार करेंगे. ऐसे पहले फ्रेमवर्क पर 2005 में और दूसरे पर 2015 में हस्ताक्षर किए गए थे.

यहां गौर करने वाली बात है कि दिल्ली और वाशिंगटन ने बाइडेन सरकार के तहत रक्षा-औद्योगिक सहयोग के लिए एक रोडमैप विकसित किया था. इसे अब और अधिक तेजी से आगे बढ़ाने की कवायद शुरू हो सकती है. इसकी वजह भी है. दिल्ली और वाशिंगटन, दोनों ही चीन के हथियारों के उत्पादन में नाटकीय तेजी से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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ट्रंप ने कहा कि भारत के बाजार में अमेरिकी न्यूक्लियर टेक्नलॉजी का स्वागत करने के लिए भारत अपने कानूनों में सुधार कर रहा है.

5 कट्टरपंथी इस्लामी आतंक के खतरे पर मिलकर करेंगे काम

ट्रंप ने यह बात साफ शब्दों में कही है कि दुनिया भर में कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकी खतरे का मुकाबला करने के लिए भारत और अमेरिका इस तरह मिलकर काम करेंगे जैसे कभी नहीं किया हो. इसी कड़ी में उन्होंने बताया कि उनकी सरकार ने 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के साजिशकर्ताओं में से एक तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है, ताकि उसे भारत में न्याय का सामना करना पड़े. वह न्याय का सामना करने के लिए भारत लाया जाएगा.


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