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कोचिंग सेंटर दोषी नहीं, पेरेंट्स की उम्मीदें बच्चों को जान देने के लिए कर रहीं मजबूर : छात्रों के सुसाइड पर SC

खास बातें

  • इस साल अब तक कोटा में 25 बच्चों ने की खुदकुशी
  • 2021 में देशभर में 13089 छात्रों ने की आत्महत्या
  • SC ने कोचिंग सेंटरों को निर्देश जारी करने से किया इनकार

नई दिल्ली:

राजस्थान के कोटा के कोचिंग संस्थानों (Kota Students Suicide) में छात्रों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उनके माता-पिता को जिम्मेदार ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्याओं के लिए कोचिंग सेंटर्स (Coaching Institutes) को दोषी ठहराना उचित नहीं है, क्योंकि माता-पिता की उम्मीदें बच्चों को जान देने के लिए मजबूर कर रही हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह टिप्पणी मुख्य रूप से राजस्थान के कोटा में छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं को लेकर की है. इस साल अब तक कोटा के अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में 24 छात्रों के सुसाइड की खबरें आई हैं.

‘समस्या अभिभावकों की है’

जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने प्राइवेट कोचिंग सेंटर को रेगुलेट करने और उनके लिए एक स्टैंडर्ड तय करने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए ये टिप्पणी की. अदालत ने कहा, “समस्या अभिभावकों की है, कोचिंग संस्थानों की नहीं.”

शीर्ष अदालत ने कहा कि ये नीतिगत मामला है. बच्चे अपने मां-बाप की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं, जिस वजह से वो आत्महत्या कर रहे हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा और उनके अभिभावकों का दबाव आत्महत्या के बढ़ते मामलों की वजह है. 

डॉक्टर अनिरुद्ध नारायण मालपानी की याचिका पर हो रही थी सुनवाई

अदालत मुंबई के डॉक्टर अनिरुद्ध नारायण मालपानी की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया है कि कोचिंग सेंटर छात्रों को अपने फायदे के लिए तैयार करके मौत के मुंह में धकेल देते हैं. 

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बेंच ने कहा, ”हममें से ज्यादातर लोग कोचिंग संस्थान नहीं चाहते, लेकिन आजकल परीक्षाएं इतनी प्रतिस्पर्धात्मक हो गई हैं और छात्र आधे या एक नंबर से परीक्षा में फेल हो जाते हैं. वहीं, माता-पिता को भी बच्चों से काफी उम्मीदें रहती हैं.”

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दिया सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि वह मामले में या तो राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाए, क्योंकि याचिका में जिन आत्महत्याओं की घटनाएं का जिक्र है, उनमें अधिकतर कोटा से संबंधित हैं या फिर केंद्र सरकार को एक रिप्रेजेंटेशन दे. हम इस मुद्दे पर कानून कैसे बना सकते हैं? इस पर वकील प्रिया ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी. उन्होंने संकेत दिया कि याचिकाकर्ता एक रिप्रेजेंटेशन पेश करना चाहेगा.

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