शेयर मार्केट के अपने रिस्क है, ब्रोकर के खिलाफ FIR दर्ज कराना गलत : इलाहाबाद हाई कोर्ट
लखनऊ:
शेयर बाजार में अगर आपका पैसा डूबता है, तो इसके लिए कोई इनवेस्टमेंट कंपनी या शेयर ब्रोकर जिम्मेदार नहीं है. ऐसे में उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई करना ठीक नहीं है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शेयर बाज़ार में होने वाले इन्वेस्टमेंट को लेकर एक मामले में आदेश देते हुए कहा है कि शेयर बाजार के अपने जोखिम है और इन्वेस्टमेंट की गई रकम की वसूली के लिए शेयर ब्रोकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराना सही नहीं है. कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि उसने कोई संपत्ति किसी को सौंपी है और साथ ही वह यह भी नहीं कह सकता कि संपत्ति सौंपने के लिए उसे बेईमानी से प्रलोभन देकर धोखा दिया गया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक लाइसेंसधारी शेयर दलाल एवं प्रतिभूति कंपनी के निदेशक की याचिका को स्वीकार करते हुए उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को भी रद्द करने का आदेश दिया है. मामले के मुताबिक, याचिकाकर्ता जितेंद्र कुमार केशवानी के खिलाफ इक्विटी शेयर लेनदेन विवाद के संबंध में 2018 में आगरा के हरिपर्वत थाने में आईपीसी की धारा 420 और 409 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.
शेयर ब्रोकर का क्या दोष?
जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने जितेंद्र कुमार केशवानी की याचिका को स्वीकार करते हुए अपने आदेश में कहा कि आवेदक एक शेयर ब्रोकर है और विरोधी पक्ष शेयरों में निवेश के परिणामों से पूरी तरह वाकिफ थे. कोर्ट में सुनवाई के दौरान तर्क दिया गया कि एफआईआर में आईपीसी की धारा 420 और 409 का कोई मतलब नहीं है. पक्षों के बीच विवाद एक व्यापारिक लेनदेन से संबंधित था. इसलिए यह मामला भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अधिनियम, 1992 के दायरे में आता है, जिसकी एफआईआर नहीं होगी.
SEBI अधिनियम एक विशेष अधिनियम
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि एक ही आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति को आईपीसी की धारा 409 के साथ-साथ धारा 420 के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि दोनों अपराध विरोधाभासी है. हाई कोर्ट ने कहा कि सेबी अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जो आईपीसी या सीआरपीसी जैसे सामान्य अधिनियम पर प्रभावी होगा. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में आवेदक की ओर से धोखाधड़ी या बेईमानी से प्रेरित होने का कोई तत्व नहीं है. आवेदक एक शेयर ब्रोकर था और विपक्षी पक्ष शेयरों में निवेश के परिणामों से पूरी तरह परिचित था, क्योंकि उसकी आँखें खुली थी और ऐसे निवेश के जोखिम के बारे में उसे अच्छी तरह पता था. इसलिए उसने आवेदक के माध्यम से निवेश किया था. शेयर मार्केट के अपने जोखिम है. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक को विपक्षी पक्षकार द्वारा कोई संपत्ति सौंपी गई थी. इसलिए आवेदक के खिलाफ धारा आईपीसी 420 और 409 के तहत कोई अपराध नहीं बनता.
…तो सामान्य कानून के प्रावधान लागू नहीं
कोर्ट के मुताबिक, सेबी अधिनियम एक विशेष अधिनियम है जो सामान्य अधिनियम जैसे कि आईपीसी या सीआरपीसी पर प्रभावी होगा. कानून की यह स्थापित स्थिति है कि एक बार विशेष अधिनियम लागू हो जाने पर सामान्य कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे और केवल ऐसे विशेष कानून के प्रावधानों और सेबी अधिनियम की धारा 26 के प्रावधानों के अनुसार ही केस दर्ज किया जा सकता है. हाई कोर्ट ने आवेदक जितेंद्र कुमार केशवानी के आवेदन को स्वीकार करते हुए आगरा के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित पूरी आपराधिक कार्यवाही और चार्जशीट को रद्द करने का आदेश दिया है.