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इतिहास को समेटे हुए हैं नालंदा का रुक्मिणी स्थान, पुरातत्व विभाग के सहयोग से ऐसे हो रहा यहां का विकास


पटना:

यू तो नालंदा अपने गर्व में कई इतिहास को छुपाये हुए है, जिसे समय समय पर इतिहासकार और समाजसेवी समाज के सामने लाकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराते रहते हैं. ऐसा ही इतिहास महाभारत काल के श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के नाम से नालंदा में स्थित रुक्मिणी स्थान का है. इस रुक्मिणी स्थान के बारे में जानने के लिये मार्च 2011 में The Hindkeshari की टीम रुक्मिणी स्थान पहुंची थी. 2015 में पुनः उसका कवरेज कर लोगों को इसके बारे में जानकारी दी. जिसके बाद पुरातत्व विभाग हरकत में आया. फिर पुरातत्वविद सुजीत नयन ने इसको लेकर पुरातत्व विभाग को लगातार जानकारी देते रहे. इसके बाद पुरातत्व विभाग के द्वारा सर्वे का कार्य कराया गया, फिर वहां से कई पौराणिक कलाकृति युक्त समान मिला. जिसे पुरातात्विक विभाग संरच्छित कर अपने साथ ले गई.

पुनः संरक्षण कार्य फिर हुआ शुरू

नालंदा के जगदीशपुर गांव के समीप स्थित रुक्मिणी स्थान के संरक्षण को लेकर करीब आठ साल बाद पुरातत्व विभाग की नींद खुली है. संरक्षण कार्य का शुभारंभ अधीक्षण पुरातत्वविद सुजीत नयन ने किया. तीसरी बार इस स्थान के संरक्षण कार्य शुरू किया गया है. इससे पूर्व वर्ष 2016 में संरक्षण कार्य शुरू किया गया था. लेकिन कुछ खुदाई के बाद ही कार्य को रोक दिया गया. इसके पूर्व इस स्थल की काइट फोटोग्राफी करा कर सर्वेक्षण किया गया था. पुरातत्वविद अमृत झा ने बताया कि आज पुनः संरक्षण कार्य की विधिवत शुरूआत की गई. इससे पूर्व कार्य अधूरा रह गया था.  पूरी प्लानिंग कर ली गई है. लेकिन मूर्त रूप देने में काफी समय और लगेगा.

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नालंदा विवि से जुड़ा होने का अनुमान 

यहां एक बड़ा टीला था, इस टीले की दूसरी बार कराई गयी खुदाई में भगवान बुद्ध की तीन फीट की दो मूर्ति और कई चैत, स्तूप और कमरे मिले थे. पुरातत्वविदों का मानना है कि खुदाई में मिली ईंट प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के ईंट की बनावट से पूरी तरह मेल खाती है. अनुमान लगाया जा रहा है कि यह टीला भी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का अंग रहा होगा. इस टीले का इतिहास 450 ई. पूर्व कुमार गुप्त, हर्षबर्द्धन और पाल शासक से जुड़ा होने का अनुमान लगाया जा रहा है. इससे पुरातात्विक स्थलों के विकास में सहयोग मिलेगा.

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नालंदा में पुरातात्विक स्थलों के विकास एवं जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग के बीच समन्वय स्थापित करने को लेकर कैब कन्वेंशन हॉल में बैठक की गई. बैठक में डीएम शशांक शुभंकर, पुरातत्व विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद डा. सुजीत नयन, और जिला प्रशासन एवं पुरातत्व विभाग के संबंधित पदाधिकारी शामिल हुए. बैठक में पुरातात्विक स्थलों को विकास में जिला प्रशासन से सहयोग की मांग की गई है. इसके अलावा, पुरातत्व विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद डा. सुजीत नयन ने अजातशत्रु किला मैदान का निरीक्षण किया और बताया कि राजगीर में विभाग द्वारा संग्रहालय का निर्माण कार्य भी कराया जाएगा.

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यहां 50 फिट से चौड़ी दीवार मिली 

पुरातत्वविद डा. सुजीत नयन ने बताया कि किला मैदान में 50 फीट से अधिक चौड़ी दीवार मिली है, जिसका अध्ययन किया जा रहा है. खुदाई के दौरान कई प्रकार के स्टोन, बर्तन, खंडित मूर्ति, लैंप स्टैंड, पैक खाने रखने के मिट्टी के ढक्कन युक्त बर्तन, हैंडल पॉल, टोटीदार मिट्टी के बर्तन, मिट्टी के कमंडल, घुंघरू, हाथी दांत के लॉकेट, श्रृंगार की वस्तुएं आदि मिली है. गुप्त काल और उससे पहले की प्रमाणिकता मिलने लगी है. अजातशत्रु किला मैदान की खुदाई में मौर्य काल, शुंग कुषाण काल, गुप्त काल और उससे पहले की भी प्रमाणिकता मिलने लगे हैं.

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पूरी खुदाई के बाद सामने आएगा इतिहास 

अधीक्षण पुरातत्वविद ने बताया कि इतिहास के लिए यह उत्खनन बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि पहला साम्राज्य मगध से ही शुरू हुआ था. इसके उत्खनन से कई बड़े इतिहास सामने आएंगे. राजगीर के पहाड़ जंगल सहित अन्य स्थानों पर कई इतिहास और उससे जुड़े अवशेष छुपे हुए हैं. उत्खनन में जो भी अवशेष निकल रहे हैं उसकी वैज्ञानिक स्तर पर जांच की जा रही है.

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