"जुलाई में खाद्य कीमतों में कमी ब्याज दर में कटौती के लिए काफी नहीं…" RBI गवर्नर शक्तिकांत दास का पूरा इंटरव्यू
नई दिल्ली:
भारतीय रिज़र्व बैंक यानी RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि आम आदमी को RBI और उसके काम के बारे में समझ आना चाहिए. The Hindkeshariके एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में शक्तिकांत दास ने भारतीय अर्थव्यवस्था, महंगाई दर, GDP ग्रोथ रेट, बैंकिंग सिस्टम में AI के इस्तेमाल और साइबर सिक्योरिटी समेत तमाम मामलों पर विस्तार से बात की.
RBI के गवर्नर ने इंटरव्यू के दौरान यह भी बताया कि कोविड और उसके बाद आए वैश्विक संकट से RBI और भारत कैसे बाहर निकला. शक्तिकांत दास ने यह भी स्पष्ट किया कि मुद्रास्फीति की दर का एक-दो बार 4% से नीचे आ जाना प्रमुख ब्याज दरों को घटाने का आधार नहीं बन सकता.
पढ़िए RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास का पूरा इंटरव्यू:-
RBI हर शख्स की ज़िन्दगी का हिस्सा है, लेकिन आम आदमी को RBI के बारे में ज़्यादा समझ नहीं है. आपके कार्यकाल के दौरान RBI की भाषा ऐसी रही है, जो आम आदमी की समझ में आती है. अब हर शख्स RBI और उसकी वर्किंग के बारे में काफी कुछ जानता और समझता है. इसपर आप क्या कहेंगे?
इस साल हम RBI का 90वां वर्ष सेलिब्रेट कर रहे हैं. हमेशा हमारी कोशिश रही है कि जितना सरल तरीके से आम आदमी को समझाया जा सके. हम वैसे ही काम कर रहे हैं. पहले लोगों को RBI के बारे में ज़्यादा समझ नहीं थी. हालांकि, हर शख्स RBI और उसकी नीतियों से प्रभावित होता ही है. सो, हमारी कोशिश यही रही है कि RBI के बारे में आम आदमी को कैसे समझाया जाए.
COVID के बाद अब छठा साल चल रहा है. ग्लोबल क्राइसिस अब तक जारी है. भारत इस समूची कहानी में अलग ही चमक रहा था. उसके पीछे RBI की भूमिका अहम रही है. इस पीरियड को आपने कैसे नैविगेट किया?
ये बहुत लंबी कहानी है. संक्षेप में बताऊं, तो भारत ने कोविड संकट और उसके बाद आई चुनौतियों जैसे यूक्रेन युद्ध या ग्लोबल सिन्क्रोनाइज़्ड मॉनीटरी पॉलिसियों को सख्त किया जाना हो, दुनियाभर में ब्याज दरों को बढ़ाया जाना हो या वित्तीय बाज़ारों की उथलपुथल हो… इन सभी सिचुएशन का बड़े सलीके से मुकाबला किया. मार्च 2020 में कोविड शुरू हुआ. अप्रैल 2021 में दूसरी लहर आई. 2022 में यूक्रेन संकट शुरू हुआ, जिसके परिणाम दूर तक नज़र आते रहे. ये सब जियो-पॉलिटिकल संकट के साथ-साथ जियो-इकोनॉमिक संकट भी थे. क्योंकि ट्रेड पाबंदियां आने लगी थीं. इस संकट से निपटने में देशवासियों का योगदान काबिलेतारीफ तो था ही. इसके साथ ही सरकार और RBI का कोऑर्डिनेशन भी शामिल था. इस कोऑर्डिनेशन को Fiscal Monetary Co-ordinated Approach कहते हैं. ये काफी मददगार साबित हुआ.
