सैलरी रोकी, प्रोजेक्ट अटके और अब 'प्रतिष्ठा' की कुर्की… : जानिए कैसे सियासी वादों से खस्ताहाल हुआ हिमाचल
नई दिल्ली/शिमला:
हिमाचल प्रदेश सरकार का वित्तीय संकट किस कदर गहराता जा रहा है, इसे हिमाचल हाईकोर्ट के एक ऑर्डर से समझा जा सकता है. हाईकोर्ट ने दिल्ली के मंडी हाउस स्थित हिमाचल भवन की प्रॉपर्टी की कुर्की के आदेश दिए हैं. सेली हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट कंपनी (Seli Hydro Power Project) को 64 करोड़ रुपये का अपफ्रंट प्रीमियम यानी अग्रिम राशि नहीं देने के मामले में ये आदेश दिया गया. जज अजय मोहन गोयल की सिंगल बेंच ने कहा कि इस रकम के साथ ही कंपनी को 7% का ब्याज भी देना होगा.
हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक, ब्याज उन लापरवाह अधिकारियों से लिया जाएगा, जिनके चलते अपफ्रंट प्रीमियम कंपनी को नहीं मिला. यही नहीं, राज्य की अदालत ने ऊर्जा सचिव को 15 दिन के अंदर आरोपी अधिकारियों की पहचान करने के निर्देश भी दे दिए हैं. अब इस मामले की सुनवाई 6 दिसंबर को होगी. इसी सुनवाई में लापरवाह अधिकारियों के नाम भी जाहिर करने होंगे. अदालत के इस फैसले के बाद हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार बैकफुट में आ गई है. अब हिमाचल भवन की कुर्की का आदेश राज्य सरकार की प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है.
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जानिए हिमाचल भवन का पूरा मामला?
13 जनवरी 2023 को हिमाचल प्रदेश की हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को हिमाचल भवन में बकाया 64 करोड़ रुपये का बिजली का बिल देने को कहा. इसके साथ ही 7% सालाना के दर से ब्याज भी देने का आदेश दिया गया था. लेकिन, कांग्रेस की सरकार ने कोर्ट के आदेश को नजरअंदाज किया और तय समय में बकाया नहीं चुकाया. इससे बकाया बढ़कर 150 करोड़ रुपये हो गया.
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पहले ही फंड की कमी के कारण मंत्रियों और अधिकारियों को सैलरी नहीं दे पाने की बात कह चुके हैं. पैसे की कमी के कारण कई प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं. अब हिमाचल भवन की कुर्की के आदेश से राज्य की सियासत में हंगामा मचा है. CM सुक्खू हाईकोर्ट के आर्बिट्रेशन के खिलाफ अपील दायर करने की बात कह रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस की नीतियों लेकर सवाल भी खड़े हो रहे हैं. वास्तव में अपनी गारंटी योजनाओं को लेकर कांग्रेस घिरती जा रही है.
हिमाचल सरकार पर कितना कर्ज?
हिमाचल सरकार पर करीब 94 हजार करोड़ रुपये का कर्ज और 10 हजार करोड़ की कर्मचारियों की देनदारियां बकाया है. हिमाचल प्रदेश का कर्ज से GSDP रेशियो 2024-25 के बजट में बढ़कर 42.5% हो गया है, जो 2022-23 में 40% था. यह सभी राज्यों के औसत अनुपात से काफी ज्यादा है. सरकार की आमदन्नी का ज्यादातर हिस्सा सैलरी-पेंशन, पुराने कर्ज का ब्याज और पुराना कर्ज लौटाने में खर्च हो रहा है. केंद्र से भी निरंतर बजट में कटौती हो रही है. बाकी रही सही कोर-कसर कांग्रेस सरकार की मुफ्त योजनाओं और गारंटियों ने पूरी कर दी है.
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पहले किया नौकरियों का वादा, फिर खींच लिए हाथ
हिमाचल प्रदेश में अक्टूबर 2022 में विधानसभा के चुनाव हुए थे. प्रियंका गांधी वाड्रा ने राज्य में कांग्रेस के कैंपेनिंग की कमान संभाली थी. हिमाचल में नवगठित सरकार की पहली बैठक में प्रियंका गांधी वाड्रा ने 63000 खाली पड़े सरकारी पदों को भरने और पहले साल में 1 लाख नई नौकरियां पैदा करने का वादा किया था. हालांकि, बाद में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने ‘गैर-जरूरी’ पद के बहाने इन पदों को ही खत्म करने का फैसला लिया. कांग्रेस की नाकाम नीतियों के कारण अब हिमाचल भवन की कुर्की की नौबत आ गई है. इससे यहां काम कर रहे लोगों की नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है. ऐसा लगता है कि जैसे कांग्रेस के शीर्ष नेता नौकरियों का वादा करते हैं और उनकी सरकारें ऐसे तरीके खोजती हैं, ताकि इन वादों को पूरे नहीं करने की ठोस वजह मिल जाए.
