प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट: मंदिर-मस्जिद विवाद पर SC ने कही 3 बड़ी बातें, आपके लिए जानना जरूरी
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में पूजास्थल कानून (प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- 1991) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई हुई. अदालत ने CPI-M, इंडियन मुस्लिम लीग, NCP शरद पवार, राजद एमपी मनोज कुमार झा समेत 6 पार्टियों की याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र सरकार को 4 हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने को कहा है.
CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल बेंच ने गुरुवार को कहा, “जब तक हम इस मामले पर सुनवाई कर रहे हैं, तब तक देश में धार्मिक स्थलों को लेकर कोई नया मामला दाखिल नहीं किया जाएगा.”
आइए जानते हैं क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट और इसकी संवैधानिकता को क्यों दी गई चुनौती? आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की 3 बड़ी बातें क्या हैं:-
आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कौन सी 3 आदेश दिए?
-अदालत ने कहा, “ज्यादातर मामले कानूनी हैं. हम चाहते हैं कि केंद्र का पक्ष भी रिकॉर्ड में लाया जाए. केंद्र ऐसे अकाउंट से कॉपी अपलोड करे, जिससे उसे डाउनलोड किया जा सके. केंद्र हमें 4 हफ्ते में हलफनामा दे.”
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “प्लेसेस ऑफ वर्शिप पर अगले आदेश तक कोई केस रजिस्टर्ड नहीं किया जाएगा. जब तक हम इस केस को सुन रहे हैं, तब तक देशभर में इस तरह के नए मामले नहीं सुने जाएंगे.”
-कोर्ट ने कहा, “भोजशाला, ज्ञानवापी, संभल जैसे मामलों में सुनवाई तो चलती रहेगी, लेकिन उस पर कोर्ट अभी कोई फैसला नहीं देंगे. यानी चार हफ्ते तक तक आदेश देने पर रोक लगाई गई है.”
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
-प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में दाखिल किया गया था. इसका उद्देश्य धार्मिक जगहों के विवादों को खत्म करना और साम्प्रदायिक शांति बनाए रखना है.
-इस एक्ट का मकसद यह सुनिश्चित करना था कि किसी भी धार्मिक स्थान को इतिहास की घटनाओं के आधार पर बदलने की कोशिश नहीं की जाएगी. साथ ही इन्हें सही रखने के लिए सरकार पैसा भी खर्च करेगी.
-इस एक्ट के तहत यह निर्धारित किया गया कि 15 अगस्त 1947 से पहले जिस भी धार्मिक स्थल की स्थिति जैसी थी, वही कायम रहेगी. यानी कि किसी भी धार्मिक स्थल को 1947 के बाद बदलने की कोशिश नहीं की जा सकती, चाहे वह मस्जिद, मंदिर, गुरुद्वारा या चर्च हो.
-इस कानून के मुताबिक, किसी भी धार्मिक स्थल को किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल में बदलने की कोशिश नहीं की जा सकती. मसलन, अगर कोई मंदिर या मस्जिद किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल में बदला गया था, तो वह स्थिति ज्यों की त्यों ही रहेगी.
-यह एक्ट धार्मिक विवादों से जुड़ी स्थितियों को सुलझाने का कोशिश करता है जिससे धार्मिक स्थानों पर कोई विवाद न हो और समाज में साम्प्रदायिक शांति बनी रहे.
इस एक्ट में यह भी कहा गया कि इस एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून द्वारा जो सुरक्षा दी गई है, उसे कोई कोर्ट या अन्य अधिकारी चुनौती नहीं दे सकता है.
मुस्लिम पक्ष के क्या हैं तर्क?
-जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इन याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर की है. जमीयत का तर्क है कि एक्ट के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से पूरे देश में मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी.
-मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद का रखरखाव करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी ने भी इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है.
हिंदू पक्ष ने क्या दी हैं दलीलें?
-हिंदू पक्ष की तरफ से लगाई गई याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदाय के खिलाफ है. इस कानून के चलते वे अपने ही पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों को अपने अधिकार में नहीं ले पाते हैं.
-हिंदू पक्ष ने तर्क दिया कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पूजा स्थलों के 15 अगस्त 1947 से उनके मौजूदा स्वरूप को बदलने के लिए मुकदमा दायर करने से रोकता है. इससे ज्यूडिशियल रेमिडी का अधिकार खत्म हो जाता है, जो संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है.
-हिंदू पक्ष ने ये भी तर्क दिया कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 2,3 और 4 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. तर्क है कि ये हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों के पूजा स्थल और तीर्थ स्थलों पर अपना अधिकार वापस लेने से रोकती है. जबकि वक्फ एक्ट की धारा 107 ऐसा करने की इजाजत देती है.