बीते पांच साल बहुत उथलपुथल के रहे हैं. कोविड के बाद समूची दुनिया में आउटपुट लॉस का दौर रहा. संकट का दौर अब तक बरकरार है, लेकिन भारत उससे बहुत बेहतर तरीके से निकलकर आया. जिस तरह हम संकट से निकले हैं, वह बेहद अहम है. हमारी अर्थव्यवस्था और वित्तीय सेक्टर इसके बाद ज़्यादा मज़बूत होकर उभरे हैं. पिछले तीन साल वार्षिक औसत GDP वृद्धि 8% से ज़्यादा रही है. इस साल का प्रोजेक्शन भी 7.2% का है. यूक्रेन युद्ध के बाद मुद्रास्फीति 7.2% हो गई थी, जो अब 3.5% है, लेकिन यह लक्ष्य के आसपास है. इंडिया का ग्रोथ मोमेंटम स्ट्रॉन्ग है. बैंकिंग और NBFC समेत फाइनेंस सेक्टर पांच साल पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा स्टेबल है.
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मुद्रास्फीति को स्थायी रूप से 4% के नीचे लाने तक क्या उपाय करेंगे? ग्रोथ को प्रभावित किए बिना प्रमुख ब्याज दरों में कटौती के बारे में किन परिस्थितियों पर नज़र रख रहे हैं?
सबसे पहले तो मैं यह बताना चाहूंगा कि हमने 4% के नीचे मुद्रास्फीति का लक्ष्य कभी नहीं कहा. हां, हमारा लक्ष्य इसे स्थायी तौर पर 4% के आसपास रखने का है. एक-दो बार 4% के नीचे चले जाने पर ब्याज दरों को कम करना हमारा विचार कभी नहीं रहा है, क्योंकि वह बहुत बड़ी नीतिगत गलती होगी. हमें सब्र रखना होगा. बहुत दूरी तय करनी है. जहां तक ग्रोथ का सवाल है, हमारा ग्रोथ सैक्रिफाइस बेहद मिनिमल रहा है. बल्कि ये न होने के बराबर रहा है. इस साल 7.2% का प्रोजेक्शन है और भारत 2024-25 में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा. खाद्य मुद्रास्फीति बेहद अहम रहेगी, क्योंकि जब तक वह कम नहीं होती, जब तक जनता को खाने-पीने पर ज़्यादा खर्च करना पड़ेगा. मुद्रास्फीति के आंकड़े उन्हें कन्फ़्यूज़ करते रहेंगे. इसलिए खाद्य मुद्रास्फीति को नज़र में रखते हुए दरों में बदलाव भविष्य के आंकड़ों पर निर्भर करेगा.
देश में सकारात्मक माहौल है, जनता को भी बड़ा लक्ष्य हासिल करने का भरोसा हो रहा है. 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य है, तब तक अगर हम रईस मुल्क नहीं भी बन पाएं, तो उच्च-मध्यम आय वाला देश तो हमें होना ही चाहिए. उसके लिए क्या चुनौतियां हैं?
वर्क एजेंडा अहम है, जिस पर हमेशा ध्यान दिया जाना होगा. हमें सबसे पहले मूल्य स्थिरता पर ध्यान देना होगा, मुद्रास्फीति को 4 फ़ीसदी के आसपास रखना होगा. मूल्य स्थिरता की बदौलत उपभोक्ता को भरोसा मिलता है, उनकी खरीद क्षमता बढ़ जाती है. उसी से निवेशक का भरोसा भी बढ़ता है. दूसरी बात है – वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी. बैंकों का, NBFC का, समूचे वित्तीय क्षेत्र में स्थायित्व बेहद ज़रूरी होता है. इसके अलावा, हमने पिछले कुछ सालों में बहुत-से सुधारात्मक कदम उठाए हैं. सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं ने भी बहुत मदद की है. एग्रीकल्चर सेक्टर में आउटपुट बढ़ाना चाहिए. ग्लोबल मार्केट में भारत की सेवा क्षेत्र की मौजूदगी महसूस की जा रही है. मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में एक्सपोर्ट को बेहतर किया जा सकता है.
