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Pune Triple Murder Case: सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए दोषी को किया बरी, वजह जानिए

पुणे तिहरे हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट का फैसला.


दिल्ली:

पुणे में साल 2012 में हुए तिहरे हत्याकांड में आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court On Pune Triple Murder Case) ने फैसला सुनाया है. अदालत ने मौत की सजा पाए दोषी को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था. अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा है. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने ये फैसला दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मामला है, जहां अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा है, इसलिए हमने अपील स्वीकार कर ली है. दोषी विश्वजीत कर्बा मसलकर ने जुलाई 2019 के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.

पुणे ट्रिपल मर्डर में क्या-क्या हुआ?

  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2012 में  मां, पत्नी और दो साल की बेटी की हत्या के लिए दोषी को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा था.
  • पुणे की एक ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया था और 2016 में मौत की सजा सुनाई थी.
  • शीर्ष अदालत ने जनवरी 2020 में अपील स्वीकार कर ली थी और इस साल 25 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
  • आरोपी को अपने परिवार के सदस्यों की हत्या का दोषी पाया गया था, कथित तौर पर तब जब उन्होंने उसके अपने सहकर्मी के साथ विवाहेतर संबंध पर आपत्ति जताई थी.
  •  हत्या के बाद, दोषी ने पुलिस को सूचित किया था कि उसके घर में हुई चोरी के दौरान उसकी मां, पत्नी और बच्चे की हत्या कर दी गई  
  •  हालांकि, जांच के दौरान पुलिस को घटनाओं के बारे में उसका बयान अविश्वसनीय लगा. खास तौर पर यह देखते हुए कि घर में किसी भी सामान के चोरी होने या जबरन घुसने का कोई सबूत नहीं था.
  • इसके अलावा, पुलिस को यह भी संदेहास्पद लगा कि पड़ोसी फ्लैट में रहने वाले बुजुर्ग को चोटें आई थीं. पुलिस ने आखिरकार पाया कि आरोपी ने खुद ही अपने बुजुर्ग पड़ोसी को घायल कर दिया था, ताकि वह हत्या की शिकायत न कर सके.
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हाई कोर्ट ने क्यों दी मौत की सजा?

हाई कोर्ट ने इसे एक निर्मम हत्या माना और इस तरह निचली अदालत द्वारा लगाई गई मौत की सजा की पुष्टि की. अदालत ने पाया कि ये मामला “रेयरस्ट ऑफ द रेयर” श्रेणी में आता है. हालांकि, इसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 415(1) के मद्देनजर शीर्ष अदालत द्वारा अपील के निपटारे तक अपने फैसले पर रोक लगा दी थी.
 


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