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घर के आंगन से ही शुरू हुआ था शारदा सिन्हा का गीतों का सफर, नेग के लिए गाया था अपना पहला गाना

शारदा सिन्हा ने छठ पूजा के पहले दिन अपनी अंतिम सांस ली. दरअसल, मंगलवार रात को तबियत बेहद खराब होने के कारण उनका निधन हो गया. वह पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थीं, जहां उनका इलाज चल रहा था. मंगलवार सुबह उन्हें वेंटीलेटर सपोर्ट दिया गया था लेकिन रात में उनके निधन की खबर आ गई. एक ओर पूर्वांचल में छठ पूजा चल रही हैं, जहां बिहार कोकिला के गीतों से रौनक लगी रहती है. वहीं दूसरी ओर शारदा सिन्हा के निधन की खबर से लोग शोक में हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपने घर के आंगन से ही गाने की शुरुआत की थी. 

खुद अपने गीतों की शुरुआत की कहानी की थी बयां

दरअसल, शारदा सिन्हा ने खुद एक कार्यक्रम के दौरान बताया था कि उन्होंने लोक गायिका बनने की शुरुआत अपने घर के आंगन से ही की थी और भाई की शादी के बाद नेग मांगने के लिए पहली बार गाना गाया था. उन्होंने बताया कि उनसे उनकी भाभी ने पूछा था कि जब भइया द्वार पर आएंगे तो तुम नेग कैसे मांगोगी. इस पर उन्होंने अपना पहला गाना सुनाया जो उन्होंने अपने भाई से नेग मांगने के लिए “द्वार के छकाई” नेगा गाया था. 

1978 में गाया था छठ गीत

शारदा सिन्हा ने सबसे पहले इसी गाने को रिकॉर्ड किया था. 1978 में उन्होंने छठ गीत “उग हो सुरुज देव” गाया था और उनके इस गाने के रिकॉर्ड बनाया था. इतना ही नहीं आज भी छठ पर्व के दौरान उनके इस गाने को लोग सुनते हैं. इस गाने को छठ का पूरक माना जाता है. बिहार कोकिला को बिहार ही नहीं भारत की भी शान माना जाता है. इतना ही नहीं 2018 में उन्हें लोक गीतों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था. उस वक्त देश के राष्ट्रपति रहे रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था. 

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पूरे बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी सुने जाते थे उनके गीत

केवल छठ ही नहीं बल्कि होली और विवाह समारोह में भी शारदा सिन्हा के गानों की उपस्थिति हमेशा रही. उनके गानों की सादगी किसी कमरे में बैठे इंसान को भी बिहार के छठ घाटों तक पहुंचा देती है. अन्य लोकगायिकाओं से इतर शारदा सिन्हा की खासियत यह थी कि वह किसी भी भाषा के बंधन से परे पूरे बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ झारखंड के बड़े हिस्से में भी लोकप्रिय रही हैं. 



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