स्टेबिलिटी ऑफ़ बैंकिंग पर बात करते हैं. डिपॉज़िट ग्रोथ धीमी है, क्रेडिट ग्रोथ ज़्यादा है. भारतीय युवा बचत के बजाय निवेश करने पर ध्यान देने लगे हैं. वैसे तो यह अर्थव्यवस्था में भरोसे का प्रतीक है, लेकिन इस पर कितनी चिंता होनी चाहिए?
बैंक और NBFC का गवर्नेंस स्टैंडर्ड पर ध्यान दिया गया है. इनमें पिछले कुछ सालों में काफी सुधार देखा गया है. इंटरनेट युग में युवा महत्वाकांक्षी हैं. वे अन्य बाज़ारों की तरफ़ देखते ही हैं. उनका अलग-अलग जगह निवेश करना अच्छी बात है, लेकिन बैंकों से हम उस पर निगाह रखने के लिए कहते हैं, क्योंकि डिपॉज़िट और क्रेडिट ग्रोथ में अंतर लंबे वक्त में दिक्कत बन सकता है. इससे लिक्विडिटी संबंधी दिक्कत हो सकती है. बैंकों को इस पर काम करना होगा. डिपॉज़िट और क्रेडिट ग्रोथ में बैलेन्स लाना होगा. इसके लिए बैंकों ने भी कदम उठाए हैं. बहुत-से बैंक इन्फ़्रास्ट्रक्चर बॉन्ड लेकर आए हैं. बैंकों को डिपॉज़िट से जुड़े नए-नए प्रोडक्ट लॉन्च करने चाहिए. बैंकों को अपनी ब्रांच के नेटवर्क का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि डिपॉज़िट बढ़ें.
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बैंकों को कोई नियम उल्लंघन करने पर पहले सिर्फ़ थोड़ा-सा जुर्माना लगाकर बख्श दिया जाता था, लेकिन अब उन्हें दंडित किया जाता है. इसे कैसे समझाएंगे?
ऐसा नहीं है. यह दंड देना नहीं है, बल्कि सुधारात्मक कदम हैं. हमारे सुपरविज़न से बैंकिंग में बहुत सुधार आया है. ओवरऑल देखें, तो बैंकिंग सेक्टर स्टेबल है, जहां भी हम कमी देखते हैं, बैंक को बताते हैं. उन्हें सुधार का वक्त देते हैं. उनसे रोडमैप मांगते हैं, फिर उसे लागू करवाना चाहते हैं. अगर नहीं होता है, तो दिए गए समय के बाद सुधारात्मक कदम उठाते हैं, क्योंकि तब तक सबसे ज़्यादा नुकसान उपभोक्ता का ही होता है. वैसे, इन कदमों से बैंक को भी फ़ायदा ही होगा.
पहले के वक्त की तुलना में अब हर काम में कम वक्त लगता है. डिजिटल दखल के बाद रियल-टाइम मॉनिटरिंग रखना संभव है. सुपरविज़न के मामले में RBI के पास क्या ऑप्शन हैं.
टेक्नोलॉजी से बहुत मदद मिली है. दुनिया की स्थिति बिल्कुल डायनमिक है. बहुत तेज़ी से बदलाव आते हैं. इसमें हमें भी लगातार साथ चलना होगा. हम कभी यह नहीं कह सकते कि हम एक खास मुकाम पर पहुंच गए हैं, क्योंकि बदलाव फिर होते रहते हैं. लगातार तरक्की हो रही है. हमने अब AI को भी इस्तेमाल करना शुरू किया है, उस पर हमारा ज़ोर है. यह सतत प्रक्रिया है. लगातार करते रहना पड़ेगा. लगातार हमें खुद का मूल्यांकन करते रहना होगा. ये हम सभी के लिए चुनौती है.
RBI के पास जानकारी और आंकड़ों का खज़ाना है. आपको ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर भी विकसित करना चाहिए?
बहुत-से देश तरक्की कर रहे हैं. सभी के सेंट्रल बैंक तरक्की कर रहे हैं. RBI का फ़ोकस देश की आर्थिक स्थिरता पर है. देश की मौद्रिक स्थिरता पर है. हम मुनाफ़ा कमाने वाली संस्था नहीं हैं. हम प्रॉफ़िट एंड लॉस अकाउंट नहीं बनाते. हम जब सरकार को ट्रांसफर करते हैं, उसे सरप्लस ट्रांसफर कहा जाता है. यह सार्वजनिक संस्था है.
