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सीट की सियासत: यूपी उपचुनाव में मझवां सीट पर 2 'देवियों' में लड़ाई, बसपा ने बनाया मुकाबले को त्रिकोणीय


मिर्जापुर:

छोटी-छोटी पहाड़ियों और उन पहाड़ियों पर बहते झरने… ये नज़ारे हैं उस क्षेत्र के जहां आजकल चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है. ये वो क्षेत्र है, जहां कभी कांग्रेस का वर्चस्व था, फिर बीएसपी का और अब बीजेपी का, लेकिन समाजवादी पार्टी का यहां से अब तक खाता तक नहीं खुल सका है. हालांकि, इस बार सपा अपने दांव से खाता खोलने की जुगत में लगी हुई है.

मां विंध्यवासिनी के मिर्जापुर ज़िले की मझवां विधानसभा सीट पर इस बार प्रमुख लड़ाई दो देवियों के बीच मानी जा रही है. दरअसल, बीजेपी ने यहां से सुचिस्मिता मौर्य को प्रत्याशी बनाया है. वहीं, समाजवादी पार्टी ने युवा प्रत्याशी के तौर पर डॉ. ज्योति बिंद को लॉन्‍च करने की कोशिश की है. मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए बीएसपी ने ब्राह्मण उम्‍मीदवार दीपक तिवारी को मैदान में उतारा है.

मझवां सीट से इस बार कुल 13 उम्मीदवार मैदान में हैं. हालांकि प्रमुख लड़ाई बीजेपी, सपा और बीएसपी के बीच ही मानी जा रही है.

किस पार्टी से कौन उम्‍मीदवार…

  • मझवां विधानसभा सीट से इस बार बीजेपी ने सुचिस्मिता मौर्य को टिकट दिया है.
  • बीजेपी प्रत्याशी सुचिस्मिता मौर्य 2017 में भी विधायक रह चुकी हैं, वो भी रमेश बिंद को चुनाव हराकर. 
  • समाजवादी पार्टी ने युवा उम्‍मीदवार डॉ. ज्योति बिंद को चुनावी मैदान में उतारा है.
  • रमेश बिंद डॉ. ज्योति बिंद के पिता हैं. रमेश बिंद को 2017 में सुचिस्मिता मौर्य ने चुनाव हरा दिया था. हालांकि 2019 में वो बीजेपी में आ गए और सांसद भी बन गए थे.
  • बीएसपी ने ब्राह्मण उम्‍मीदवार दीपक तिवारी को टिकट दिया है, जिससे मुकाबला दिलचस्‍प हो गया है. ⁠2022 में बीजेपी ने गठबंधन में ये सीट निषाद पार्टी को दी. तब डॉ विनोद बिंद निषाद पार्टी से चुनाव जीते थे.
  • लोकसभा चुनाव में डॉ. विनोद बिंद भदोही से सांसद बन गए, तो उन्होंने मझवां से इस्तीफा दे दिया था.
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आसान नहीं होगा मझवां का किला फतेह करना 

कहा जा रहा है कि ये लड़ाई दो महिलाओं के बीच की है. लड़ाई भी ऐसी वैसे नहीं, बदले की लड़ाई. दरअसल जिस रमेश बिंद को सुचिस्मिता मौर्य ने 2017 में विधानसभा का चुनाव हराया था, वही दो साल बाद बीजेपी में आकर सांसद बन गए. ऐसे में सपा प्रत्याशी ज्योति बिंद अपने पिता रमेश बिंद की हार का बदला लेने की कोशिश करेंगी. वहीं बीजेपी प्रत्याशी सुचिस्मिता एक बार फिर बिंद परिवार को मात देकर अपना लोहा मनवाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगी. मझवां को लेकर एनडीए में बवाल हुआ. निषाद पार्टी के डॉ संजय निषाद मझवां पर अपना दावा ठोकते रहे, लेकिन अंततः उन्हें इस बार ये सीट नहीं दी गई. हालांकि, वो बीजेपी को जिताने की बात कह रहे हैं.

मझवां में जाति, जीत और हार का बड़ा फैक्टर

मझवां में कुल वोटर 3,85,000 हैं. इनमें 72 हज़ार बिंद, ⁠68 हज़ार दलित, ⁠65 हज़ार ब्राह्मण, ⁠38 हज़ार मौर्य, ⁠28 हज़ार मुस्लिम, 26 हज़ार पाल, ⁠25 हज़ार यादव, ⁠20 हज़ार राजपूत, 16 हज़ार पटेल वोटर्स हैं. यहां बिंद, ब्राह्मण और दलित वोट जीत हार में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं. मझवां ज़्यादातर ग्रामीण क्षेत्र है. ऐसे में यहां की जनता अपने नेता से क्या उम्मीद करती है, ये चुनाव परिणाम बता देगा.

फ़िलहाल मझवां में लड़ाई बड़ी है. एक तरफ़ ये सीट एनडीए की एकजुटता का प्रमाण साबित हो सकती है. वहीं अगर सपा ने यहां से अपना खाता खोल लिया, तो पीडीए फ़ॉर्मूला मिर्ज़ापुर में भी चल निकल सकता है.

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