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सलमान रुश्दी की 'The Satanic Verses' फिर चर्चा में: दिल्ली के बुकस्टोर पर बिक्री से उठा रहा नया विवाद


नई दिल्ली:

सलमान रुश्दी की विवादित किताब ‘The Satanic Verses’ एक बार फिर सुर्खियों में है. दिल्ली के खान मार्केट स्थित प्रतिष्ठित बुकस्टोर ‘बहरीसन्स’ में इस किताब का लिमिटेड एडिशन बिक्री के लिए उपलब्ध है. चार दशक पहले जिस किताब पर राजीव गांधी सरकार ने प्रतिबंध लगाया था, वह अब ₹2000 में पाठकों के हाथों में है.

जनता का रिएक्शन

डॉ. सतीश चंद्र, जो किताब खरीदने आए थे, ने कहा, “इसमें कुछ नया नहीं है, लेकिन मैंने पुस्तक समीक्षा पढ़ी है और मैं देखना चाहता था कि इस किताब में आखिर लिखा क्या है. इसमें जो बातें हैं, वो कहीं भी मिल जाएंगी, लेकिन मैं इसे खुद पढ़ना चाहता था.” वहीं, प्रियम नाम की एक पाठक का कहना है, “मुझे लगता है कि ये किताब हमेशा से किताबों की शेल्फ़ पर होनी चाहिए थी. सलमान रुश्दी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नए आयाम दिए हैं, और हमें इसे पढ़ने का मौका मिलना चाहिए.”  

पूरी कहानी समझिए

1988 में ‘The Satanic Verses’ के प्रकाशन के बाद पूरी दुनिया में इसका विरोध हुआ. ईरान ने इस पर फतवा जारी किया, भारत में जोरदार प्रदर्शन हुए और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि, समय के साथ ईरान का फतवा कमजोर पड़ गया और दिल्ली हाईकोर्ट ने भारत में इस पर लगा प्रतिबंध हटा दिया.

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फिर से बैन की उठी मांग

किताब की बिक्री की खबर के बाद ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे फिर से बैन करने की मांग की है. महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने कहा, “चाहे कोर्ट का मामला हो या सरकार का, इस किताब पर पूरी तरह से प्रतिबंध होना चाहिए. इसमें मुस्लिम भावनाओं का मजाक उड़ाया गया है. अगर यह किताब बाजार में आई तो माहौल खराब होने का खतरा है. मैं गृह मंत्री और प्रधानमंत्री से अपील करता हूं कि इस किताब पर प्रतिबंध लगाया जाए.”  

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वहीं, कई लेखक और आलोचक मानते हैं कि किताब पर प्रतिबंध लगाने से पहले लोगों को इसे पढ़ना चाहिए और तथ्यों के आधार पर बहस करनी चाहिए. आलोचक हरीश त्रिवेदी ने कहा, “बैन लगाने से किताबों को और प्रचार मिलता है. पहले किताब पढ़नी चाहिए, फिर बहस होनी चाहिए.”  

‘The Satanic Verses’ का फिर से बाजार में आना इस बात की याद दिलाता है कि प्रतिबंध अक्सर विफल होते हैं. किताबों पर लगी पाबंदियाँ उन्हें और चर्चित बना देती हैं. सैटैनिक वर्सेज की वापसी इस बहस को फिर से जीवित कर रही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में कितनी आज़ादी होनी चाहिए. सलमान रुश्दी का नाम और उनकी किताब फिर से चर्चा के केंद्र में हैं.


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