फिनटेक के लिए RBI सख्त अभिभावक की तरह काम कर रहा है. इस बारे में बताइए?
मैं साफ करना चाहता हूं कि जो सीरियस फिनटेक प्लेयर हैं, वे RBI के एप्रोच को समझते हैं. हमारा उनके साथ इंटरएक्शन बहुत बढ़िया है. चार साल पहले हमने डेडिकेटेड फिनटेक डिपार्टमेंट भी गठित किया था. कोई भी फिनटेक प्लेयर उनके साथ कभी बैठक कर सकता है, जहां वे कुछ भी समझ सकते हैं. अपनी समस्याएं बता सकते हैं. फिनटेक एसोसिएशनों के साथ भी हम लगातार नियमित रूप से मुलाकात करते हैं. फिनटेक प्लेयरों को RBI का पूरा सपोर्ट है. लेकिन उन्हें भी रेगुलेटेड स्पेस में आने पर नियमों का पालन करना होगा, वरना खतरा देखने पर RBI तुरंत दखल देगा.
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UPI बहुत बड़ा एचीवमेंट है, तो क्या इसे ग्लोबल स्तर पर बढ़ाने के लिए RBI कुछ कर रहा है?
UPI के लिए बहुत से देशों के साथ द्विपक्षीय तौर पर समझौते किए हैं. ASEAN देशों के साथ मिलकर काम हो रहा है, जिसे ‘प्रोजेक्ट नेक्सस’ नाम दिया गया है. ग्लोबली UPI को बढ़ा रहे हैं.
दो रिस्क फैक्टरों पर बात करना चाहते हैं. साइबर फ़्रॉड, हैकिंग और भारत की तरक्की पर हमले के खतरे पर आप क्या कर रहे हैं?
जहां तक साइबर सिक्योरिटी का सवाल है, तो ये एक बड़ा खतरा है. मोबाइल बैंकिंग में फ़्रॉड होते हैं, जिनके लिए लगातार विज्ञापनों के ज़रिये भी जागरूकता फैला रहे हैं. सभी तरह के जायज़ ऐप के बारे में एक पब्लिक रिपॉज़िटरी बना रहे हैं, जिसमें जाकर जाना जा सकता है, आपके पास आया हुआ मैसेज जायज़ जगह से आया है या नहीं. बैंक और NBFC के साथ भी लगातार इंटरएक्ट करते रहते हैं, जिसका मुख्य फोकस साइबर सिक्योरिटी ही है. कोविड के वक्त भी हमने बैंकों को अलर्ट किया था. सभी मिलकर सिक्योरिटी के लिए काम करते हैं.
आपके दो कार्यकाल बेहद चुनौतीपूर्ण रहे, फिर भी RBI को बेस्ट सेंट्रल बैंक का अवॉर्ड मिला. इसके बावजूद कुछ काम संभवतः रह गए होंगे, तो वे क्या काम हैं, जो आगे करने चाहिए?
हम 90वां वर्ष सेलिब्रेट कर रहे हैं, और हमने एक एजेंडा बनाया है – RBI at 100. बहुत-से सेक्टरों में अगले 10 साल में क्या-क्या करना है, उसकी लिस्ट है उसमें. 2034 तक क्या-क्या हासिल करना है, उसमें समूची लिस्ट है, और उसी पर फोकस है. हमारा लक्ष्य RBI को ‘फ्यूचर रेडी’ रखना है. रही बात बेस्ट सेंट्रल बैंक अवॉर्ड की, वह टीम एफर्ट का परिणाम है. कोई भी कैप्टन अकेले कोई मैच नहीं जीत सकता है. मैं न सिर्फ़ RBI की समूची टीम को बधाई देता हूं, बल्कि बैंकों और अन्य संस्थाओं को भी बधाई देना चाहता हूं, जिन्होंने साथ मिलकर काम किया.
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