रोहतक सीट: ताऊ देवीलाल को भी सबक सीखा चुकी है यहां की जनता, जानिए क्या रहा है गणित
Loksabha elections 2024: हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में रोहतक (Rohtak Seat) हमेशा से ही हॉट सीट रहा है. दिल्ली से 66 किलोमीटर दूर रोहतक नाम रोहताश के नाम पर रखा गया, जिनके शासन के समय इस शहर का निर्माण हुआ था. कुछ का कहना है कि यह शहर अस्तित्व में आने से पहले रोहितक पेड़ों का जंगल था, इसलिए इसका नाम रोहतक हो गया. रोहतक विधानसभा में 9 सीट आती हैं. इसमें महम, सांपला, रोहतक, कलानौर, बहादुरगढ़, बादली, झज्जर, बेरी और कोशली सीट है.
एक नजर इस सीट के इतिहास पर
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रोहतक लोकसभा सीट हुड्डा परिवार का गढ़ रही है. हरियाणा बनने से पहले ये सीट पंजाब में थी. केवल 1962, 1971 व 1999 और 1977, 1980 व 1989, 2019 में गैर कांग्रेसी प्रत्याशी को जीत हासिल हुई. कांग्रेस के अंदर भी 1952 व 1957 में सांसद दीपेंद्र हुड्डा के दादा रणबीर सिंह हुड्डा, 1991, 1996, 1998 व 2004 में भूपेंद्र हुड्डा, 2005, 2009 व 2014 में दीपेंद्र हुड्डा सांसद बने. 1962 में जनसंघ के लहरी सिंह, 1971 में मुख्तियार सिंह मलिक व 1999 में इनेलो-भाजपा गठबंधन के कैप्टन इंद्रसिंह गैर कांग्रेसी सांसद बने, जबकि 1989 में सपा की टिकट पर चौधरी देवीलाल सांसद चुने गए थे. दो बार जनता पार्टी 1977 व 1980 में जीती.
चौधरी देवी लाल इसी जीत से लड़कर बने थे उप-प्रधानमंत्री, एक गलती उन्हें पड़ी थी भारी
चौधरी देवीलाल ( Chaudhary Devi Lal) 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में राजस्थान के सीकर और हरियाणा के रोहतक दोनों से लड़े थे. दोनों सीटे जीते थे और लोकसभा पहुंचे थे. इसके साथ ही जनता दल सरकार में उप प्रधानमंत्री बने थे, क्योंकि ताऊ देवीलाल को दोनों में से एक सीट छोड़नी थी तो उन्होंने रोहतक सीट छोड़ी जो उनके राजनीतिक करियर में एक भूल भी मानी जाती है. रोहतक की जनता इस बात से इतनी नाराज हुई कि इसके बाद तीन बार उन्हें इस सीट से हार का मुंह देखना पड़ा. उप-प्रधानमंत्री बनने के बाद का दौर चौधरी देवी लाल के लिए बहुत ही खराब रहा. उसके बाद हुए तीन लोकसभा चुनावों सन 1991, 1996, तथा 1998 में चौधरी देवी लाल हरियाणा की रोहतक सीट से खड़े हुए और अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी भूपेंद्र सिंह हुड्डा से तीनों चुनाव में परास्त हुए.