क्या है सैलरी-पेंशन पेमेंट मॉडल?
हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों की सैलरी-पेंशन पेमेंट का मॉडल बाकी राज्यों से कुछ अलग है. प्रदेश सरकार के कर्मचारियों को अब हर महीने की 5 तारीख को सैलरी मिलती है. जबकि रिटायर्ड कर्मचारियों को हर महीने की 10 तारीख को पेंशन दिया जाता है. बाकी के ज्यादातर राज्यों में सैलरी डे महीने की पहली तारीख ही है. हिमाचल प्रदेश ने पेमेंट मॉडल बदलकर पैसे बचाने की एक कोशिश की है. लेकिन 5 दिन की सैलरी रोककर महीने में 3 करोड़ और सालाना 36 करोड़ रुपये लोन पर ब्याज के तौर पर पेमेंट किया जा रहा है. पेमेंट का यह पैटर्न राज्य सरकार की गंभीर वित्तीय संकट की ओर इशारा करता है.
यही नहीं, CM सुक्खू ने मुफ्त पानी और बिजली के वितरण, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और 600 शैक्षणिक संस्थान खोलने के जरिए ‘राजकोषीय अनुशासनहीनता’ के लिए पिछली BJP सरकार को दोषी ठहराया है.
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टॉयलेट टैक्स को लेकर हुआ विवाद
बीते महीने हिमाचल में हर घर में प्रति टॉयलेट सीट के आधार पर कथित तौर पर टैक्स लगाने को लेकर खूब बवाल हुआ था. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एक ट्वीट के बाद इस बवाल की शुरुआत हुई थी. हालांकि, बाद में सुक्खू सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया था. सुक्खू सरकार ने कहा कि ऐसा कोई टैक्स नहीं लगाया गया है.
इससे समझा जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश की सरकार कैसे लोगों को बुनियादी सुविधाएं देने में भी फेल साबित हो रही है. कांग्रेस के चुनावी वादों और गारंटियों पर गौर करें, तो हम पाएंगे कि कांग्रेस ने वादे तो खटाखट किए, लेकिन बाद में उसी खटाखट तरीके से उन वादों से पलटी भी मारी है.
हिमाचल में कांग्रेस के वादे और उनके नतीजे
– कांग्रेस ने पहला वादे के तौर पर सभी घरों को महीने में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का किया था. बाद में इसका कोटा घटाकर 125 यूनिट कर दिया गया. फिर राज्य में उपचुनाव खत्म होते ही ये योजना भी खत्म हो गई.
-दूसरा वादा दूध किसानों से दूध खरीद की दर 80-100 रुपये प्रति लीटर तय की गई थी. लेकिन बाद में दूध किसानों के लिए खरीद की दर सिर्फ 45-55 रुपये प्रति लीटर कर दी गई.
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-तीसरा वादा नौकरियों को लेकर किया गया था. कांग्रेस ने कहा था कि हर साल 1 लाख नौकरियां और 5 साल में कुल 5 लाख नौकरियां पैदा करेगी. लेकिन एक साल के अंदर सरकार 1300 युवाओं को भी नियमित नौकरी नहीं दे पाई.
-चौथा वादा राजीव गांधी स्व-रोज़गार स्टार्ट-अप फंड के तहत नौकरियों का वादा था. लेकिन अब तक कोई नौकरी नहीं मिली है. अभ्यर्थियों का सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी है.
-पांचवां वादा 18 से 60 वर्ष की सभी महिलाओं को 1,500 रुपये हर महीने दिए जाने का किया गया था. लेकिन फंड की कमी का हवाला देते हुए महिलाओं के अकाउंट में पैसों का ट्रांसफर फिलहाल रोका गया है.
-छठा वादा मोबाइल हेल्थ क्लिनिक बनाने का था. लेकिन अभी तक ऐसी कोई क्लिनिक नहीं बनाई गई है.
-कांग्रेस ने टैक्सियों का परमिट 15 साल करने का वादा किया था. अब तक इसपर काम नहीं हुआ है.
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