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रूस ने बनाई कैंसर की वैक्‍सीन और अब मुफ्त बांटने की तैयारी, जानिए कैसे करती है काम


नई दिल्‍ली:

विज्ञान की जबरदस्‍त प्रगति के बावजूद कई बड़ी बीमारियों का अब तक इलाज संभव नहीं है. कैंसर को अब तक ऐसी ही लाइलाज बीमारी समझा जाता है. हालांकि रूस ने कैंसर की वैक्‍सीन बनाने में सफलता हासिल कर ली है. रूस के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने मंगलवार को यह ऐलान किया और अब रूस की न्‍यूज एजेंसी TASS ने कहा है कि रूस के लोगों को यह वैक्‍सीन 2025 से मुफ्त लगाई जाएगी. हर साल कैंसर दुनिया में लाखों लोगों को मौत के आगोश में ले लेता है. ऐसे में रूस की इस कैंसर वैक्‍सीन को सदी की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है. रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन इस साल के शुरुआत में ही कहा था कि हम वैक्‍सीन और इसकी दवा बनाने के बहुत करीब आ गए हैं. 

रूस के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर के डायरेक्‍टर आंद्रेई कप्रीन ने कहा कि कैंसर के खिलाफ रूस ने अपनी mRNA वैक्‍सीन को विकसित कर लिया है. क्लिनिकल ट्रायल के बाद यह पता चला है कि कैंसर की वैक्‍सीन ट्यूमर को विक‍सित होने से रोकने में मदद करती है.

किस तरह से काम करती है mRNA वैक्‍सीन?

कैंसर रोगी के शरीर में कोई भी सेल अप्रत्‍याशित रूप से तेजी से बढ़ने लगता है और ट्यूमर का रूप ले लेता है. रूस की ओर से विकसित mRNA वैक्‍सीन में शरीर में मौजूद इस तरह के ट्यूमर को रोकने में मदद करता है. इंसानों के जेनेटिक कोड के हिस्‍से में RNA होता है जो हमारी सेल्‍स के लिए विशिष्‍ट प्रोटीन का निर्माण का कार्य करता है. वहीं जब हमारे शरीर पर किसी वायरस या बैक्‍टीरिया का हमला होता है तो mRNA टेक्‍नोलॉजी हमारी सेल्‍स को एक मैसेज भेजती है, जिसमें प्रोटीन बनाने का संदेश दिया जाता है. इस मैसेज का उद्देश्‍य होता है कि हमारे इम्‍यून सिस्‍टम को लड़ने के लिए जो भी जरूरी प्रोटीन होता है, वो उसे मिल सके. यह जरूरी प्रोटीन मिलने से शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है. इसमें जल्‍द वैक्‍सीन बन जाती है और व्‍यक्ति की इम्‍युनिटी मजबूत हो जाती है. 

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दरअसल कैंसर कोई बीमारी नहीं है. यह शरीर में अलग-अलग परिस्थितियों का परिणाम है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाता है. यही कारण है कि कैंसर विशेषज्ञों के मुताबिक, कैंसर की वैक्‍सीन बनाना एक तरह से असंभव है. हालांकि वैक्‍सीन कुछ प्रकार के कैंसर में उपयोगी होती हैं और सुरक्षा प्रदान करती हैं. हालांकि कैंसर वैक्‍सीन कभी भी रोग से पहले नहीं दी जाती है. यह उन लोगों को दी जाती है, जिन्‍हें कैंसर का ट्यूमर होता है. वैक्‍सीन इम्‍यून सिस्‍टम को यह बताती है कि कैंसर सेल्‍स किस तरह की हैं. 

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वैक्‍सीन के निर्माण में एआई की मदद

गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के निदेशक अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने TASS को बताया कि वैक्सीन के प्री-क्लिनिकल ट्रायल से पता चला है कि यह ट्यूमर के विकास और संभावित मेटास्टेस को दबा देता है. 

गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के निदेशक अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने रूस की न्‍यूज एजेंसी TASS को बताया कि आर्टिफिशियल न्‍यूरल नेटवर्क के उपयोग से पर्सनलाइज कैंसर वैक्सीन बनाने के लिए आवश्यक कंप्यूटिंग की अवधि एक घंटे से भी कम हो सकती है, जो कि फिलहाल एक लंबी प्रक्रिया है. 

रूस के वैक्‍सीन प्रमुख ने कहा, “पर्सनलाइज वैक्‍सीन बनाने में काफी समय लगता है क्योंकि एक वैक्‍सीन या कस्‍टमाइज एमआरएनए की गणना गणितीय शब्दों में मैट्रिक्स विधियों का उपयोग करती है. हमने इवाननिकोव संस्थान को शामिल किया है जो इस गणित को करने में एआई पर निर्भर करेगा यानी न्‍यूरल नेटवर्क कंप्यूटिंग. जहां इन प्रक्रियाओं में करीब आधे घंटे से एक घंटे का समय लगना चाहिए.” 

