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राजस्थान में BJP-कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकती हैं छोटी पार्टियां? आंकड़ों से समझिए

राजस्थान के वोटर्स 1998 के विधानसभा चुनावों के बाद से ‘हर पांच साल बाद सरकार बदलते रहे हैं. एक बार बीजेपी, एक बार कांग्रेस की सरकार बनी है. हालांकि, छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 200 सीटों वाले विधानसभा में 100 के जादुई आंकड़े को पार करने के लिए अपना महत्वपूर्ण समर्थन दिया है.

वसुंधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व में बीजेपी ने 2013 के चुनावों में निर्णायक जीत हासिल की थी. इसके बाद 2018 में अशोक गहलोत को निर्दलीय और छोटे दलों का महत्वपूर्ण समर्थन पाने के लिए एक से अधिक बार अपना जादू चलाना पड़ा.

पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश के छोटे दलों को करीब 12 फीसदी वोट मिले थे. इसलिए ये छोटे दल दोनों प्रमुख पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं. ये पार्टियां जिसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी, वह 2023 की रेस में उतना ही पिछड़ता चला जाएगा. पिछले चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों में सिर्फ आधी फीसदी वोटों का मामूली अंतर रहा था.

ये छोटी पार्टियां कर सकती हैं खेल

राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी (BSP), आजाद समाज पार्टी (ASP), इंडियन ट्राइबल पार्टी (ITP), AIMIM ने उम्मीदवार उतारे हैं. हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (NDP), आम आदमी पार्टी (AAP), बीटीपी से अलग होकर बनी बीएपी, अभय चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP), शिवसेना शिंदे गुट ने भी प्रत्याशी उतारे हैं.

छोटे दलों की अहमियत 

वैसे तो राजस्थान के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर है. लेकिन चुनावी विश्लेषक बताते हैं कि 200 सीटों में से 50 सीटों पर बागी उम्मीदवारों और छोटे दल असर डाल सकते हैं. ऐसे में चाहे कांग्रेस हो या फिर बीजेपी… दोनों की नजर इन छोटे दलों पर टिकी है. क्योंकि नतीजे अगर मनमाफिक नहीं आए, तो छोटे दलों के हाथ में सत्ता की चाबी आ जाएगी. 2013 में बीजेपी को बंपर बहुमत मिला था. लिहाज़ा छोटे दलों की भूमिका जीरो हो गई थी. लेकिन 2018 में तस्वीर अलग थी.

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2013 और 2018 में छोटे दलों के खाते में कितनी सीटे आईं?

पार्टी                   2013                   2018

बीजेपी                 163                     73

कांग्रेस                  21                     100

निर्दलीय                07                      13 

बीएसपी                03                       06   

आरएलटीपी           00                      03

बीटीपी                  00                      02

सीपीएम                00                      02

आरएलडी              00                      01 

एनपीईपी               04                      00

एनयूजेडपी             02                     00  


बेशक सीटें पूरी कहानी नहीं कहती. चुनाव में वोट प्रतिशत भी बहुत मायने रखता है. कई बार वोट शेयर सत्ता समीकरणों को बिगाड़ और बना सकता है. यही वजह है कि निर्दलीय और छोटे दलों की अहमियत बढ़ जाती है.

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छोटे दलों का वोट शेयर

निर्दलीय                 9.47

बीएसपी                 4.03

आरएलपी               2.40

सीपीएम                 1.22

बीटीपी                   0.72

अन्य                     3.79

इन आंकड़ों से साफ है कि राजस्थान की सियासत में भले ही छोटे दलों के खाते में सीटें कम आएं, लेकिन इनके वजूद को कोई भी पार्टी नकार नहीं सकती. क्योंकि जनादेश स्पष्ट नहीं हुआ, तो फिर सत्ता का खेल इन्हीं के इर्द गिर्द घूमता दिखाई देगा.

महिला वोटर किसके साथ?

राजस्थान में सबकी नजरें महिला मतदाताओं पर हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों ने महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए कई वादे किए हैं. आंकड़ें यह भी बता रहे हैं कि राजस्थान में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से लगातार बढ़ रही है. राजस्थान में कुल 5.27 करोड़ मतदाता हैं. इनमें 2.52 करोड़ महिलाएं हैं. यह आंकड़ा कुल मतदाताओं का करीब 48% है.

महिलाओं का मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है. 2018 विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक वोट डाला. 2018 में कुल 74.06% वोटिंग हुई. इनमें 74.67% महिला मतदाता और 73.09% पुरुष मतदाता थे.

महिलाओं की राजनीतिक पसंद क्या?

CSDS-लोकनीति के सर्वे के अनुसार, 2018 विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने कांग्रेस, बीजेपी को बराबर यानी 40-40% वोट दिया. जबकि 2013 विधानसभा चुनाव में 47% महिला मतदाताओं ने बीजेपी और 34% महिला मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट दिया. बीजेपी ने इस विधानसभा चुनाव में 20 और कांग्रेस ने 28 महिलाओं को टिकट दिया है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 23 और कांग्रेस ने 27 महिलाओं को टिकट दिया था.

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