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बांग्लादेश के इन 3 के कारण शेख हसीना को देना पड़ा इस्तीफा; जानें कौन हैं ये धुरंधर

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा क्यों देना पड़ा? इसके कारण तो कई हैं, लेकिन उन सभी कारणों का चेहरा तीन युवक बने. छात्र नेता नाहिद इस्लाम के नेतृत्व में आरक्षण के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया. नाहिद इस्लाम वर्तमान में ढाका विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग का छात्र है. स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30 प्रतिशत कोटा बहाल करने के बाद आंदोलन नाहिद ने ही शुरू किया और धीरे-धीरे लोग इससे जुड़ते गए.

दो बार हुआ अपहरण

नाहिद शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के खिलाफ मुखर रहे हैं और उन्हें सड़कों पर तैनात “आतंकवादी” बताते रहे हैं. शाहबाग में प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने घोषणा की थी कि छात्रों ने “आज लाठियां उठा ली हैं” और अगर लाठियां काम नहीं करतीं तो वे “हथियार उठाने” के लिए तैयार हैं. 19 जुलाई 2024 को साबुजबाग के एक घर से सादे कपड़ों में कम से कम 25 लोगों ने नाहिद इस्लाम का अपहरण कर लिया था. विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के बारे में बार-बार पूछताछ के दौरान उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई, हथकड़ी लगाई गई और उन्हें प्रताड़ित किया गया. दो दिन बाद, वह पूर्बचल में एक पुल के नीचे बेहोश और घायल अवस्था में पाया गया. नाहिद इस्लाम का दूसरी बार अपहरण 26 जुलाई 2024 को धानमंडी के गोनोशस्थाय नगर अस्पताल से किया गया था. ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस की जासूसी शाखा सहित विभिन्न खुफिया एजेंसियों से होने का दावा करने वाले व्यक्ति उसे ले गए. हालांकि, पुलिस ने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया है.

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आसिफ महमूद

वह ढाका विश्वविद्यालय में भाषा अध्ययन का छात्र है. वह जून में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुए देशव्यापी आंदोलन का हिस्सा बना. 26 जुलाई को डिटेक्टिव ब्रांच द्वारा हिरासत में लिए गए लोगों में आसिफ भी शामिल था. इलाज के दौरान उसे भी अस्पताल से हिरासत में लिया गया था. आसिफ को हिरासत में लेने के पीछे सुरक्षा कारणों का भी हवाला दिया गया.

कौन हैं अबु बकर मजूमदार?

अबु बकर मजूमदार भी शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने में भागीदार है. वह ढाका विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग का छात्र है. द फ्रंट लाइन डिफेंडर के मुताबिक, वह नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों पर भी काम करता है. 5 जून को आरक्षण पर हाई कोर्ट के फैसले के बाद बकर ने अपने दोस्तों के साथ स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन मूवमेंट शुरू किया. उसने ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का कड़ा विरोध किया. अब ये तीनों आगे आने वाले समय में बांग्लादेश में क्या करेंगे, ये देखने वाली बात है. हालांकि, यह तय है कि सेना से लेकर अगली सरकार तक इनसे टकराने और इनकी कही बातों को अनदेखा करने से पहले सौ बार सोचेगी.



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