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वैक्‍सीन बनाने में आती हैं क्‍या मुश्किल? 

कैंसर विशेषज्ञों के मुताबिक, कैंसर सेल्‍स इस तरह के मॉलिक्‍यूल से बनते हैं, जो इम्‍युन सेल्‍स को दबा देते हैं. यदि वैक्‍सीन इन सेल्‍स को एक्टिव भी कर देती हैं तो भी यह जरूरी नहीं हैं कि वो ट्यूमर में प्रवेश कर सके. 

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कैंसर सेल्‍स एक तरह से इम्‍युन सिस्‍टम को भ्रमित कर देती हैं. यह इम्‍युन सिस्‍टम को खतरनाक नहीं लगती हैं और इम्‍युन सिस्‍टम के लिए यह पता लगाना ही मुश्किल हो जाता है कि उन्‍हें हमला किस पर करना है. कई बार वैक्‍सीन उन सेल्‍स पर भी हमला कर देती हैं, जो कि कैंसर से प्रभावित नहीं है. ऐसे में शरीर को अधिक नुकसान की संभावना बन जाती है. 

दूसरी ओर भारत जैसे देशों में आमतौर पर कैंसर का काफी वक्‍त बाद में पता लगता है. ऐसी स्थिति में ट्यूमर इतना बड़ा हो जाता है कि इम्‍यून सिस्‍टम की उससे लड़ने की क्षमता ही नहीं होती है. यही कारण है कि वैक्‍सीन लगने के बाद भी ठीक होने की कोई गारंटी नहीं है. 

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भारत सहित दुनिया में कैंसर के करोड़ों रोगी 

दुनिया में होने वाली लाखों मौतों के लिए कैंसर एक प्रमुख कारण है. विश्‍व स्‍वास्थ्‍य संगठन के मुताबिक, वैश्विक स्‍तर पर 2022 में अनुमानित करीब 2 करोड़ नए कैंसर के मामले सामने आए थे और करीब 97 लाख लोगों को इस बीमारी से अपनी जान गंवानी पड़ी थी. वहीं इसी साल सबसे आम कैंसर फेफड़े का कैंसर था. 

वहीं भारत में 2022 में कैंसर के 14.13 लाख मामले सामने आए थे. इनमें 7.22 लाख महिलाओं और 6.91 लाख पुरुषों में कैंसर की पहचान की गई. वहीं 9.16 लाख मरीजों की कैंसर से मौत हो गई. 

रूस में लोग भी बड़ी संख्‍या में कैंसर की चपेट में आ रहे हैं. 2022 में रूस में कैंसर के 6, 35,000 मामले दर्ज किए गए.

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दूसरे देशों में क्‍या हो रहे हैं प्रयास?

रूस के साथ ही दुनिया के कई देश कैंसर को लेकर काम कर रहे हैं. डॉक्टरों ने इस साल अगस्‍त में अमेरिका और ब्रिटेन सहित सात देशों में रोगियों पर  फेफड़े के कैंसर के टीके का क्‍लीनिकल ट्रायल शुरू किया है. जर्मनी स्थित बायो एन टेक ने कैंसर की वैक्‍सीन बीएनटी116 विकसित की है जो नॉन स्‍माल सेल लंग कैंसर का इलाज करेगी, जो बीमारी का सबसे आम रूप है. वहीं पिछले साल ब्रिटेन ने “पर्सनलाइज कैंसर ट्रीटमेंट” प्रदान करने वाले क्‍लीनिकल ट्रायल शुरू करने के लिए बायोएनटेक के साथ समझौता किया है. 

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वहीं फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मई में ग्लियोब्लास्टोमा वाले चार रोगियों में पर्सनलाइज वैक्‍सीन का ट्रायल किया. उन्होंने पाया कि वैक्‍सीन दिए जाने के दो दिन बाद मजबूत इम्‍यून रेस्‍पोंस देखने को मिला. वहीं फार्मास्युटिकल कंपनियां मॉडर्ना और मर्क एंड कंपनी त्वचा कैंसर के लिए एक वैक्सीन पर काम कर रही हैं. 

सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ भारत की पहली स्‍वदेशी वैक्‍सीन को पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और केंद्र सरकार ने संयुक्त रूप से विकसित किया है, जो पिछले साल से बाजार में है. 

फेडरल मेडिकल एंड बायोलॉजिकल एजेंसी की प्रमुख वेरोनिका स्कोवर्त्सोवा ने पिछले महीने TASS को बताया था कि रूस कई तरह के कैंसर पर अध्ययन कर रहा है, जिसमें मेलेनोमा एक खतरनाक प्रकार का त्वचा कैंसर और ग्लियोब्लास्टोमा एक घातक मस्तिष्क ट्यूमर शामिल है. 


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